मायावती पर हार के बाद दबाव : वोटकटवा की भूमिका से बाहर निकलकर बड़ी लकीर खींचने की दरकार

वोटकटवा की भूमिका से बाहर निकलकर बड़ी लकीर खींचने की दरकार
UPT | बसपा प्रमुख मायावती।

Jun 07, 2024 19:02

बसपा के वोट प्रतिशत में भी गिरावट देखने को मिली है। चुनाव दर चुनाव खराब प्रदर्शन के बाद मायावती हार की अलग-अलग वजह बताने से लेकर समीक्षा की बात करती आईं हैं। लेकिन, नतीजा नहीं बदला। 

Jun 07, 2024 19:02

Short Highlights
  • लोकसभा चुनाव में हार के बाद बसपा की अहम बैठक जल्द
  • मायावती रिपोर्ट के आधार पर लेंगी एक्शन
  • आकाश आनंद को लेकर तेज हुई चर्चा
  • यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर संगठन में फेरबदल तय
Lucknow News : लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती पर दबाव काफी बढ़ गया है। बसपा इस चुनाव में जहां एक भी सीट हासिल नहीं कर सकी, वहीं वह लड़ाई से भी पूरी तरह बाहर दिखी। उसके उम्मीदवार कहीं भी जीत की रेस में नजर नहीं आई, उनकी भूमिका सिर्फ वोटकटवा के तौर पर दिखी। पार्टी के वोट प्रतिशत में भी गिरावट देखने को मिली है। चुनाव दर चुनाव खराब प्रदर्शन के बाद मायावती हार की अलग-अलग वजह बताने से लेकर समीक्षा की बात करती आईं हैं। लेकिन, नतीजा नहीं बदला। 

बेहतर प्रदर्शन का मौका चूक गई बसपा
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक इस बार लोकसभा चुनाव में जिस तरह विपक्ष ने इंडिया गठबंधन बनाकर एनडीए को सत्ता से बाहर करने का प्रयास किया, उसमें मायावती के पास बेहतर प्रदर्शन का अच्छा मौका था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तीसर बार सरकार बनाने में विपक्ष से सबसे ज्यादा चुनौती इसी बार मिली। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और सपा ने सियासी समीकरण समझने में ज्यादा समझदारी दिखाई। इसका फायदा चुनाव नतीजों में साफ देखने को मिला।

बसपा का गिर रहा वोट प्रतिशत
अखिलेश यादव के बारे में कहा जा रहा है कि सबसे ज्यादा 37 सीटें जीतने के कारण  टीपू (अखिलेश यादव का घर का नाम) सुल्तान बनकर निकले। वहीं कांग्रेस अमेठी का गढ़ वापस हासिल करने में सफल हुई। उसका आंकड़ा 1 से बढ़कर 6 तक पहुंच गया, जबकि बसपा की बात करें तो वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में बसपा को 19.43 प्रतिशत वोट मिले थे और पार्टी 10 सीटें हासिल करने में सफल हुई थी। यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में पार्टी का वोट प्रतिशत घटकर 12.88 प्रतिशत हो गया था और उसे महज एक सीट मिली। इस बार वह शून्य पर सिमट गई है। हालत ये है कि एक समय 30 प्रतिशत वोट वाली बसपा 9.39 फीसदी पर पहुंच गई है। 

फैसले लेने में हुई बड़ी चूक
इस चुनाव में लखनऊ, कानपुर, महरजगंज, वाराणसी, रायबरेली, इलाहाबाद, अमेठी, बाराबंकी, देवरिया, डुमरियागंज, फैजाबाद, फर्रुखाबाद, कैसरगंज और नगीना लोकसभा जैसी सीटों पर बसपा उम्मीदवार दलित वोट को तरस गए। प्रदेश की 14 लोकसभा सीटों पर उसके उम्मीदवारों को 50 हजार से भी कम वोट मिले हैं। ये नतीजे इस बात का प्रमाण है कि बसपा की रणनीति पूरी तरह से फेल साबित हुई है। फैसले लेने में उससे बड़ी चूक हुई है।

अपनों का नहीं मिला साथ 
उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति करीब 25 फीसदी है। इसमें जाटव और गैर-जाटव बिरादरी शामिल है। जाटव कुल अनुसूचित जाति का करीब 54 फीसदी बताए जाते हैं। एक समय में ये दलित वोट बैंक मायावती की सबसे बड़ी ताकत हुआ करता था। इसके सहारे वह चार बार यूपी की मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हुईं। एक वक्त में उन्हें सोशल इंजीनियरिंग का बड़ा लाभ मिला। लेकिन, समय की करवट के हिसाब से रणनीति नहीं बदलने के कारण 2012 के बाद से बसपा की राह मुश्किल होती चली गई और अब वह अब तक के सबसे बड़े सियासी संकट से जूझ रही है। 

आकाश आनंद को लेकर चर्चा तेज
यूपी के सियासी माहौल में बसपा समर्थकों के बीच इस बात की चर्चा है कि अगर अब वास्तव में बहनजी ने रणनीति में बदलाव नहीं किया तो उनके वोटर और तेजी से छिटकते चले जाएंगे। मायावती का भतीजे आकाश आनंद को नेशनल कोओर्डिनेटर और अपना उत्तराधिकारी घोषित करने के बाद जिम्मेदारी से हटाने की भी चर्चा है। खासतौर से नगीना लोकसभा से निर्दलीय चंद्रशेखर आजाद की जीत के बाद ये चर्चा और तेज हो गई है। कई लोगों का मानना है कि आकाश आनंद को आगे बढ़ाना चाहिए, जिससे युवाओं को   पार्टी से जोड़ा जा सके। 

नगीना के नतीजों ने बढ़ाई चिंता
चंद्रशेखर आजाद के नगीना लोकसभा सीट में जीत की अहम वजह क्षेत्र में लगातार सक्रियता, मतदाताओं का विश्वास जीतने में सफल होना है। इसकी वजह से क्षेत्र में दलित और खासतौर पर अल्पसंख्यकों ने खुलकर वोट देकर उनकी जीत सुनिश्चित की। बसपा को भी यूपी में ऐसा विश्वास हासिल करने के लिए पसीना बहाना होगा।

2027 की परीक्षा की तैयारी करनी होगी शुरू
चुनाव नतीजों के बाद मायावती जल्दी ही पार्टी नेताओं के साथ अलग अलग बैठकें करेंगी।   उन्होंने वरिष्ठ पदाधिकारियों से रिपोर्ट तलब भी की है। बताया जा रहा है कि राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा के साथ इसे लेकर चर्चा भी हुई है, उन्होंने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। मायावती की 23 जून को लखनऊ में अहम बैठक भी है। कहा जा रहा है कि नतीजों के आधार पर कई जोनल कोऑर्डिनेटेर हटाए जा सकते हैं, क्योंकि प्रत्याशी चयन में इनकी अहम भूमिका बताई जा रही है। इसके अलावा कई जिलाध्यक्षों को भी पद से हटाया जा सकता है। लेकिन, बड़ा सवाल फिर भी यही है कि मायावती यूपी की सियायत में बड़ी लकीर खींचने में फिर कब सफल होंगी। उत्तर प्रदेश में 2027 में विधानसभा चुनाव उनकी अगली बड़ी परीक्षा हैं। 

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