11 साल बाद भी नहीं भर पाया मुजफ्फरनगर दंगे का जख्म : 534 मुकदमे दर्ज हुए थे, सिर्फ दो में आया फैसला... जो गांव छोड़कर गए, वापस नहीं लौटे

UPT | 11 साल बाद भी नहीं भर पाया मुजफ्फरनगर दंगे का जख्म

Sep 07, 2024 14:00

7 सितंबर 2013 को नंगला मंदौड़ में पंचायत के बाद मुजफ्फरनगर में भड़के सांप्रदायिक दंगे को आज 11 साल पूरे हो गए हैं। इस हिंसा में 60 से अधिक हत्याएं, दुष्कर्म और आगजनी की घटनाएं हुई थीं।

Short Highlights
  • 11 साल बाद भी नहीं भरा जख्म
  • मूलभूत सुविधाओं के लिए भटक रहे लोग
  • विधायक को गंवानी पड़ी थी कुर्सी
Muzaffarnagar News : 7 सितंबर 2013 को नंगला मंदौड़ में पंचायत के बाद मुजफ्फरनगर में भड़के सांप्रदायिक दंगे को आज 11 साल पूरे हो गए हैं। इस हिंसा में 60 से अधिक हत्याएं, दुष्कर्म और आगजनी की घटनाएं  हुई थीं। दंगे ने न केवल स्थानीय समुदायों को प्रभावित किया, बल्कि बल्कि एक हंसते-खेलते गांव को तबाह कर दिया। हालांकि, समय के साथ लोगों ने इस दंगे की पीड़ा को भुलाने की कोशिश की, लेकिन अभी भी सैंकड़ों परिवार दंगे के दंश से उबर नहीं पाए हैं। लोग मानते हैं कि यह दंगा एक बड़ी भूल थी।

जो गए, वो कभी नहीं लौटे
कवाल कांड के बाद, जब जिले में पंचायतों का दौर शुरू हुआ, तो 7 सितंबर 2013 को नंगला मंदौड़ में आयोजित एक पंचायत ने दंगे की चिंगारी को भड़का दिया। पंचायत में शामिल लोग जब अपने घर लौट रहे थे, तो उन पर हमले हुए, जिससे दंगा भड़क गया। इस हिंसा ने न केवल कई गांवों को तबाह किया, बल्कि लोगों की जिंदगी को भी प्रभावित किया। हालांकि, अब फिर से गांव के लोगों में आपसी भाईचारा बढ़ रहा है। लेकिन जो लोग गांव छोड़कर चले गए थे, वो अब तक वापस नहीं लौटे हैं।

सरकार से पुनर्वास की उम्मीद
दंगे के बाद पलड़ा गांव के कई निवासी रोजगार की समस्याओं का सामना कर रहे हैं। कुछ लोगों ने दंगे के बाद अपना रोजगार खो दिया और अब मजदूरी कर रहे हैं। दंगे ने केवल उनकी आजीविका को ही प्रभावित नहीं किया, बल्कि सामाजिक स्थिति को भी अस्थिर कर दिया है। अब, ग्रामीण समुदाय ने सरकार से उचित रोजगार और पुनर्वास की मांग की है ताकि प्रभावित परिवारों को फिर से स्थिरता मिल सके।

कई केस अदालतों में पेंडिंग
मुजफ्फरनगर दंगे के दौरान कुल 534 मुकदमे दर्ज किए गए, जिनमें से अधिकांश अब भी अदालत में विचाराधीन हैं। लगभग 150 मुकदमों में फाइनल रिपोर्ट लगाई गई है, लेकिन केवल दो मुकदमों में ही फैसले आए हैं। इनमें से एक कवाल कांड और दूसरा शामली के दुष्कर्म से संबंधित है। न्याय की इस प्रक्रिया में अधिकांश आरोपित बरी हो चुके हैं, और दंगे के मामलों में न्याय की पूरी प्रक्रिया अभी भी लंबित है।

झूठे मुकदमे भी हो गए खारिज
दंगे के दौरान दर्ज किए गए मामलों की जांच के लिए एसआईटी गठित की गई थी, जिसने 175 मामलों में चार्जशीट दाखिल की और 165 मामलों में फाइनल रिपोर्ट लगाई। झूठे पाए जाने पर 170 मुकदमे खारिज किए गए। दुष्कर्म के मामलों में केवल एक दोषी को सजा मिली, जबकि सामूहिक दुष्कर्म के दोषियों को 20 साल की सजा सुनाई गई। कवाल कांड के दौरान सचिन और गौरव की हत्या के सात दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। ये दोषी अब अलग-अलग जेलों में सजा काट रहे हैं, और हाल ही में उनकी जमानत खारिज कर दी गई है।

विधायक को गंवानी पड़ी थी कुर्सी
कवाल कांड के बाद हिंसा फैलाने के आरोप में भाजपा विधायक विक्रम सैनी को भी सजा सुनाई गई थी। सजा के कारण उनकी विधानसभा सदस्यता समाप्त कर दी गई थी। कवाल कांड के बाद हिंदू और मुस्लिम परिवारों के लोग आमने-सामने आ गए थे। कोर्ट ने भाजपा विधायक विक्रम सैनी को भी दो साल की सजा सुनाई थी।

मूलभूत सुविधाओं के लिए भटक रहे लोग
घटना को बीते भले ही 11 साल हो गए हों, लेकिन अब भी कई परिवार ऐसे हैं, जो मूलभूत सुविधाओं के लिए भटक रहे हैं। सांप्रदायिक दंगे के बाद लोगों ने शरणार्थी शिविरों में शरण ली थी। उनकी स्थिति आज भी सुधर नहीं पाई है। खरड़, फुगाना, काकड़ा और पलड़ा समेत तमाम गांवों के लोगों के दिल में दंगे का दंश अब भी मौजूद है।

Also Read