प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नई कैबिनेट में यूपी के आगामी विधानसभा चुनाव 2027 की रणनीति की भी झलक देखने को मिल रही है।
Modi Cabinet 2024: मिशन 2027 की दिखी झलक, जातीय-क्षेत्रीय संतुलन साधने पर जोर, समझें रणनीति
Jun 10, 2024 11:04
Jun 10, 2024 11:04
- ब्राह्मण, राजपूत, ओबीसी, दलित नेता बने मोदी सरकार का हिस्सा
- यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर रणनीति पर काम
भाजपा-सहयोगी दलों में इन्हें मिला मंत्री पद
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी से सांसद हैं। उनकी सरकार में राजनाथ सिंह, हरदीप सिंह पुरी कैबिनेट मंत्री, जयंत चौधरी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और जितिन प्रसाद, पंकज चौधरी, अनुप्रिया पटेल, प्रो. एसपी सिंह बघेल, कीर्तिवर्धन सिंह बीएल वर्मा और कमलेश पासवान को राज्य मंत्री के रूप में जगह दी गई है। इनमें एनडीए के सहयोगी दलों में अपना दल (सोनेलाल) से अनुप्रिया पटेल और राष्ट्रीय लोकदल से जयंत चौधरी शामिल हैं। अन्य सभी अन्य नेता भाजपा से हैं। राज्यसभा सांसदों में हरदीप पुरी और जयंत चौधरी हैं, बाकी सभी लोकसभा सदस्य हैं।
यूपी के हर हिस्से का रखा ध्यान
कैबिनेट में जिन नेताओं को जगह दी गई है, उनमें ब्राह्मण, राजपूत, ओबीसी, दलित जाति के प्रतिनिधित्व के जरिए जातीय संतुलन का ध्यान रखा गया है। वहीं पश्चिमी यूपी, पूर्वांचल और अवध क्षेत्र के जरिए क्षेत्रीय समीकरण साधने की कोशिश की गई है।
जितिन प्रसाद के जरिए ब्राह्मणों को साधने की कोशिश
जितिन प्रसाद के जरिए ब्राह्मणों को साधने का प्रयास किया गया है। जितिन प्रसाद इस बार पीलीभीत लोकसभा सीट से जीतकर लोकसभा पहुंचे हैं। यहां से वरुण गांधी का टिकट काटकर उन्हें उम्मीदवार बनाया गया था। जितिन प्रसाद को योगी कैबिनेट में भी जगह दी गई थी। उनके जरिए सरकार में ब्राह्मणों का प्रतिनिधित्व बनाए रखने का प्रयास किया गया है। पूर्वांचल में महेंद्रनाथ पाण्डेय के हारने के बाद इसे जातीय संतुलन के तौर पर देखा जा रहा है।
तीसरे कार्यकल में भी दो क्षत्रियों को मिली जगह
राजनाथ सिंह पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं और उनका कैबिनेट मंत्री बनना पहले से तय था। उन्होंने इस बार भी प्रधानमंत्री नरेंद्र के बाद दूसरे क्रम में शपथ ली। इसके अलावा गोण्डा कीर्तिवर्धन सिंह को मंत्री बनाकर उत्तर प्रदेश में क्षत्रियों की नाराजगी को दूर करने की कोशिश की गई है। दरअसल चुनाव के दौरान पश्चिमी यूपी में क्षत्रिय समाज की पंचायत में उनकी नाराजगी सामने आई थी। इसके जरिए ये संदेश दिया गया कि क्षत्रिय समाज भाजपा से खफा है। भाजपा का कई मौकों पर साथ देते आए रघुराज प्रताप सिंह राजा भैया ने भी किनारा कर लिया था। ऐसे में कीर्तिवर्धन सिंह के जरिए मोदी सरकार ने क्षत्रियों की संख्या में संतुलन बनाने का काम किया है। पिछले मंत्रिमंडल में भी राजनाथ सिंह के साथ वीके सिंह दो क्षत्रिय चेहरे थे।
जाट समाज को लेकर समझें समीकरण
रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी के जरिये पार्टी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट समाज को प्रतिनिधित्व देने का संदेश दिया है। लोकसभा चुनाव में रालोद उम्मीदवार दो सीटों पर विजयी रहे। पश्चिमी यूपी में संजीव बालियान के हारने के बाद जयंत चौधरी के जरिए पार्टी क्षेत्रीय और जातीय समीकरण साधने की कोशिश में लगी थी। जयंत के जरिए इसकी भरपाई की गई है। इसके जरिए मोदी सरकार राजस्थान और हरियाणा के जाट समाज को भी संदेश देना चाहती है कि वह उनके साथ है। जाट आंदोलन की वजह से पार्टी को काफी नुकसान हुआ है। इसलिए वह यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर अभी से रणनीति पर काम कर ही है।
ओबीसी वर्ग को सबसे ज्यादा तरजीह
केंद्र सरकार में ओबीसी की हिस्सेदारी देखें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं इस वर्ग से आते हैं। इसके अलावा पंकज चौधरी, अनुप्रिया पटेल, राज्यसभा सांसद लोध समाज से आने वाले बीएल वर्मा शामिल हैं। पंकज चौधरी और अनुप्रिया पटेल कुर्मी समाज से आते हैं। अनुप्रिया पटेल ने पूर्वांचल में मीरजापुर से जीत की हैट्रिक लगाकर लोकसभा पहुंची हैं। वहीं पंकज चौधरी महाराजगंज से विजयी हुए हैं। ऐसे में इनको मंत्री बनाने के पीछे पूर्वांचल के समीकरण अहम माने जा रहे हैं। इस बार पूर्वांचल में भाजपा को 2019 की तुलना में नुकसान उठाना पड़ा है। पार्टी को गोरक्ष क्षेत्र में 13 में से सिर्फ 6 सीटों पर जीत मिली, वहीं काशी क्षेत्र से 14 लोकसभा सीटों में से सिर्फ 4 पर उसके उम्मीदवार जीत हासिल कर सके।
इन बातों का रखा ध्यान
अनुप्रिया पटेल की पार्टी को काशी क्षेत्र की राबर्ट्सगंज से हार का सामना करना पड़ा। लेकिन, मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में भी उन्हें जगह दी गई है। इसी तरह गोरक्ष क्षेत्र के महाराजगंज से सातवीं बार जीत हासिल करने वाले पंकज चौधरी को भी राज्य मंत्री बनाया गया है। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक यूपी में कुर्मी मतदाताओं को साधना भाजपा के लिए सियासी लाभ के नजरिए से बेहद जरूरी है। इसलिए मोदी सरकार में इस वर्ग की अनदेखी नहीं की गई। वहीं लोध समाज के बीएल वर्मा के जरिए भी इस तबके को लुभाने का प्रयास किया गया है। कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह की एटा में हार के बाद ये अहम रणनीति मानी जा रही है।
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