यहां के महाराजा द्वारा जनता के लिए बनाए गए अस्पताल आज भी जिले को रोशन कर रहे हैं। जो इलाके की जनता को आज भी इलाज उपलब्ध करा रहे हैं। वहीं राजाओें से जुड़े कई और भी किस्से हैं, जिनके बारे में आपको रूबरू कराएंगे।
राजाओं की देन हैं यहां के अस्पताल : जिले का नाम रोशन कर रहा है बलरामपुर अस्पताल, राजाओं ने कराए बड़े काम
Nov 18, 2023 17:10
Nov 18, 2023 17:10
- जिले का नाम रोशन कर रहा है बलरामपुर अस्पताल, राजाओं ने कराए बड़े काम
- राजाओं की देन हैं यहां के अस्पताल
जनता की परेशानी को देखते हुए बनाए अस्पताल
ऐतिहासिक जानकारी के अनुसार महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह ने 22 मार्च 1937 को यहां के शासन का प्रबन्ध संभाला तो इस नगर में केवल दो चिकित्सालय थे। ग्रामीण जनता की कठिनाइयों को देखते हुए उन्होंने 21 अस्पताल ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित किये। जो जनता को समर्पित किए गए। आज तक भी ये अस्पताल राजाओं की रियासत की बिल्डिंग में चल रहे हैं। अस्पताल बन्द न हों इसके लिए एमपीपी ‘ट्रस्ट फार आउट पेशेंट महारानी इन्द्रकुंवरि महिला चिकित्सालय, प्रसूति एवं बाल कल्याण विभाग तथा एमपीपी ट्रस्ट फार "वॉ" एक्स-रे डिपार्टमेन्ट बनाए गए। सीतापुर नेत्र चिकित्सालय की नींव बलरामपुर के राजा द्वारा ही रखी गई और उसकी पर्याप्त धन से सहायता भी की गई। यहां मौजूद लखनऊ मेडिकल कॉलेज और लखनऊ में स्थित बलरामपुर अस्पताल आज भी बलरामपुर का नाम रोशन कर रहे हैं। वर्ष 1869 में बलरामपुर राज की जमीन एवं 2 लाख रूपये लगाकर महाराजा दिग्विजय सिंह ने इसकी स्थापना की थी।
कृषि फार्म और चकबंदी की शुरूआत
बलरामपुर रियासत ने डेयरी विभाग के माध्यम से कई मॉडल फार्म स्थापित किए, जिसमें महराजगंज जयप्रभा ग्राम, सिरसिया कृषि फार्म तथा तुलसीपुर राजमहल के निकट पैड़ी का फार्म होता था। कृषि को बढ़ावा देने के लिए विदेशों से कृषि वैज्ञानिकों को बुलाया जाता और उनकी तकनीक अपनाई जाती थी। फसल को जंगली जानवर से बचाने के लिए तीन फुट गहरी तथा तीन फुट ऊपर कुल छह फुट की ऊंचाई की 34 मील लम्बी खाई बांधकर उस पर अइल की सघन झाड़ी लगाने में लाखों रुपये खर्च किए गए। कृषि में सुधार लाने के उद्देश्य से उन्होंने सन् 1937 में अपने राज्य में चकबन्दी शुरू कराई। प्रदेश में चकबन्दी का यह प्रथम सूत्रपात था।
लगवाए गए सात सौ नलकूप
सन् 1930-31 में थर्मल पावर स्थापित हो गया तो सिंचाई व्यवस्था सुदृढ़ करने के लिए नलकूपों की स्थापना की जाने लगी। बलरामपुर राज द्वारा सन् 1930-35 के बीच बलरामपुर राज्य में सिंचाई हेतु नलकूपों का जाल बिछाया गया। जबकि प्रदेश के अन्य क्षेत्रों से नलकूपों का कहीं नामोनिशान तक न था। अमेरिकी इंजीनियर फ्रेंकलिंक ने राज्य का सर्वे करके रिपोर्ट दी, जिसके अनुसार सात सौ नलकूप लगाए गए। राप्ती के उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र में जहां नलकूप लगाना सम्भव नहीं था। वहां सिचाई के लिए बांध बनाकर सरोवर तैयार किए गए। इनमें कोहरगड्डी विषेश रूप से उल्लेखनीय है। नौ मील के घेरे में स्थित इस सरोवर की क्षमता 442 मिलियन घनफिट थी और इससे 8075 एकड़ भूमि की सिंचाई हो सकती है। गणेशपुर, भगवानपुर तथा मोतीपुर बसेहवा भी अच्छे कुण्ड हैं। रेतवागढ़, राजधाट और पिपरा की नहरें भी खुदवाई गईं।
यहां का प्राणि उद्यान
जमींदारी उन्मूलन तक बलरामपुर राज्य के अर्न्तगत 72 हजार हेक्टेयर प्राकृतिक वन तथा 20 हजार एकड़ आरोपित वन थे। इसके अतिरिक्त 40 लाख फुटकर पेड़ थे। यहां के बनकटवा क्षेत्र में पहले काले शीशम के वृक्ष होते थे, जिसकी मांग देश के सुदूर क्षेत्रों में होती थीं। शहर में स्थित आनन्द बाग ज्योति टॉकीज और कोल्ड स्टोरेज के निकट का वास्तविक नाम आनन्द बाग जू था। इसमें चीता, हिरन आदि के अलावा बहुत तरह के पशु-पक्षी थे। जिन्हें बाद में लखनऊ चिड़ियाघर को दे दिया गया।
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