यूपी में बनेगी सबसे बड़ी बियर सेंचुरी : इस जिले में भालुओं की तेजी से बढ़ी संख्या, इन कारणों से वन विभाग को मिली सफलता

UPT | प्रतीकात्मक फोटो

Dec 05, 2024 14:39

उत्तर प्रदेश का सोनभद्र जिला अब राज्य का सबसे बड़ा बियर सेंचुरी (भालू अभ्यारण्य) बन गया है। यहां कुल 105 भालू हैं, जिनमें 32 नर और 73 मादा भालू शामिल हैं...

Sonbhadra News : यूपी में सबसे बड़ी बियर सेंचुरी बनने जा रही है। उत्तर प्रदेश का सोनभद्र जिला अब राज्य का सबसे बड़ा बियर सेंचुरी (भालू अभ्यारण्य) बन गया है। यहां कुल 105 भालू हैं, जिनमें 32 नर और 73 मादा भालू शामिल हैं। इस क्षेत्र की समृद्ध हरियाली और भालुओं के लिए उपलब्ध मनपसंद भोजन के कारण यह जिला 'बीयर फ्रेंडली' के रूप में जाना जाने लगा है।

भालुओं की संख्या में लगातार इजाफा
पिछले दो वर्षों में कैमूर वन क्षेत्र में भालुओं की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। घोरावल क्षेत्र में चार किलोमीटर का वन्य क्षेत्र भालुओं के लिए एक आदर्श प्राकृतिक वास बन चुका है। यहां की हरियाली और प्रचुर मात्रा में भोजन की उपलब्धता ने इसे भालुओं के रहने के लिए उपयुक्त बना दिया है। यही कारण है कि इस क्षेत्र में भालुओं की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है।



65 से बढ़कर इतनी हुई संख्या
कुछ समय पहले कैमूर वन क्षेत्र में भालुओं की संख्या बहुत कम हो गई थी, जिससे वन विभाग भी चिंतित था। लेकिन पिछले दो वर्षों में कैमूर वन रेंज में इनकी संख्या में अच्छी बढ़ोतरी देखी गई है, जिससे चिंताएं कम हुई हैं। घोरावल में ढढौरा वाटर फॉल के पास लगभग चार किलोमीटर क्षेत्र में भालुओं की संख्या बहुतायत में पाई जाती है। यह स्थान उनका प्राकृतिक वास होने के कारण यहां उनकी मांद भी स्वाभाविक रूप से बनती है, जहां वे सुरक्षित महसूस करते हैं। दो वर्ष पहले भालुओं की संख्या 60-65 के आसपास थी, लेकिन अब यह संख्या बढ़कर 105 हो गई है, जो करीब डेढ़ गुना अधिक है। विशेषज्ञों के अनुसार, अनुकूल वातावरण और खानपान की समृद्धता इनकी आबादी बढ़ने की प्रमुख वजहें हैं। ढढौरा वाटर फॉल के चारों ओर हरे-भरे जंगलों की उपस्थिति इन भालुओं के लिए एक आदर्श आवास बनाती है।

जंगलों में मिलता है पसंद का भोजन
घोरावल वन क्षेत्र में भालू आमतौर पर शाम के समय शिकार पर निकलते हैं। चूंकि वे सर्वाहारी होते हैं, उन्हें हरे-भरे जंगलों में अपनी पसंद का भोजन (शिकार) आसानी से मिल जाता है। अंधेरा होने से पहले वे अपनी मांद में वापस लौट जाते हैं। हालांकि आमतौर पर यह माना जाता है कि भालू झुंड में रहते हैं, लेकिन असलियत में वे अकेले रहना पसंद करते हैं। मादा भालू अपने बच्चों को साथ रखती है और उन्हें शिकार और भोजन की तलाश करना सिखाती है। वहीं, नर भालू अकेले शिकार करते हैं और झुंड में रहना उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं है। यह एक विशेषता है, जो भालुओं की आदतों को अलग बनाती है।

भालू पेड़ पर चढ़ने में भी माहिर
भालू की तीक्ष्ण घ्राण शक्ति के बारे में कम लोग जानते हैं। वे कई किलोमीटर दूर से शिकार की गंध को सूंघ सकते हैं और उसका पीछा करते रहते हैं। उनकी घ्राण क्षमता इतनी तेज होती है कि वे अपनी मंशा के अनुसार शिकार को आसानी से ढूंढ सकते हैं। इसके अलावा, भालू पेड़ पर चढ़ने में भी माहिर होते हैं, ठीक वैसे ही जैसे तेंदुआ। वे पेड़ों के घोंसलों से अंडे और पक्षियों को निकालकर खा जाते हैं। भालू अच्छे तैराक भी होते हैं, वे नदी या तालाब में जाकर मछलियों का शिकार करते हैं।

दो वर्षों में इनकी संख्या में तेजी से वृद्धि हुई 
वन्य जीव प्रतिपालक, डॉ. अरविंद कुमार के अनुसार, कैमूर वन रेंज के घोरावल क्षेत्र में भालुओं की सबसे अधिक संख्या पाई जाती है। पिछले दो वर्षों में इनकी संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। वर्तमान में जिले में कुल 105 भालू हैं, जिनमें 32 नर और 73 मादा हैं। पूरा इलाका भालुओं के लिए एक आदर्श प्राकृतिक वास बन चुका है।

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