काशी में राक्षसी त्रिजटा की पूजा : एक अनोखी परंपरा जो पूरी करती है मनोकामनाएं

UPT | राक्षसी त्रिजटा का पूजन करते हुए

Nov 16, 2024 21:00

रावण द्वारा मां सीता का हरण कर अशोक वाटिका में रखा गया था जहां पर उनकी सुरक्षा एवं सेवा के लिए त्रिजटा नामक राक्षसी की तैनात की गई थी।

Varanasi News : भगवान शिव की नगरी काशी में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास है, जहां प्रत्येक देवी-देवता का पूजन विधि-विधान से किया जाता है। यहां एक राक्षसी त्रिजटा की भी पूजा होती है, जो एक अनोखी परंपरा का हिस्सा है। खास बात यह है कि त्रिजटा की पूजा कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन की जाती है। इस दिन श्रद्धालु बड़ी संख्या में मंदिरों में एकत्र होते हैं और विधिपूर्वक पूजा करते हैं, यह पूजा उनकी सभी मनोकामनाओं को पूरा करने का विश्वास दिलाती है। 

वाराणसी में एक अनोखी परंपरा
कहा जाता है कि त्रिजटा रावण के समय की एक प्रमुख राक्षसी थी, जिसे रावण ने माता सीता की सुरक्षा और सेवा के लिए अशोक वाटिका में तैनात किया था। रावण के कैद में सीता माता से सबसे ज्यादा नजदीकी रखने वाली त्रिजटा थी। त्रिजटा ने सीता माता की सेवा और देखभाल की, जिससे वे प्रसन्न हुईं। बदले में माता सीता ने त्रिजटा को आशीर्वाद दिया कि तुम भी एक दिन पूजी जाओगी। 



सीता माता के आशीर्वाद से पूजी जाती हैं त्रिजटा
आज काशी में त्रिजटा देवी का मंदिर स्थित है, जो साक्षी विनायक मंदिर के पास स्थित है। यह पूजा केवल एक दिन होती है, और श्रद्धालु सुबह से ही इस मंदिर में दर्शन के लिए लंबी कतारों में लग जाते हैं। त्रिजटा का विशेष पूजन किया जाता है, जिसमें बैगन और मूली को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है। मंदिर के महंत सिद्धार्थ तिवारी के अनुसार, त्रिजटा की पूजा की परंपरा सीता माता के आशीर्वाद के कारण शुरू हुई थी। वे मानते हैं कि त्रिजटा भक्तों को हर संकट से बचाने और मुसीबतों से पार लगाने में मदद करती हैं। इस परंपरा के अनुसार, हर साल कार्तिक पूर्णिमा के बाद त्रिजटा की पूजा होती है, जो श्रद्धालुओं के लिए एक विशेष धार्मिक महत्व रखता है।

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