यूपी में भाजपा के मंसूबों पर सपा पानी फेरती नजर आ रही है, साथ ही कांग्रेस ने भी बेहतर प्रदर्शन किया है। अभी तक के रुझानों के मुताबिक सपा 33 और कांग्रेस 6 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है। भाजपा 37 और रालोद 2 सीटों पर आगे है।
Lok Sabha Elections 2024 : मायावती पर भारी पड़े चंद्रशेखर, फायदे की चाहत में बसपा ने सबकुछ गंवाया
Jun 04, 2024 17:06
Jun 04, 2024 17:06
- यूपी में शून्य पर सिमटी बसपा
- चंद्रशेखर आजाद ने लोगों को चौंकाया
2019 में सपा बसपा ने मिलकर लड़ा चुनाव
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन होने के कारण मायावती फायदे में रहीं थीं। बसपा को 10 और सपा को 5 सीटें मिली थीं। सपा के लिए ये सियासी दोस्ती घाटे का सौदा साबित हुई थी और बाद में दोनों दलों की राहें फिर अलग-अलग हो गई थीं। लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर मायावती ने अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया था। कई बार उनके गठबंधन में शामिल होने की अटकलें लगी। लेकिन, मायावती ने इसे अफवाह और षड्यंत्र करार देते हुए कहा कि बसपा अपने दम पर चुनाव लड़ेगी।
उल्टा पड़ा मायावती का दांव
बसपा सुप्रीमो को यकीन था कि गठबंधन में कम सीटें मिलने के बजाय अकेले ज्यादा लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का उन्हें फायदा मिलेगा। दलित और अल्पसंख्यक वर्ग के मतदाता भी बसपा उम्मीदवार को वोट देंगे। इतना ही नहीं चुनाव परिणाम के बाद सीटों की संख्या के लिहाज से जरूरत पड़ने पर वह किसी गठबंधन को समर्थन देने के बदले में अपने सियासी हित साध सकेंगी। लेकिन, ये दांव पूरी तरह से उल्टा पड़ गया।
बसपा का वोट प्रतिशत खिसका, चंद्रशेखर ने दी पटखनी
बसपा के खाते में एक भी सीट जाती दिखाई नहीं दे रही है। पार्टी का खाता खुलना भी मुश्किल हो गया है। बसपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में 19 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल किए थे। अब तक के रुझानों में उसका वोट प्रतिशत भी महज 9.26 है। हालांकि विभिन्न एग्जिट पोल में भी बसपा की यही स्थिति बताई गई थी। लेकिन, पार्टी नेता दावा कर रहे थे कि हकीकत इससे पूरी तरह उलट होगी। सबसे अहम बात है कि मायावती की तरह दलित राजनीति के दम पर यूपी की सियासत में अपनी जगह बनाने में जुटे आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के प्रमुख चंद्रशेखर ने बड़ा उलटफेर किया है।
नगीना में बसपा प्रत्याशी वोट को तरसे
बिजनौर की नगीना लोकसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरे चंद्रशेखर लगातर अपनी बढ़त बनाए हुए हैं। उनकी जीत बड़े अंतर से तय है। इलेक्शन कमीशन के ताजा आंकड़ों के मुताबिक चंद्रशेखर आजाद को अभी तक 480678 मत मिले हैं। वह अपने निकटतम प्रतिद्वंदी से 137182 मतों से आगे चल रहे हैं। यहां दूसरे स्थान पर भाजपा के ओम कुमार हैं। उन्हें अभी तक 343496 मत मिले हैं। बसपा का प्रदर्शन इस सीट पर भी काफी खराब नजर आ रहा है। वह लड़ाई से पूरी तरह बाहर है। उसके प्रत्याशी सुरेंद्र पाल सिंह को महज 12781 वोट मिले हैं। अंतिम परिणाम घोषित होने पर चंद्रशेखर की जीत का आंकड़ा और बढ़ सकता है।
चंद्रशेखर पर हमलावर रही है बसपा
ये वही चंद्रशेखर हैं, जो बसपा सुप्रीमो मायावती को बुआ बोलते आए हैं। लेकिन, बसपा ने कभी उन्हें अहमियत नहीं दी। यहां तक की चुनावी महासमर के दौरान मायावती के भतीजे आकाश आनंद भी चंद्रशेखर को लेकर पूछे सवाल पर तंज कसते नजर आए। अब मतगणना के दिन एक तरफ बसपा का जहां सूपड़ा साफ हो रहा है, वहीं चंद्रशेखर उससे आगे निकल गए हैं।
आसपा का लोकसभा चुनाव में खुलेगा खाता
चंद्रशेखर आजाद ने 15 मार्च 2020 में आजाद समाज पार्टी (आसपा) की स्थापना की थी। इस बार पार्टी सिर्फ एक ही सीट नगीना पर सियासी मैदान में है। इस जीत के साथ उसका खाता खुलने जा रहा है। दलित समाज की लड़ाई लड़ने वाले चंद्रशेखर आजाद लोगों के बीच रावण के नाम से भी मशहूर हैं। विधानसभा चुनाव के दौरान चंद्रशेखर को सपा से गठबंधन की पूरी उम्मीद थी। लेकिन, बात नहीं बन सकी। इस बार चंद्रशेखर यूपी की सियासत में अपनी जीत के साथ बड़ा उलटफेर करने में सफल होते नजर आ रहे हैं।
मायावती की रणनीति हुई फेल
वहीं ये चुनाव के नतीजे मायावती के लिए बड़ा झटका साबित हुए हैं। उत्तर प्रदेश में पार्टी का प्रदर्शन चुनाव दर चुनाव लचर होता जा रहा है। विधानसभा में उसके पास महज एक सीट है तो लोकसभा में अब वह दस से शून्य पर पहुंचती नजर आ रही है। मायावती अपनी मंशा के अनुरूप मतदाताओं को जोड़ने में असफल साबित हुई हैं।
बसपा की हार के अहम कारण
सियासी विश्लेष्कों के मुताबिक एक तरफ एनडीए और इंडिया दोनों गठबंधन से जहां प्रमुख नेताओं ने चुनाव लड़ने का फैसला किया, जिससे उनके कार्यकर्ताओं में जोश नजर आया और मतदाताओं के बीच भी अच्छा संदेश गया। वहीं मायावती ने स्वयं चुनाव लड़ने से पहले की तरह दूरी बनाए रखी। यहां तक की भतीजे आकाश आनंद को भी सियासी मैदान में नहीं उतारा। उल्टा नेशनल कोओर्डिनेटर और अपना उत्तराधिकारी घोषित करने के बाद उन्हें दोनों जिम्मेदारियों से हटा दिया। मायावती चुनावी रैलियों के मामले में भी बेहद पीछे रहीं। दूसरी पंक्ति के दमदार नेताओं की कमी भी चुनाव में पार्टी को भारी पड़ी।
सपा कांग्रेस को इस तरह हुआ फायदा
मायावती को यकीन था कि दलितों के साथ अल्पसंख्यकों का वोट पार्टी उम्मीदवारों को मिलेगा। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ। ये वोट इंडिया गठबंधन अपने पक्ष में करने में सफल हुआ। सपा और कांग्रेस के बेहतर प्रदर्शन में इसका अहम भूमिका है। मायावती सिर्फ सोशल मीडिया के जरिए अपील करती रहीं, जबकि अन्य दल और उसके नेता धरातल पर सक्रिय रहे। इन तमाम खामियों का असर चुनाव परिणाम में नजर आ रहा है।
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