महोबा में आज से कजली मेला शुरू : बुंदेली संस्कृति का सात दिवसीय उत्सव बनेगा आकर्षण का केंद्र

बुंदेली संस्कृति का सात दिवसीय उत्सव बनेगा आकर्षण का केंद्र
UPT | Kajali fair

Aug 20, 2024 12:46

यह मेला रक्षाबंधन के अगले दिन से शुरू होकर सात दिनों तक चलता है। इस दौरान लगभग एक लाख से अधिक लोगों के आने की उम्मीद है। मेले की शुरुआत एक भव्य शोभायात्रा से होगी, जिसका उद्घाटन...

Aug 20, 2024 12:46

Short Highlights
  • आज से प्रसिद्ध कजली मेला शुरू 
  • यह मेला सात दिनों तक चलता है
  • मेले का उद्घाटन प्रदेश के उद्यान एवं कृषि विपणन राज्यमंत्री दिनेश प्रताप सिंह करेंगे
Mahoba News : महोबा में आज से प्रसिद्ध कजली मेला शुरू हो रहा है, जो बुंदेलखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। यह मेला रक्षाबंधन के अगले दिन से शुरू होकर सात दिनों तक चलता है। इस दौरान लगभग एक लाख से अधिक लोगों के आने की उम्मीद है। मेले की शुरुआत एक भव्य शोभायात्रा से होगी, जिसका उद्घाटन प्रदेश के उद्यान एवं कृषि विपणन राज्यमंत्री एंव जिले के प्रभारी दिनेश प्रताप सिंह करेंगे।

कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का होगा आयोजन
कीरत सागर के पास दो किलोमीटर के क्षेत्र में फैले इस मेले में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। इनमें आल्हा गायन, लोकगीत, लोक नृत्य, राई नृत्य, बृज की होली, कॉमेडी नाइट और बॉलीवुड नाइट शामिल हैं। इन कार्यक्रमों के लिए मुंबई, लखनऊ, कानपुर, भदोही, सुल्तानपुर, मेरठ, पन्ना और टीकमगढ़ समेत कई शहरों से प्रसिद्ध कलाकारों को आमंत्रित किया गया है।



मेले का मुख्य आकर्षण बनेंगे कलाकार
वहीं मेले के मुख्य आकर्षणों में मुंबई के कॉमेडी कलाकार रविंद्र जॉनी, टेलीविजन सीरियल 'भाभी जी घर पर हैं' के लोकप्रिय पात्र दरोगा हप्पू सिंह और गायक कमाल खान शामिल हैं। इसके अलावा, स्थानीय कलाकार भी अपनी प्रस्तुतियाँ देंगे, जो बुंदेली संस्कृति की झलक दिखाएंगे।

रक्षाबंधन के अगले दिन से शुरू होगा है कजली मेला
बता दें कि कजली मेले का इतिहास 842 वर्ष पुराना है और यह आल्हा-ऊदल की वीरता से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि एक बार राजा पृथ्वीराज चौहान ने रक्षाबंधन के दिन महोबा पर आक्रमण किया था और रानी मल्हना के डोले लूट लिए थे। आल्हा-ऊदल ने पृथ्वीराज चौहान की सेना से मोर्चा लेकर इन डोलों को वापस लाया और उसके बाद से यह मेला मनाया जाने लगा। यह मेला न केवल एक सांस्कृतिक उत्सव है, बल्कि बुंदेलखंड के गौरवशाली इतिहास और परंपराओं का भी प्रतीक है।

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