सुप्रीम कोर्ट ने यमुना अथॉरिटी के भूमि अधिग्रहण को ठहराया जायज : किसानों की याचिकाएं खारिज,यह फैसला विकास योजनाओं के लिए एक बड़ी जीत 

UPT | सांकेतिक फोटो।

Nov 27, 2024 18:14

सुप्रीम कोर्ट ने यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (YEIDA) के भूमि अधिग्रहण को वैध ठहराते हुए किसानों की 140 याचिकाएं खारिज कर दीं। न्यायालय ने “कालीचरण बनाम उत्तर प्रदेश राज्य” मामले को आधार बनाते हुए विकास परियोजनाओं को जनहित में ठहराया।

National News : सुप्रीम कोर्ट ने यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (YEIDA) के भूमि अधिग्रहण को वैध ठहराते हुए किसानों की सभी 140 याचिकाएं खारिज कर दीं। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की खंडपीठ ने इस मामले में एकीकृत दृष्टिकोण अपनाया और “कालीचरण बनाम उत्तर प्रदेश राज्य” मामले को आधार बनाते हुए निर्णय दिया। यह फैसला यमुना अथॉरिटी की विकास योजनाओं के लिए एक बड़ी जीत है। 



भूमि अधिग्रहण की पृष्ठभूमि
फरवरी 2009 में, उत्तर प्रदेश सरकार ने गौतमबुद्ध नगर जिले में यमुना अथॉरिटी के तहत आने वाले गांवों में भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना जारी की। इसका उद्देश्य यमुना एक्सप्रेसवे और उससे सटे औद्योगिक, आवासीय, वाणिज्यिक क्षेत्रों के योजनाबद्ध विकास के लिए जमीन का उपयोग करना था। जिला प्रशासन ने भूमि अधिग्रहण के लिए पुराने कानून के आपातकालीन प्रावधान (धारा 17(1) और 17(4)) का इस्तेमाल किया।

किसानों के विरोध के मुख्य तर्क
आपातकालीन प्रावधानों का दुरुपयोग:
किसानों ने दावा किया कि सरकार ने धारा 5-ए के तहत आपत्तियां सुनने का अधिकार निलंबित कर दिया, जबकि कोई वास्तविक आपातकालीन स्थिति नहीं थी।

जनहित बनाम निजी विकास:
किसानों ने तर्क दिया कि अधिग्रहित भूमि का उपयोग सार्वजनिक हित के बजाय निजी वाणिज्यिक और आवासीय परियोजनाओं के लिए किया जा रहा था।

अधिग्रहण प्रक्रिया में देरी 
अधिसूचना और अंतिम घोषणाओं के बीच लंबे समय अंतराल को आपात स्थिति की कमी का संकेत बताया गया। पुराने कानून के अनुसार, यह अवधि एक वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला
  • अधिग्रहण की वैधता : अदालत ने कहा कि यमुना एक्सप्रेसवे परियोजना एकीकृत विकास योजना का हिस्सा थी, जिसमें औद्योगिक, आवासीय, और वाणिज्यिक क्षेत्रों का विकास शामिल है।
  • आपातकालीन प्रावधानों का औचित्य : परियोजना की विशालता और संभावित देरी के कारण आपातकालीन प्रावधानों का उपयोग उचित था। 12,868 भूमि मालिकों की आपत्तियां सुनना परियोजना में बाधा उत्पन्न कर सकता था।
  • न्यायिक समीक्षा का सीमित दायरा: अदालत ने कहा कि सरकार की प्रशासनिक संतोष पर केवल सीमित न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। इस मामले में सरकार ने आवश्यक प्रक्रियाओं का पालन किया। 
  • मुआवजा निर्धारण : उच्च न्यायालय द्वारा तय किया गया 64.7% अतिरिक्त मुआवजा उचित माना गया और इसे सभी प्रभावित भूमि मालिकों पर लागू करने का आदेश दिया गया।
विरोधाभासी मामलों का समाधान
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “श्योराज सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य” में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का निर्णय “राधेश्याम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य” से अलग था। राधेश्याम मामला केवल औद्योगिक विकास से जुड़ा था, जबकि यमुना एक्सप्रेसवे परियोजना बहुउद्देश्यीय विकास का हिस्सा थी।

किसानों की याचिकाएं खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने इस तथ्य पर जोर दिया कि अधिकांश भूमि मालिकों ने मुआवजा स्वीकार कर लिया है। केवल 140 अपीलकर्ताओं ने इसे चुनौती दी थी। अदालत ने परियोजना को व्यापक जनहित से संबंधित बताते हुए याचिकाएं खारिज कर दीं।

फैसले का प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने यमुना अथॉरिटी को बड़ी राहत दी है। इससे सरकार की विकास परियोजनाओं को गति मिलेगी और भूमि अधिग्रहण के विवादों में स्पष्टता आएगी। यह फैसला भविष्य में भूमि अधिग्रहण से जुड़े मामलों में मील का पत्थर साबित होगा। 

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