वक्फ संपत्तियों पर बढ़ता विवाद : उत्तर प्रदेश में सुन्नी और शिया के पास है करोड़ों की संपत्ति, लोकसभा में बिल पर तीखी बहस

उत्तर प्रदेश में सुन्नी और शिया  के पास है करोड़ों की संपत्ति, लोकसभा में बिल पर तीखी बहस
UPT | वक्फ संपत्तियों पर बढ़ता विवाद।

Aug 10, 2024 01:22

उत्तर प्रदेश में सुन्नी और शिया वक्फ बोर्ड के पास लगभग 2.32 लाख संपत्तियां हैं, जिनकी अनुमानित कीमत करीब 2.75 लाख करोड़ रुपये के आसपास है। ये संपत्तियां धार्मिक, सांस्कृतिक...

Aug 10, 2024 01:22

Lucknow News : उत्तर प्रदेश में सुन्नी और शिया वक्फ बोर्ड के पास लगभग 2.32 लाख संपत्तियां हैं, जिनकी अनुमानित कीमत करीब 2.75 लाख करोड़ रुपये के आसपास है। ये संपत्तियां धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्त्व के साथ जुड़ी हुई हैं। राज्य में सुन्नी वक्फ बोर्ड के पास 1,17,161 संपत्तियां हैं, जबकि शिया वक्फ बोर्ड के पास 15,386 संपत्तियां हैं। इनमें प्रमुख मस्जिदें, मकबरे और इमामबाड़े शामिल हैं, जो धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं।

यूपी में सुन्नी वक्फ बोर्ड की कुछ प्रमुख संपत्तियों में लखनऊ की टीले वाली मस्जिद, जामा मस्जिद और नादान महल मकबरा शामिल हैं। जौनपुर की शाही अटाला मस्जिद और बहराइच की दरगाह सैयद सालार मसूद गाजी भी इस बोर्ड के अंतर्गत आती हैं। शिया वक्फ बोर्ड की प्रमुख संपत्तियों में लखनऊ का बड़ा इमामबाड़ा, छोटा इमामबाड़ा और रामपुर का इमामबाड़ा किला-ए-मुअल्ला शामिल हैं। इसके अलावा, फैजाबाद का बहू बेगम का मकबरा और बिजनौर की दरगाहे आलिया नजफ-ए-हिंद भी इस सूची में शामिल हैं।

वक्फ संपत्तियों पर अवैध कब्जे और विवाद
उत्तर प्रदेश में वक्फ संपत्तियों पर अवैध कब्जे और विवादों की स्थिति गंभीर होती जा रही है। हालांकि, राज्य सरकार के पास इस बात का कोई स्पष्ट लेखा-जोखा नहीं है कि इन संपत्तियों में कितनी संपत्तियों पर अवैध कब्जा है। राज्य सरकार वर्तमान में वक्फ की संपत्तियों और उनके विवादों की सूची तैयार करवा रही है, जो अभी तक पूरी नहीं हो पाई है। इन संपत्तियों में विवादों की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्तमान में 65,000 से अधिक मामले ट्रिब्यूनल में लंबित हैं। यह दर्शाता है कि वक्फ संपत्तियों के मालिकाना हक और उनके उपयोग को लेकर अनेक कानूनी और सामाजिक समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।

वक्फ क्या होता है?
वक्फ, इस्लामिक कानून के अंतर्गत, कोई भी चल या अचल संपत्ति हो सकती है, जिसे इस्लाम को मानने वाला कोई भी व्यक्ति धार्मिक कार्यों के लिए दान कर सकता है। इस दान की गई संपत्ति का मालिकाना हक किसी इंसान के पास नहीं होता, इसे अल्लाह का माना जाता है। वक्फ की गई संपत्ति का संचालन करने के लिए वक्फ बोर्ड बनाए जाते हैं, जो स्थानीय और राज्य स्तर पर काम करते हैं। देशभर में 30 वक्फ बोर्ड हैं, जो वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन करते हैं। ये बोर्ड न केवल मस्जिदों, दरगाहों और कब्रिस्तानों की देखभाल करते हैं, बल्कि स्कूल, कॉलेज, अस्पताल और अन्य सामाजिक कल्याण की संस्थाओं का भी संचालन करते हैं। भारतीय वक्फ परिसंपत्ति प्रबंधन प्रणाली (वामसी) के अनुसार, देश में कुल 3,56,047 वक्फ संपत्तियां हैं, जिनमें 8,72,324 अचल संपत्तियां और 16,713 चल संपत्तियां शामिल हैं।

