इलाहाबाद हाईकोर्ट का अहम फैसला : सहमति से बने शारीरिक संबंध तो रेप नहीं, जानें क्या है मामला

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Oct 04, 2024 10:24

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक यौन शोषण मामले में ऐतिहासिक और अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सहमति के आधार पर बनाए गए शारीरिक संबंधों को बलात्कार नहीं...

Prayagraj News : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक यौन शोषण मामले में ऐतिहासिक और अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सहमति के आधार पर बनाए गए शारीरिक संबंधों को बलात्कार नहीं माना जा सकता। भले ही उनमें शादी का झूठा वादा शामिल हो। इस फैसले ने एक विशेष मामले में मुरादाबाद के आरोपी को बड़ी राहत दी है।


कोर्ट का फैसला और उसकी अहमियत
हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने कहा कि किसी व्यक्ति के साथ लंबे समय तक सहमति से बने शारीरिक संबंधों को रेप नहीं कहा जा सकता है। खासकर तब जब यह आरोप केवल शादी का वादा पूरा न करने के आधार पर लगाया गया हो। कोर्ट ने साफ कहा कि 12 से 13 साल के चले संबंधों में सहमति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और इसे रेप की परिभाषा में नहीं रखा जा सकता है। इस आदेश में कोर्ट ने मुरादाबाद के आरोपी श्रेय गुप्ता के खिलाफ चल रही क्रिमिनल प्रोसीडिंग को रद्द कर दिया। आरोपी ने महिला द्वारा लगाए गए रेप और ब्लैकमेलिंग के आरोपों को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

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क्या था पूरा मामला?
मामला मुरादाबाद का है, जहां 2018 में एक महिला ने श्रेय गुप्ता के खिलाफ महिला पुलिस स्टेशन में रेप और ब्लैकमेलिंग का केस दर्ज कराया था। महिला ने आरोप लगाया था कि उसका पति गंभीर रूप से बीमार था और उसी दौरान श्रेय गुप्ता ने उससे शारीरिक संबंध बनाए और वादा किया कि उसके पति की मृत्यु के बाद वह उससे शादी करेगा। यह संबंध 12 साल तक चला लेकिन 2017 में आरोपी ने दूसरी महिला से सगाई कर ली जिसके बाद महिला ने केस दर्ज कराया। महिला का कहना था कि उसने अपने पति के जीवित रहते हुए श्रेय के साथ संबंध बनाए थे और यह संबंध पूरी तरह से सहमति पर आधारित था। हालांकि शादी का वादा पूरा न होने के बाद उसने रेप का आरोप लगाया। आरोपी ने इस मामले में दाखिल चार्जशीट को हाई कोर्ट में चुनौती दी जहां कोर्ट ने यह अहम फैसला सुनाया।

सहमति से बने शारीरिक संबंध तो रेप नहीं- हाई कोर्ट
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में यह स्पष्ट किया कि सहमति से बने संबंधों को महज शादी के झूठे वादे पर बलात्कार नहीं कहा जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि 12 साल का लंबा समय इस बात की गवाही देता है कि यह संबंध महिला की सहमति से बना था और इसका आरोप केवल शादी के वादे के आधार पर बलात्कार के रूप में नहीं लगाया जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि जब संबंध इतने लंबे समय तक चलता है तो इसे सहमति का मामला मानना चाहिए न कि धोखाधड़ी का।

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