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बदायूं के 14 गांवों में कल मनाया जाएगा रक्षाबंधन : आल्हा-ऊदल की विरासत, भंटेली क्षेत्र के निवासी एक दिन पहले मनाते हैं त्योहार

आल्हा-ऊदल की विरासत, भंटेली क्षेत्र के निवासी एक दिन पहले मनाते हैं त्योहार
UPT | Rakshabandhan 2024

Aug 17, 2024 18:58

पूरे देश में रक्षाबंधन 19 अगस्त को मनाया जाएगा, वहीं इन गांवों के लोग इस त्योहार को एक दिन पहले, यानी 18 अगस्त को ही मनाएंगे। यह प्रथा आल्हा-ऊदल के समय से चली आ रही है और स्थानीय लोग इसे...

Aug 17, 2024 18:58

Short Highlights
  • बदायूं के 14 गांवों में एक दिन पहले रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है
  • यह प्रथा आल्हा-ऊदल के समय से चली आ रही है
  • 14 गांवों को स्थानीय भाषा में 'भंटेली' कहा जाता है
Badaun News : उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले के कादरचौक इलाके में स्थित 14 गांवों में एक अनोखी परंपरा का चली आ रही है। जहां पूरे देश में रक्षाबंधन 19 अगस्त को मनाया जाएगा, वहीं इन गांवों के लोग इस त्योहार को एक दिन पहले, यानी 18 अगस्त को ही मनाएंगे। यह प्रथा आल्हा-ऊदल के समय से चली आ रही है और स्थानीय लोग इसे पूरी निष्ठा के साथ निभाते हैं। इन 14 गांवों को स्थानीय भाषा में 'भंटेली' कहा जाता है।

इस कारण एक दिन पहले मनाया जाता है रक्षाबंधन
इस परंपरा की जड़ें 12वीं शताब्दी में निहित हैं। स्थानीय इतिहासकारों के अनुसार, 1182 ईस्वी में दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान ने महोबा पर आक्रमण किया था। उस समय महोबा पर चंदेल वंश का शासन था और राजा परमाल सत्ता में थे। महोबा की रानी चंद्रबली ने अपने मुंहबोले भाई आल्हा से राज्य की सुरक्षा की गुहार लगाई। चूंकि युद्ध रक्षाबंधन के दिन होना तय था इसलिए आल्हा ने अपने अधीनस्थ 14 गांवों में एक दिन पहले ही रक्षाबंधन मनाने का निर्णय लिया।



इन गांवों में चली आ रही परंपरा
इस ऐतिहासिक घटना की याद में, कादरचौक, लभारी, चौडेरा, मामूरगंज, गढिया, ततारपुर, कचौरा, देवी नगला, सिसौरा, गनेश नगला, कलुआ नगला और किशूपरा जैसे गांवों के निवासी आज भी इस परंपरा का पालन करते हैं। यह प्रथा न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए अपने पूर्वजों और विरासत से जुड़े रहने का एक माध्यम भी है।

पुस्तकों में मिलता है जिक्र
वहीं स्थानीय निवासी जितेंद्र मिश्रा और सुधीर यादव ने इस परंपरा के महत्व के बारे में जानकारी दी। वे बताते हैं कि यह रीति न केवल चंदेल वंश, आल्हा और पृथ्वीराज चौहान के इतिहास से जुड़ी है, बल्कि आल्हा-ऊदल के इतिहास से संबंधित पुस्तकों में भी इसका जिक्र मिलता है। यह परंपरा इस क्षेत्र के लोगों को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़े रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जिसे वे पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ा रहे हैं।

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