इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला : जाति अज्ञात होने पर एससी/एसटी एक्ट नहीं होगा लागू, जांच प्रक्रिया पर भी उठाए सवाल

UPT | Allahabad High Court

Aug 03, 2024 12:42

यदि आरोपी को शिकायतकर्ता की जाति की जानकारी नहीं है, तो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम लागू नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने यह निर्णय...

Short Highlights
  • आरोपी को शिकायतकर्ता की जाति की जानकारी नहीं  तो एससी/ एसटी अधिनियम लागू नहीं होगा
  • कोर्ट ने दो कारों के बीच टक्कर के बाद हुए विवाद में फैसला सुनाया
Prayagraj News : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है कि अगर आरोपी को शिकायतकर्ता की जाति की जानकारी नहीं है, तो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम लागू नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने यह निर्णय नसीम खान, फहीम और पांच अन्य याचिकाकर्ताओं की अर्जी पर सुनाया।

इस मामले में सुनाया फैसला
दरअसल यह मामला जालौन जिले का है, जहां एक रोड रेज की घटना में दो कारों के बीच टक्कर के बाद विवाद हुआ था। इस घटना में गाली-गलौज और मारपीट की शिकायत पर याचिकाकर्ताओं के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के साथ-साथ एससी/एसटी एक्ट के तहत भी मामला दर्ज किया गया था। निचली अदालत ने 27 जून, 2019 को इस मामले में दाखिल आरोप पत्र का संज्ञान लेते हुए आरोपियों को समन जारी कर दिया था। इस आदेश को चुनौती देते हुए आरोपियों ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

हाईकोर्ट ने जताया संदेह
उच्च न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई करते हुए जांच प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए। न्यायालय ने पाया कि विवेचना अधिकारी ने मामले की उचित जांच नहीं की थी। न तो किसी चश्मदीद गवाह का बयान दर्ज किया गया और न ही यह सुनिश्चित किया गया कि एससी/एसटी एक्ट के तहत अपराध बनता भी है या नहीं। इसके अलावा, आरोपियों की पहचान के लिए कोई पहचान परेड भी नहीं कराई गई थी। न्यायालय ने इन सभी बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए जांच प्रक्रिया की गुणवत्ता पर संदेह जताया।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का दिया हवाला
अपने फैसले में, उच्च न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय के एक पुराने निर्णय का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि एससी/एसटी एक्ट के तहत मामला तभी बनता है जब आरोपी को पीड़ित की जाति की जानकारी हो। इस मामले में, यह नहीं बताया गया कि आरोपियों को शिकायतकर्ता की जाति का ज्ञान था। इस आधार पर, न्यायालय ने 27 जून, 2019 को दाखिल आरोप पत्र, उसके संज्ञान के आदेश और जारी किए गए समन को रद्द कर दिया।

Also Read