Dev Diwali : त्रिदेव से जुड़ी है देव दीपावली की पौराणिक कथाएं, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त

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Nov 15, 2024 11:39

इस वर्ष कार्तिक पूर्णिमा की तिथि 15 नवंबर की सुबह 6:19 बजे से शुरू होकर 16 नवंबर को सुबह 2:58 बजे समाप्त होगी। पूजा के लिए सबसे ज़्यादा शुभ समय सूर्यास्त के दौरान रहेगा, जो कि शाम 5:10 बजे से लेकर 7:47 बजे तक का है।

Short Highlights
  • शुभ समय सूर्यास्त के दौरान रहेगा, जो कि शाम 5:10 बजे से लेकर 7:47 बजे तक का है।
  • इस नक्षत्र में भगवान शिव, विष्णु और कार्तिकेय की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है।
  • सुबह 6:19 बजे से शुरू होकर 16 नवंबर को सुबह 2:58 बजे समाप्त होगी।

 

Varanasi News : हिंदू धर्म में कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि का अत्यधिक महत्व है, जिसे देव दिवाली के नाम से भी जाना जाता है। इस तिथि को दिवाली से अलग विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यता प्राप्त है। मान्यता है कि इस दिन देवता धरती पर उतरते हैं और भगवान शिव तथा भगवान विष्णु से जुड़े ऐतिहासिक प्रसंग भी इस दिन की महिमा को और बढ़ाते हैं। इस दिन दीपक जलाकर देवताओं के प्रति श्रद्धा व्यक्त की जाती है, जिसे दीपदान कहा जाता है। देव दिवाली के दिन घर, मंदिर, और देव स्थानों पर दीप प्रज्वलित कर धार्मिक पूजन किया जाता है।

देव दिवाली का शुभ मुहूर्त और पूजा का समय
इस वर्ष कार्तिक पूर्णिमा की तिथि 15 नवंबर की सुबह 6:19 बजे से शुरू होकर 16 नवंबर को सुबह 2:58 बजे समाप्त होगी। पूजा के लिए सबसे ज़्यादा शुभ समय सूर्यास्त के दौरान रहेगा, जो कि शाम 5:10 बजे से लेकर 7:47 बजे तक का है। इस काल में देव दिवाली का पूजन और दीपदान करना अत्यधिक शुभ माना गया है। पूजा का कुल समय 2 घंटे 37 मिनट का रहेगा, जिसमें भक्तजन भगवान शिव, भगवान विष्णु और कार्तिकेय की पूजा करके अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की कामना कर सकते हैं।

देव दिवाली से जुड़े पौराणिक प्रसंग
  • देव दिवाली का पर्व तीन मुख्य पौराणिक घटनाओं से जुड़ा हुआ है। पहली घटना भगवान शिव से संबंधित है, जिसमें उन्होंने त्रिपुरासुर नामक दानव का वध किया था। मान्यता है कि त्रिपुरासुर के आतंक से देवता अत्यंत भयभीत हो गए थे, और भगवान शिव ने उसका संहार कर देवताओं को स्वर्ग पुनः प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया। इस दिन को देवताओं ने स्वर्ग लौटने की खुशी में दीप प्रज्वलित कर देव दिवाली के रूप में मनाया।
  • दूसरी घटना देवी पार्वती से जुड़ी हुई है। कार्तिक पूर्णिमा के इस पावन दिन पर देवी पार्वती ने दुर्गा रूप धारण कर महिषासुर का वध करने के लिए शक्ति अर्जित की थी। इस शक्ति अर्जन की स्मृति में काशी सहित विभिन्न स्थानों पर दीपों की महिमा को महत्व दिया गया।
  • तीसरी घटना भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार से संबंधित है। पुराणों के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा की सायंकाल में भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण किया था। इस अवतार में उन्होंने प्रलय के समय पृथ्वी पर जीवन की रक्षा की थी। इन घटनाओं की स्मृति में काशी के घाटों पर देवताओं ने दीप प्रज्वलित कर उत्सव मनाया। इसी परंपरा का अनुसरण करते हुए आज भी लोग इस दिन दीपदान करते हैं और देवताओं का आह्वान करते हैं।
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ज्योतिषीय मान्यता और नक्षत्र का प्रभाव
ज्योतिष शास्त्र में भी कार्तिक पूर्णिमा की तिथि का विशेष महत्व है। इस दिन कृतिका नक्षत्र का प्रभाव होता है, जो इस पर्व को और भी अधिक शक्तिशाली और शुभ बनाता है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इस दिन किए गए धार्मिक अनुष्ठान और पूजा का फल कई गुना अधिक प्राप्त होता है। भरणी नक्षत्र 14 नवंबर की मध्यरात्रि के बाद प्रारंभ होकर 15 नवंबर की रात 9:55 बजे तक रहेगा, इसके बाद कृतिका नक्षत्र का शुभ संयोग बनेगा। इस नक्षत्र में भगवान शिव, विष्णु और कार्तिकेय की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है।

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