भारत-नेपाल सीमा पर स्थित इटहिया धाम शिव मंदिर में सावन के पूरे महीने श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। सावन के पहले सोमवार को भोर से ही भक्तों का आना शुरू हो गया। पूरा मंदिर बोल बम के जयकारों से गूंज उठा।
Maharajganj News : बोल बम के जयकारों से गूंजा इटहिया धाम, श्रद्धालुओं ने पंचमुखी शिवलिंग का किया जलाभिषेक
Jul 22, 2024 12:06
Jul 22, 2024 12:06
दूर-दराज से आते हैं श्रद्धालु
इटहिया धाम की महत्ता इसके ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व से और बढ़ जाती है। मंदिर के प्रबंधक मुन्ना गिरी के अनुसार, इस मंदिर की स्थापना सैकड़ों वर्ष पूर्व हुई थी। यह स्थान पूर्वांचल क्षेत्र में 'मिनी बाबा धाम' के रूप में विख्यात है, जो न केवल स्थानीय लोगों बल्कि दूर-दराज के क्षेत्रों से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भी आकर्षण का केंद्र है।
नेपाल से भी आते हैं भक्त
इस पवित्र स्थल की विशेषता यहां स्थापित पंचमुखी शिवलिंग है, जिसका जलाभिषेक करने के लिए हजारों की संख्या में भक्त कांवर लेकर आते हैं। यह केवल भारत के विभिन्न राज्यों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पड़ोसी देश नेपाल से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। बिहार और पूर्वांचल के क्षेत्रों से विशेष रूप से भक्तों का आगमन होता है, जो इस पवित्र स्थल पर जलाभिषेक कर अपने आप को धन्य मानते हैं।
मंदिर के प्रादुर्भाव की कहानी
इटहिया शिव मंदिर के प्रादुर्भाव की कहानी अत्यंत रोचक और आस्था से भरी हुई है। यह कथा निचलौल इस्टेट के राजा वृषभसेन से जुड़ी हुई है, जो भगवान शिव के परम भक्त थे। कहा जाता है कि राजा की गोशाला में नंदिनी नाम की एक गाय थी, जिससे उनका विशेष लगाव था। एक समय ऐसा आया जब नंदिनी ने दूध देना बंद कर दिया और वह अपना सारा दूध जंगल की घनी झाड़ियों में चढ़ाने लगी।
इस अजीब व्यवहार से चिंतित होकर राजा ने उस स्थान की खुदाई करवाई, जहां गाय अपना दूध चढ़ाती थी। खुदाई के दौरान एक अद्भुत पंचमुखी शिवलिंग प्रकट हुआ। इस दिव्य दर्शन से राजा भावविभोर हो गए और उन्होंने नियमित रूप से शिवलिंग की पूजा-अर्चना प्रारंभ कर दी। कहा जाता है कि इस भक्ति के फलस्वरूप राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, जिसका नाम उन्होंने रतनसेन रखा। तब से निचलौल की धरती रत्नसेन के नाम से प्रसिद्ध हो गई।
एक महीने चलता है मेला
वर्तमान में, इटहिया का बाबा भोलेनाथ मंदिर श्रावण मास में एक महीने तक चलने वाले भव्य मेले का केंद्र बन जाता है। यह मेला न केवल धार्मिक महत्व का है, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक मेल-मिलाप का भी एक महत्वपूर्ण अवसर है। हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां एकत्र होते हैं, जो न केवल पूजा-अर्चना करते हैं बल्कि इस अवसर पर लगने वाले मेले का भी आनंद लेते हैं।
श्रद्धालुओं की सुरक्षा का पूरा ध्यान
मंदिर प्रशासन और स्थानीय प्रशासन द्वारा श्रद्धालुओं की सुरक्षा और सुविधा का पूरा ध्यान रखा जाता है। लगभग 300 पुलिसकर्मियों की टुकड़ी मंदिर परिसर और आसपास के क्षेत्रों में तैनात रहती है। इसके अलावा, आधुनिक तकनीक का भी उपयोग किया जाता है, जिसमें ड्रोन कैमरों द्वारा निगरानी शामिल है। यह सुनिश्चित किया जाता है कि भक्तों को किसी प्रकार की असुविधा न हो और वे शांतिपूर्वक अपनी श्रद्धा व्यक्त कर सकें।
यातायात व्यवस्था पर विशेष ध्यान
वाहनों की पार्किंग व्यवस्था भी सुनियोजित तरीके से की जाती है, ताकि दूर-दराज से आने वाले श्रद्धालुओं को कोई परेशानी न हो। स्थानीय पुलिस को विशेष निर्देश दिए जाते हैं कि वे यातायात व्यवस्था को सुचारु रूप से संचालित करें और भीड़ प्रबंधन पर विशेष ध्यान दें।
इटहिया धाम की यह विशेषता है कि यह न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह भारत-नेपाल के बीच सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यहां आने वाले नेपाली श्रद्धालु भारतीय संस्कृति और परंपराओं से सीधे जुड़ाव महसूस करते हैं, जो दोनों देशों के बीच सदियों पुराने संबंधों को और गहरा करता है।
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