इस जिले के इतिहास में एक नाम आता है राजा माधव सिंह, जिनको लेकर काफी कहानी और किस्से मौजूद हैं। आज उनसे जुड़ी कई कहानियों से आपको रूबरू कराने जा रहे हैं।
राजा-महाराजाओं का बलरामपुर : राजा माधवसिंह से इस जिले को मिली है खास पहचान, पुत्री बली कुप्रथा का किया था अंत
Nov 18, 2023 16:47
Nov 18, 2023 16:47
- राजा माधवसिंह से इस जिले को मिली है खास पहचान, पुत्री बली कुप्रथा का किया था अंत
राजा माधव सिंह
बलरामपुर के राजा गंगा सिंह की मृत्यु के बाद 1439 में राजा माधव सिंह गद्दी पर बैठे। इनके समय में इकौना राज की पूर्वी सीमा पर स्थित रामगढ़ गौरी परगने के तत्कालीन भू-स्वामी खेमू चौधरी द्वारा कई वर्षों से चौधर (कर) अदा न करने के कारण राजा माधव सिंह ने खेमू चौधरी पर चढ़ाई कर दी थी। खेमू चौधरी से हुए संघर्ष में राजा माधव सिंह के द्वितीय पुत्र बलराम शाह अल्पायु में ही मारे गए थे। जिसके बाद राजा माधव सिंह ने खेमू को पराजित करके उस इलाके को अपने अधीन कर लिया। सन् 1480 में राजा माधव सिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र राजा कल्याण शाह ने 1480 से 1500 ई. तक तथा उनके पुत्र राजा प्राण चन्द्र ने सन् 1500 से 1546 ई. तक शासन किया।
लंबे समय तक किया राज
राजा प्राण चंद्र की मृत्यु के बाद 1546 से 1600 ई0 तक राजा तेज शाह ने और सन् 1600 से 1645 तक राजा हरिवंश सिंह ने बलरामपुर पर राज किया। राजा हरिवंश सिंह की मृत्यु पर उनके ज्येष्ठ पुत्र छत्र सिंह ने सन् 1645 से 1695 ई. तक राज किया। उनके तीन पुत्रों में राजा नारायण सिंह को यह राज मिला। पिता राजा नारायण सिंह के निधन के बाद 1737 से 1781 तक राजा पृथ्वीपाल सिंह, 1781 से 1817 तक राजा नौसेना सिंह, 1817-1830 तक राजा अर्जुन सिंह, 1830 से 1836 तक राजा जय नारायण सिंह ने शासन किया। उनके मृत्योपरान्त उनके पुत्र दिग्विजय सिंह ने 1836 से 1882 तक शासन किया।
समाप्त की पुत्री बली की कुप्रथा
इतिहासकार बताते हैं कि पूरे अवध में तत्कालीन छत्रिय जाति में पुत्री बली की कुप्रथा चली आ रही थी। जिसे बलरामपुर के तत्कालीन महाराजा दिग्विजय सिंह ने बंद कराया था। महाराजा दिग्विजय सिंह निःसंतान थे, इसलिए उनकी मृत्यु के बाद 30 जून 1882 ई. को बड़ी महारानी इन्द्र कुवंरि ने राजकाज संभालते हुए 08 नवम्बर 1883 ई. को ज्योनार गांव के अपने खानदान के ही एक बालक उदित नारायण सिंह को गोद लिया। जिसका नाम भगवती प्रसाद सिंह रखा। भगवती प्रसाद सिंह ने 1893 में सत्ता संभाली और 1921 तक शासन किया। उनके बाद महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह ने 1921 से 1964 तक राजकाज संभाला। महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह के निधन के बाद महारानी राजलक्ष्मी कुमारी देवी के दत्तक पुत्र महाराजा धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह ने 1964 में राज्य की बागडोर संभाली। उनकी मृत्योपरान्त वर्तमान महाराजा जयेन्द्र प्रसाद सिंह ने 30 जनवरी 2020 को कार्यभार संभाला। परिवार के सदस्य इन्हें ‘बाबा राजा' कह कर पुकारते थे।
राजा का मुकुट और रियासत
महाराजा जयेन्द्र प्रसाद सिंह की मौत के बाद महाराजा धर्मेंद्र प्रताप सिंह ने बलरामपुर रियासत का मुकुट धारण किया। 60 वर्ष की उम्र में बलरामपुर के महाराजा धर्मेंद्र प्रताप सिंह की दिल का दौरा पड़ने के कारण लखनऊ में निधन हो गया था। जिसके बाद उनके अंतिम दर्शन में कई बड़ी राजनीतिक हस्तियां शामिल हुई थीं। वही महाराजा धर्मेंद्र प्रताप सिंह की मृत्यु के बाद महाराजा धर्मेंद्र सिंह के इकलौते पुत्र जयेंद्र प्रताप सिंह को उत्तराधिकारी घोषित किया गया और वर्तमान में बलरामपुर राजा का मुकुट जयेंद्र प्रताप सिंह धारण करते हैं और बलरामपुर जिले के नील बाग पैलेस में अपने परिवार के साथ रहते हैं।
यहांं था इंजीनियरिंग विभाग
बलरामपुर जिले में विद्युत व्यवस्था और रेल लाइन को लेकर बलरामपुर राज परिवार की एक अहम भूमिका है। राज परिवार ने सन् 1930-31 में बलरामपुर में राज्य इलेक्ट्रिक कंपनी बनाकर थर्मल पावर प्लांट स्थापित किया। इससे बलरामपुर, गोंडा और बहराइच को विद्युत आपूर्ति की जाती थी। यह थर्मल पावर उत्तर पूर्व रेलवे और सिंचाई कार्य के लिए प्रदेश सरकार को बिजली देता था। यहां का अपना इंजीनियरिंग विभाग भी था, जो निर्माण कार्यों को संपन्न कराता था। गोंडा से बलरामपुर रेल लाइन बनवाने में राजघराने का बहुत बड़ा योगदान था। बताते हैं कि जब इस मार्ग पर पहली रेल गाड़ी चली तो इन्जन के अगले भाग में लगे सिंहासन पर बैठकर तत्कालीन महाराजा भगवती प्रसाद सिंह गोंडा से बलरामपुर आए थे।
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