इलाहाबाद विश्वविद्यालय में गुप्त काल पर होगा शोध : कुलपति ने शोधपीठ को दी मंजूरी, छात्रों को मिलेगी फेलोशिप

UPT | इलाहाबाद यूनिवर्सिटी

Sep 22, 2024 16:59

प्रो. संजीव कुमार ने गुप्त काल के सिक्कों और उससे जुड़े इतिहास पर शोध किया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि प्रयागराज, कौशाम्बी और इसके आसपास का क्षेत्र गुप्त काल की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्रो. संजीव कुमार ने जानकारी देते हुए बताया कि सिक्कों पर…

Short Highlights
  • विश्वविद्यालय में गुप्त काल पर होगा शोध
  • इतिहास पर शोध में मिलेगी मदद
  • शोधपीठ का प्रस्ताव स्वीकार
Prayagraj News : इलाहाबाद विश्वविद्यालय में गुप्त काल के इतिहास पर शोध के लिए एक शोधपीठ स्थापित की जाएगी। विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग की ओर से 20 सितंबर को आयोजित कार्यक्रम में प्रसिद्ध इतिहासकार और न्यूमिस्मेटिक विशेषज्ञ प्रो. संजीव कुमार ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर संगीता श्रीवास्तव के समक्ष इस प्रस्ताव को रखा। कुलपति ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है। 

'गुप्त काल को समझने में मिलेगी मदद'
प्रो. संजीव कुमार ने गुप्त काल के सिक्कों और उससे जुड़े इतिहास पर शोध किया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि प्रयागराज, कौशाम्बी और इसके आसपास का क्षेत्र गुप्त काल की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्रो. संजीव कुमार ने जानकारी देते हुए बताया कि सिक्कों पर लिखी गई तारीखों और अन्य विवरणों से न केवल गुप्त काल को बेहतर समझने में मदद मिलेगी, बल्कि इस महत्वपूर्ण काल से संपूर्ण भारतीय इतिहास को एक नए दृष्टिकोण से भी देखा जा सकेगा। उन्होंने विश्वविद्यालय में इससे जुड़े शोध को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर जोर दिया।

शोधपीठ का प्रस्ताव स्वीकार
इस संदर्भ में, शिवली ट्रस्ट की ओर से विश्वविद्यालय में एक शोधपीठ (चेयर) स्थापित करने का प्रस्ताव कुलपति प्रोफेसर संगीता श्रीवास्तव ने स्वीकार किया। ट्रस्ट ने विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए कुछ फेलोशिप भी देने का प्रस्ताव रखा, जिसे कुलपति ने स्वीकृति दी।

इतिहास पर शोध में मिलेगी मदद
कुलपति प्रो. संगीता श्रीवास्तव ने कहा कि यह शोधपीठ इलाहाबाद विश्वविद्यालय के लिए मील का पत्थर साबित होगी। विश्वविद्यालय गुप्त काल पर शोध करने में शिवली ट्रस्ट के साथ मिलकर काम करेगा। इन प्रयासों से विश्वविद्यालय को भारतीय इतिहास पर शोध की दिशा में आगे बढ़ने में मदद मिलेगी। शोधपीठ की स्थापना इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकती है।

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