वक्फ बोर्डों के कानूनी अधिकार और विवाद
वक्फ बोर्डों के पास वक्फ अधिनियम 1995 के तहत महत्वपूर्ण कानूनी अधिकार होते हैं। यह अधिनियम उन्हें वक्फ संपत्तियों का पंजीकरण, प्रबंधन और विवादों का निपटारा करने के अधिकार देता है। 2013 में इस अधिनियम में कुछ महत्वपूर्ण संशोधन किए गए थे, जिनके तहत वक्फ बोर्डों को अधिक शक्तियां प्रदान की गईं। राज्य वक्फ बोर्डों में वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण के लिए एक सर्वे कमिश्नर की नियुक्ति की जाती है। सर्वे कमिश्नर वक्फ संपत्तियों का लेखा-जोखा रखते हैं और विवादों का निपटारा करते हैं। वक्फ संपत्तियों की देखभाल करने वाले को मुतवल्ली कहा जाता है, जिसकी नियुक्ति राज्य वक्फ बोर्ड करता है।

वक्फ विधेयक 2024
8 अगस्त 2024 को, केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने लोकसभा में वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 और मुसलमान वक्फ (निरसन) विधेयक 2024 पेश किया। यह विधेयक वक्फ अधिनियम 1995 में 40 से अधिक संशोधनों का प्रस्ताव करता है। विधेयक में कई महत्वपूर्ण बदलावों की बात कही गई है, जो वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और संचालन को बेहतर बनाने के लिए लाए गए हैं।

वक्फ के प्रमुख प्रस्ताव
1.    धारा 40 का निष्कासन : वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 40 को हटाने का प्रस्ताव है, जिसके तहत बोर्ड को किसी संपत्ति के वक्फ संपत्ति होने का निर्णय लेने की शक्ति थी। इस बदलाव का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता लाना है।
2.    केन्द्रीय पोर्टल और डेटाबेस : विधेयक में वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण के लिए एक केन्द्रीय पोर्टल और डेटाबेस का प्रस्ताव है। यह पोर्टल वक्फ संपत्तियों के बारे में जानकारी संग्रहीत करेगा और इसे सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराएगा। यह प्रस्तावित बदलाव वक्फ संपत्तियों की पारदर्शिता और सूचना के आदान-प्रदान को बढ़ावा देगा।
3.    नई धाराएं 3ए, 3बी और 3सी : विधेयक में नई धाराएं 3ए, 3बी और 3सी शामिल करने का प्रावधान है। ये धाराएं वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण, पोर्टल और डेटाबेस पर वक्फ संपत्तियों के विवरण दाखिल करने और वक्फ संपत्तियों की गलत घोषणा को रोकने से संबंधित हैं।
4.    मुस्लिम महिलाओं को प्रतिनिधित्व : विधेयक में प्रस्ताव है कि केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में कम से कम दो मुस्लिम महिलाओं को शामिल किया जाएगा। यह प्रस्ताव वक्फ बोर्डों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने का प्रयास है।
5.    बोहरा और आगाखानी समुदायों के लिए अलग औकाफ बोर्ड : विधेयक में बोहरा और आगाखानी समुदायों के लिए अलग औकाफ बोर्ड की स्थापना का प्रावधान है। यह प्रस्तावित बदलाव शिया, सुन्नी, बोहरा, आगाखानी और अन्य पिछड़े वर्गों के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने का प्रयास है।
6.    सीईओ की नियुक्ति : विधेयक में धारा 23 में संशोधन का प्रस्ताव है, जिसके तहत वक्फ बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) की नियुक्ति के लिए किसी धर्म की आवश्यकता को हटा दिया जाएगा। यह बदलाव प्रशासनिक व्यवस्था को सुधारने और विशेषज्ञता के आधार पर नियुक्तियों को सुनिश्चित करने के लिए किया गया है।

वक्फ पर विपक्ष का विरोध
वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 को लेकर लोकसभा में विपक्ष ने तीखा विरोध दर्ज किया है। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने इस विधेयक को "सोची-समझी राजनीति" के तहत लाया गया बताते हुए विरोध किया। उन्होंने कहा कि यह विधेयक वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में नॉमिनेटेड सदस्य जोड़ने का प्रयास है, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया के खिलाफ है।

अखिलेश यादव ने यह भी कहा कि वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा इस विधेयक को लेकर अपने कट्टर समर्थकों को खुश करने का प्रयास कर रही है।
कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल ने भी विधेयक का विरोध किया और कहा कि यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन करता है, जो धार्मिक संस्थाओं को अपने धार्मिक कार्यों का प्रबंधन करने का अधिकार देता है।
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी विधेयक का विरोध किया और कहा कि यह विधेयक वक्फ बोर्डों की स्वायत्तता को छीनने का प्रयास है। उन्होंने कहा कि सरकार वक्फ बोर्डों के प्रशासनिक ढांचे में बदलाव करके उन पर सरकारी नियंत्रण बढ़ाना चाहती है, जिससे उनकी स्वतंत्रता प्रभावित होगी।

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