Pilibhit
ऑथर Pankaj Parashar

पीलीभीत में आजादी की लड़ाई : जब अंग्रेजों ने की 26 साल के बहादुर युवा की हत्या तो उद्वेलित हो गया था पूरा जिला

जब अंग्रेजों ने की 26 साल के बहादुर युवा की हत्या तो उद्वेलित हो गया था पूरा जिला
Uttar Pradesh Times | दामोदर दास की शहादत ने पीलीभीत में चिंगारी का काम किया।

Nov 18, 2023 17:11

Pilibhit News : भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन (Indian Freedom Movement) में केवल राजा-रजवाड़ों, नवाब और रियासतों ने अंग्रेजों से लड़ाई नहीं लड़ी थी। बड़ी संख्या में आम आदमी, किसान, मजदूर और छात्रों ने भी शहादत दीं। पीलीभीत जिले के एक नौजवान ने आजादी की लड़ाई में प्राण न्यौछावर कर दिए थे।

Nov 18, 2023 17:11

Pilibhit News : भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन (Indian Freedom Movement) में केवल राजा-रजवाड़ों, नवाब और रियासतों ने अंग्रेजों से लड़ाई नहीं लड़ी थी। बड़ी संख्या में आम आदमी, किसान, मजदूर और छात्रों ने भी शहादत दीं। पीलीभीत जिले के एक नौजवान ने आजादी की लड़ाई में प्राण न्यौछावर कर दिए थे। तराई के इस जिले में क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की कहानियां व उनकी शहादत को आज भी याद किया जाता है। शहादत की यह कहानी देश की आजादी लिए 1942 में शुरू हुए 'अंग्रजों भारत छोड़ो' आंदोलन (Quit India Movement) की है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के साथ अंग्रेजों से लोहा लेने युवा वीर दामोदर दास आंदोलन में शामिल हुए। तब उनकी उम्र केवल 26 वर्ष थी। पीलीभीत में आंदोलन की कमान संभाल रहे दामोदर दास हंसकर अंग्रेज हुकूमत की गोली से शहीद हो गए थे।

पढ़ाई छोड़ आंदोलन में कूद गए दामोदर दास
दामोदर दास ने कम उम्र होने के बावजूद एक पीढ़ी को प्रेरित किया था। उनके साथ तमाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने आजादी की लड़ाई में अहम योगदान दिया। उन्हीं में से एक बीसलपुर के कमांडो कहे जाने वाले रामस्वरूप थे। दामोदर दास के नाम पर शहर में एक पार्क है। उनकी स्मृति में 15 अगस्त 1990 को शहर के वयोवृद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कुंवर भगवान सिंह ने इस पार्क का शिलान्यास किया था। दामोदर दास की शहादत को याद करते हुए लोग इस पार्क में श्रद्धांजलि देने आते हैं। 1916 में पीलीभीत में जन्मे दामोदर दास के पिता कपड़ा व्यापारी थे। वह 26 वर्ष की उम्र में आयुर्वेदिक कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे। तभी महात्मा गांधी ने 8 अगस्त 1942 को 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' आंदोलन की घोषणा कर दी। इस आंदोलन को लेकर देशभर के युवाओं में गर्मजोशी थी। जिसमें देशभक्त दामोदर दास ने स्वतंत्र संग्राम सेनानियों के साथ योजना बनाई। जुलूस निकालकर अंग्रेज प्रशासन का विरोध करने का निर्णय लिया गया। 13 अगस्त 1942 को दामोदर दास के नेतृत्व में जुलूस शुरू हुआ और गैस चौराहा पहुंचा। पुलिस ने आंदोलनकारियों को घेर लिया। लाठियों से बुरी तरह हमला किया। इस आंदोलन के प्रत्यक्षदर्शी बताते थे कि दामोदर दास को कई पुलिस वालों ने मिलकर पीटा था।

