महाकुम्भ में अखाड़ों का लेखाजोखा सख्त : दक्षिणा का होता है हिसाब, एक रुपये की हेरफेर भी नहीं

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Jan 19, 2025 13:59

महाकुम्भ मेले में अखाड़ों के कायदे-कानून बेहद कड़े और सख्त होते हैं। इसमें एक रुपये की भी हेरफेर संभव नहीं है। अखाड़ों से जुड़ी व्यवस्था में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए पंच परमेश्वर की निगरानी में इनकी अर्थव्यवस्था की गहन जांच की जाती है।

Short Highlights
  • अखाड़ों के कायदे-कानून बेहद सख्त
  • प्रतिदिन होता है हिसाब-किताब
  • गड़बड़ी पाए जाने पर आरोपी का बहिष्कार
Prayagraj News : महाकुम्भ मेले में पहुंचने वाले सनातन धर्म के रक्षकों, यानी अखाड़ों, के बारे में हर कोई जानना चाहता है। इन अखाड़ों के कायदे-कानून बेहद कड़े और सख्त होते हैं। इसमें एक रुपये की भी हेरफेर संभव नहीं है। अखाड़ों से जुड़ी व्यवस्था में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए पंच परमेश्वर की निगरानी में इनकी अर्थव्यवस्था की गहन जांच की जाती है।

प्रतिदिन होता है हिसाब-किताब
आश्रमों, मठों, और मंदिरों से हजारों संत, महंत, और शिष्य जुड़े होते हैं, जिनकी दान-दक्षिणा और अरदास से आने वाली रकम का हिसाब हर दिन शाम को सख्ती से किया जाता है। इसके साथ ही भ्रमणशील रमता पंच को मिलने वाली दक्षिणा और भेंट का भी शाम को लेखा-जोखा रखा जाता है। इसके लिए आश्रमों में वैतनिक मुनीम और लेखा-जोखा रखने में माहिर संतों की नियुक्ति की गई है। पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन के मुखिया महंत दुर्गादास ने बताया कि सभी प्राप्त दक्षिणा और खर्चों को बही खाते में दर्ज किया जाता है, और हर दिन की रोकड़ का भी हिसाब किया जाता है।


गड़बड़ी पर बहिष्कृत
अखाड़े के श्रीमहंत और तीनों मुखिया महंत बही-खाते का निरीक्षण करते हैं। यदि लेनदेन में किसी ने गड़बड़ी की तो रमता पंच उन्हें सजा सुनाते हैं। बड़ी गलती करने पर हुक्का पानी बंद कर देते हैं और उन्हें समाज से बहिष्कृत भी कर दिया जाता है। अखाड़े में पूरी तरह से लोकतांत्रिक व्यवस्था लागू है। कई बार मानवीय गलती होने पर  सुधारने का भी अवसर दिया जाता है।

एक-एक रुपये का हिसाब 
जूना अखाड़ा के अंतर्राष्ट्रीय प्रवक्ता, श्रीमहंत नारायण गिरि ने बताया कि दिनभर की दान, दक्षिणा और खर्च का हिसाब शाम को दिया जाता है। छावनी में लाउडस्पीकर लगाकर रात 9 बजे से 12 बजे तक एक-एक रुपये का हिसाब दिया जाता है, और फिर उसे बैंक में जमा किया जाता है। यदि हेरफेर की कोशिश की जाती है, तो आरोपी साधु के गुरु परिवार और मढ़ी को नुकसान की भरपाई करनी पड़ती है। बड़ी गड़बड़ी की स्थिति में आरोपी का बहिष्कार भी कर दिया जाता है। 

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