मशहूर तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन के इंतकाल की खबर ने संगीत प्रेमियों और कला जगत को शोक में डाल दिया है। रविवार देर रात दिल ने उनका साथ छोड़ दिया, लेकिन उनकी ताल हमेशा दिलों में गूंजती रहेगी। बरेली स्थित दरगाह खानकाह-ए-नियाजिया से उनका खास जुड़ाव था। दरगाह के प्रबंधन मरहूम शब्बू मियां नियाजी से उनकी अक्सर बातचीत होती थी।
अलविदा उस्ताद जाकिर हुसैन : दिल ने छोड़ा साथ, लेकिन दिलों में गूंजेगी ताल, पांच रुपये से सफर शुरू कर दुनिया में बनाई पहचान, जानें बरेली से नाता ....
Dec 17, 2024 12:29
Dec 17, 2024 12:29
यहां स्थित दरगाह खानकाह-ए-नियाजिया से उनका खास जुड़ाव था। दरगाह के प्रबंधन मरहूम शब्बू मियां नियाजी से उनकी अक्सर बातचीत होती थी। हालांकि, शब्बू मियां नियाजी का भी कुछ महीने पहले ही इंतकाल हो गया है। उन्होंने कई बार बरेली दरगाह पर हाज़िरी देकर अकीदत का नजराना पेश करने की कोशिश की। मगर, अपनी मसरुफियत (व्यस्तता) के चलते नहीं आ सके।
पांच रुपये के नजराने से दुनिया में बनाई पहचान
उस्ताद जाकिर हुसैन का जन्म 9 मार्च 1951 को हुआ। उनका परिवार मुंबई से ताल्लुक रखता था। बेहद साधारण पृष्ठभूमि में पैदा हुए जाकिर ने बचपन से ही संगीत के प्रति रुचि दिखाई। उन्होंने तबला वादन की बारीकियां अपने पिता उस्ताद अल्लाह रक्खा से सीखीं। उन्होंने अपनी कला से विश्व मंच पर जगह बनाई। शुरुआती दिनों में उन्होंने तबला वादन के कार्यक्रमों में मात्र पांच रुपये के पारिश्रमिक पर प्रस्तुति दी। उस वक्त उनकी उम्र 14 साल थी, लेकिन उनकी लगन और कड़ी मेहनत ने उन्हें तबला वादन का "अंतरराष्ट्रीय उस्ताद" बना दिया।
अमीर खुसरो तबले के जनक, लेकिन पहचान दी उस्ताद ने
अमीर खुसरो एक प्रसिद्ध संगीतकार थे। उन्होंने ही तबले का आविष्कार किया था। ख़ुसरो को सितार और तबले के आविष्कार का श्रेय दिया जाता है। मगर, इसको दुनिया में पहचान उस्ताद जाकिर हुसैन ने दी। उस्ताद जाकिर हुसैन ने तबला वादन को सिर्फ एक वाद्य यंत्र नहीं रहने दिया, बल्कि इसे कला का नया आयाम दिया। उनकी प्रस्तुति शास्त्रीय संगीत से लेकर पश्चिमी धुनों तक हर क्षेत्र में प्रसिद्ध रही।
कुरैशी परिवार में हुआ जन्म
उस्ताद जाकिर हुसैन का नाम अल्लारका कुरैशी था। उनके पिता उस्ताद अल्ला रक्खा थे। पिता अल्ला रक्खा को सदियों पुराने भारतीय हाथ के ड्रम तबला के दुनिया के सबसे महान वादकों में से एक माना जाता है। जाकिर हुसैन ने उस परंपरा को आगे बढ़ाया है, न केवल दुनिया के सबसे प्रमुख भारतीय तालवादकों में से एक के रूप में पहचान बनाई। वह आधुनिक विश्व संगीत के वास्तुकारों में से एक के रूप में भी। उन्होंने भारत के प्रसिद्ध शास्त्रीय गायकों और वादकों के साथ काम किया।
सबसे कम उम्र में मिला पद्म श्री
उस्ताद जाकिर हुसैन को 1988 में पद्म श्री पुरस्कार मिला था। उस वक्त उनकी उम्र महज 37 वर्ष थी। इस उम्र में यह पुरस्कार पाने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति भी थे। इसी तरह 2002 में संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें पद्म भूषण का पुरस्कार दिया गया था। ज़ाकिर हुसैन को 1992 और 2009 में संगीत का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार ग्रैमी अवार्ड भी मिला है। उन्होंने तीन बार ग्रैमी अवॉर्ड जीता। 22 मार्च 2023 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित किया था।
अपनी प्रस्तुतियों से भारतीय संगीत को दुनिया में लोकप्रिय बनाया
"शक्ति" और "प्लैनेट ड्रम" जैसे फ्यूजन बैंड के जरिए उन्होंने पश्चिमी और भारतीय संगीत का अनोखा संगम प्रस्तुत किया। उनकी जोड़ी पंडित रविशंकर, हरिप्रसाद चौरसिया, और अली अकबर खान जैसे महान कलाकारों के साथ बेहद लोकप्रिय रही।
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