गंभीर रूप से घायल और यातना ने ली जान
दामोदर दास पुलिस के हमले में लहूलुहान हो गए। पुलिस ने उनका उपचार नहीं करवाया। गंभीर हालत में उन्हें जेल में डाल दिया गया। 14 अगस्त 1942 को पुलिस प्रताड़ना और यातनाओं के कारण उनकी मौत हो गई। वहीं, दूसरी ओर शहर में क्रांतिकारी आंदोलन की रणनीति बनाने वाले उनके साथी रामस्वरूप कमांडर को अंग्रेजों ने खूब प्रताड़ित किया। पीलीभीत में रहने कमांडर साहब के पोते जसवंत सिंह बताते हैं, "मेरे दादा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। उनसे प्रेरणा लेकर पिताजी जय सिंह भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बन गए थे। दोनों लोग दामोदर दास जी के बड़े नजदीक थे। इन सबने मिलकर स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका निभाई थी। दामोदर दास की क्रांति ने देश के आजादी के आंदोलन में बड़ी आहुति दी थी। अग्रणी रहे दामोदर दास जी की टीम में ही मेरे पिताजी ने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया था।"

दामोदर दास की शहादत ने चिंगारी का काम किया
दामोदर दास हंसकर की शहादत के बाद पीलीभीत में आंदोलन और तेज हो गया था। उनकी शव यात्रा में हजारों लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। पुलिस से हुई झड़प में एक पुलिसकर्मी को अपनी जान गंवानी पड़ी थी, जिसके चलते जयसिंह और उनके कई साथियों को आजीवन कारावास की सजा दी गई थी।  हालांकि, आजादी के बाद सभी को रिहा कर दिया गया था।

‘हमें शहीदों के वंशज होने पर गर्व’
जसवंत सिंह कहते हैं, "पिताजी ने कई बार दामोदर दास जी के बारे में बताया था। जब भी कोई मौका होता तो पिताजी उनके बारे में तफसील से जानकारी बताते थे। दामोदर जी बेहद निर्भीक थे। 13 अगस्त 1942 को शहर के गैस चौराहे पर अंग्रेजों की लाठियों ने उन्हें मरणासन्न कर दिया था। वह 14 अगस्त की रात देश के लिए जेल में शहीद हो गए। इससे पीलीभीत आक्रोशित हो गया। शहर में 15 अगस्त से फिर आंदोलन छिड़ा। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अंग्रेजी पुलिस पर हमला बोल दिया। पुलिस के एक सिपाही को मार डाला।" जसवंत सिंह आगे कहते हैं, "हम देश की सेवा करने वाले सपूतों के घर से हैं। इस बात का हमें बेहद गर्व है। हमारा पूरा जिला शहीदों की शहादत को नम आंखों के साथ याद करता है।"

दामोदर दास के हत्यारे को मारकर अमर हो गए प्रेम शर्मा
अंग्रेज पुलिस लाठियां बरसा रही थी। लाठियां खाकर छात्र दामोदर दास जमीन पर गिरकर शहीद हो गए। फ्रीडम फाइटर प्रेम सिंह शर्मा ने आंखों के सामने यह सब होते हुए देखा था। उसी समय उनका खून खौल उठा और शहादत का बदला लेने का निश्चय कर लिया। दामोदर दास के पार्थिव शरीर को जब अंत्येष्टि के लिए मुक्तिधाम ले जाया जा रहा था, तभी रास्ते में वह सिपाही दिख गया जिसने लाठियां बरसाई थीं। प्रेम सिंह शर्मा और उनके साथी सेनानियों ने सिपाही को घेर लिया और पीटकर मौत के घाट उतार दिया था। प्रेम शर्मा शहर के मोहल्ला बाग गुलशेर खां के निवासी थे।सिपाही की हत्या के बाद पुलिस सरगर्मी से उनकी तलाश कर रही थी। ऐसे में पगड़ी पहनकर और दाढ़ी बढ़ाकर उन्होंने सिख की वेशभूषा अपना ली। उपनाम शर्मा के स्थान पर सिंह कर लिया और अमृतसर पहुंच गए। वहां कुछ समय तक विद्यालय में प्रवेश लेकर पढ़ाई की। प्रेम सिंह शर्मा आजादी के आंदोलन के दौरान कई बार जेल गए। सिपाही की हत्या में वह नामजद थे। अदालत ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। उन्हें फतेहगढ़ जेल में रखा गया। 15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ, तब वह जेल से रिहा कर दिए गए। उसके बाद उन्होंने राजकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय से बीआईएमएस की डिग्री हासिल की। इसी महाविद्यालय में प्रवक्ता रहे। उनके पुत्र सुरेंद्र शर्मा बताते हैं, "पिताजी 1982 में सेवानिवृत्त हो गए थे। वर्ष 2005 में उनका निधन हो गया। उन्हें आजीवन इस बात का सुकून रहा कि साथी दामोदरदास के हत्यारे को उन्होंने सजा दी थी।"

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