देवी पुराण के मुताबिक देवी माता सती का कर्ण भाग हरदोई के इसी स्थान पर गिरा था, जो माता श्रवण देवी के नाम से विख्यात है। माता श्रवण देवी की प्रतिमा पाषाण पंचमुखी है। इस प्रतिमा का किसी भी कारीगर के द्वारा निर्माण नहीं किया गया है।
सिद्ध शक्तिपीठ श्रवणदेवी माता का मंदिर : इस स्थान पर गिरा था माता सती का कान, जानें क्या है ऐतिहासिक महत्व
Apr 10, 2024 23:24
Apr 10, 2024 23:24
सुरेश तिवारी ने बताया कि जब इसकी जानकारी भगवान शिव को लगी तो वह विराट रूप में यज्ञ को विध्वंस करने के बाद करुण क्रंदन करते हुए सती का अधजला शरीर लेकर सारे जगत में भ्रमण करने लगे थे। शिव के इस विराट कंधे पर मां सती के अधजले शरीर और डरावने रूप को देखकर देवताओं ने ब्रह्मा और विष्णु का आह्वान किया था। विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के कई टुकड़े कर दिए थे। पृथ्वी पर जहां-जहां सती के अंग गिरे हैं, वहां पर सिद्ध शक्तिपीठ की स्थापना हुई है।
हरदोई के श्रवण देवी मंदिर के स्थान पर गिरा था माता सती का कर्ण
देवी पुराण के मुताबिक देवी माता सती का कर्ण भाग हरदोई के इसी स्थान पर गिरा था, जो माता श्रवण देवी के नाम से विख्यात है। माता श्रवण देवी की प्रतिमा पाषाण पंचमुखी है। इस प्रतिमा का किसी भी कारीगर के द्वारा निर्माण नहीं किया गया है। वैष्णो माता के दरबार के बाद में यह दूसरी पंचमुखी पाषाण प्रतिमा है। माता के दर्शन और पूजा-अर्चना करने से पंच सुखों की प्राप्ति होती है और पंचमहाभूत भी शांत होते हैं।
108 शक्ति पीठों मिलता है मंदिर का वर्णन
देवी भागवत में भी 108 शक्तिपीठों का वर्णन मिलता है। इसमें इस शक्तिपीठ का भी उल्लेख किया गया है। माता के परम भक्त राम प्रकाश शुक्ला ने बताया कि यह प्रतिमा एक पीपल के पेड़ के नीचे मिली थी। 1980 में खजांची सेठ समलिया ने स्वप्न में देवी को देखकर उनके आदेशानुसार इस सिद्ध शक्तिपीठ का जीर्णोद्धार कराया था। वैसे साल भर इस मंदिर में भक्त जनों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन आषाढ़ मास में देवी का एक विशालकाय मेला लगता है।
चंदन में घर्षण कर यज्ञ के लिए उत्पन्न की जाती है यज्ञशाला के लिए अग्नि
अनादिकाल से मंदिर की प्रतिमा के ठीक सामने स्थित एक विशाल यज्ञशाला में भव्य यज्ञ का आयोजन किया जाता है। खास बात यह है कि यज्ञ का आयोजन पुरानी पुरातन विधि से घर्षण करके आग उत्पन्न करने के बाद होता है। चंदन की लकड़ी पर तब तक मथेनी चलाई जाती है जब तक अग्नि उत्पन्न नहीं हो जाती है। उसी अनोखी आग से यज्ञशाला की अग्नि प्रज्ज्वलित की जाती है जिसे देखने के लिए देश ही नहीं अपितु विदेशों से लोग आते हैं।
नवरात्रि के दिनों में होता है विशाल भंडारा और शतचंडी महायज्ञ
नवरात्रि के दिनों ने यहां पर शतचंडी महायज्ञ होता है। हरदोई के अलावा शाहजहांपुर, सीतापुर, लखीमपुर, उन्नाव, लखनऊ, कानपुर के अलावा दूर-दूर से लोग माता के दर्शन करने के लिए आया करते हैं। मंदिर के पुजारी सुरेश तिवारी ने बताया कि यह पंचमुखी माता की प्रतिमा पृथ्वी पर अभी तक पाई गई। सभी पाषाण प्रतिमाओं से बिल्कुल अलग हैं जो अनोखी वास्तुकला को भी प्रदर्शित करती हैं। हर प्रतिमा का चेहरा बिल्कुल स्पष्ट है। हरदोई के जिला अधिकारी अविनाश कुमार ने बताया कि यह ऐतिहासिक आध्यात्मिक और पौराणिक मंदिर है जिसके रखरखाव के लिए समय-समय पर नगर पालिका की तरफ से प्रयास किया जाता रहता है। इसका हरदोई के गजेटियर में भी उल्लेख मिलता है। यह ऐतिहासिक मंदिर जिला प्रशासन की देखरेख में है।
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