यूपी में भाजपा की हार का कोई इक्का-दुक्का नहीं 12 कारण : आंतरिक समीक्षा रिपोर्ट में खुलासा, पढ़िए आज की सबसे बड़ी ख़बर

आंतरिक समीक्षा रिपोर्ट में खुलासा, पढ़िए आज की सबसे बड़ी ख़बर
UPT | यूपी में भाजपा की हार का कारण

Jul 08, 2024 12:00

टास्क फोर्स ने एक 15 पृष्ठ की रिपोर्ट प्रस्तुत की है। हार की कोई इक्का दुक्का नहीं बल्कि 12 वजह बताई गई हैं। इस रिपोर्ट में पार्टी के भीतर आंतरिक मतभेद और विपक्ष द्वारा संवैधानिक मुद्दों पर रणनीतिक ध्यान केंद्रित...

Jul 08, 2024 12:00

Short Highlights
  • टास्क फोर्स ने एक 15 पृष्ठ की रिपोर्ट प्रस्तुत की है
  • बीजेपी की हार के 12 कारण बताए गए हैं
  • पार्टी के 40,000 कार्यकर्ताओं से बात की गई 
Lucknow News : उत्तर प्रदेश में हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनावों में अपनी हार के कारणों को समझने के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने आंतरिक समीक्षा की। टास्क फोर्स ने एक 15 पृष्ठ की रिपोर्ट प्रस्तुत की है। हार की कोई इक्का-दुक्का नहीं बल्कि 12 वजह बताई गई हैं। इस रिपोर्ट में पार्टी के भीतर आंतरिक मतभेद और विपक्ष द्वारा संवैधानिक मुद्दों पर रणनीतिक ध्यान केंद्रित करने को प्रमुख कारकों के रूप में उजागर किया गया है।

टास्क फोर्स में 40,000 पार्टी कार्यकर्ताओं से बात की
यह व्यापक समीक्षा 78 लोकसभा क्षेत्रों में 40 टीमों द्वारा की गई थी, जहां प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में लगभग 500 पार्टी कार्यकर्ताओं का साक्षात्कार लिया गया। जिससे राज्यभर में कुल लगभग 40,000 कार्यकर्ताओं से बात की गई। अब इन निष्कर्षों को भाजपा के राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक में प्रस्तुत किया जाएगा। एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा, "भाजपा की आंतरिक समीक्षा महत्वपूर्ण आंतरिक और बाहरी चुनौतियों की ओर इशारा करती है। अगर जिन्हें भविष्य के चुनावों में उत्तर प्रदेश में अपना दबदबा फिर से हासिल करना है तो इन वजहों का समाधान करने की आवश्यकता है।" रिपोर्ट के अनुसार, भाजपा को सभी क्षेत्रों में वोटों में गिरावट का सामना करना पड़ा है। पार्टी के वोट शेयर में 8 प्रतिशत की गिरावट आई है। 2019 के चुनावों की तुलना में ब्रज, पश्चिमी यूपी, कानपुर-बुंदेलखंड, अवध, काशी और गोरखपुर क्षेत्रों में उल्लेखनीय नुकसान देखा गया है।

पीडीए और संविधान संशोधन बने भाजपा के लिए आफत
रिपोर्ट समाजवादी पार्टी (सपा) की बढ़त को प्रगतिशील लोकतांत्रिक गठबंधन (पीडीए) के समर्थन का श्रेय देती है। गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव एससी ने भी खुले तौर पर सपा का समर्थन किया है। संवैधानिक संशोधनों के संबंध में विवादास्पद बयानों ने पिछड़ी जातियों को भाजपा से दूर कर दिया। संवैधानिक संशोधनों पर भाजपा नेताओं की टिप्पणियों की आलोचना का विपक्ष द्वारा प्रभावी ढंग से उपयोग किया गया, जिससे यह धारणा बनी कि आरक्षण समाप्त कर दिया जाएगा। इसके अतिरिक्त, प्रतियोगी परीक्षाओं में पेपर लीक होने के मुद्दों ने पार्टी के प्रदर्शन को काफी प्रभावित किया है। सरकारी विभागों में संविदा कर्मियों की भर्ती और आउटसोर्सिंग पर विवाद ने असंतोष को और बढ़ा दिया। ‘उत्तर प्रदेश टाइम्स’ से बात करते हुए एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा, "भाजपा कार्यकर्ताओं में सरकारी अधिकारियों के व्यवहार को लेकर बड़ा असंतोष है। पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं को सहयोग नहीं दे रहे हैं। सरकारी अधिकारियों के इस समर्थन की कमी ने जमीनी स्तर पर विरोध को जन्म दिया।"

बीएलओ, बीएसपी और ओबीसी ने खेल बिगाड़ा
बूथ लेवल अधिकारियों द्वारा मतदाता सूचियों से बड़ी संख्या में नामों को हटाए जाने से पार्टी के वोट बैंक पर और प्रभाव पड़ा। जल्दबाजी में टिकट वितरण ने भी भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं में उत्साह कम कर दिया। रिपोर्ट पुलिस थानों और तहसील कार्यालयों के संबंध में राज्य सरकार के प्रति पार्टी कार्यकर्ताओं में स्पष्ट असंतोष को उजागर करती है। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले ठाकुर मतदाताओं ने भी भाजपा से दूरी बना ली। इस रिपोर्ट में कुर्मी, कुशवाहा और शाक्य जैसे पिछड़े समुदायों से समर्थन की कमी का उल्लेख किया गया है, जबकि अनुसूचित जाति के मतदाताओं, विशेष रूप से पासी और वाल्मीकि ने सपा और कांग्रेस का समर्थन किया। इसके अलावा, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के उम्मीदवारों ने मुस्लिम और अन्य वोटों को विभाजित नहीं किया, लेकिन जहां भाजपा के मजबूत उम्मीदवार थे, वहां वोट काटने में सफल रहे।

भाजपा की हार के 12 कारण
  1. संवैधानिक संशोधनों पर भाजपा नेताओं की टिप्पणियां और विपक्ष का यह नैरेटिव कि आरक्षण हटा दिया जाएगा।
  2. प्रतियोगी परीक्षाओं में पेपर लीक के मुद्दे।
  3. सरकारी विभागों में संविदा कर्मियों की भर्ती और आउटसोर्सिंग पर विवाद।
  4. सरकारी अधिकारियों के व्यवहार को लेकर भाजपा कार्यकर्ताओं में असंतोष।
  5. भाजपा कार्यकर्ताओं के प्रति सरकारी अधिकारियों का असहयोग, जिसके परिणामस्वरूप जमीनी स्तर पर विरोध हुआ।
  6. बूथ लेवल अधिकारियों द्वारा मतदाता सूचियों से बड़ी संख्या में नामों को हटाया जाना।
  7. जल्दबाजी में टिकट वितरण, जिससे भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं में उत्साह कम हुआ।
  8. पुलिस थानों और तहसील कार्यालयों के संबंध में राज्य सरकार के प्रति पार्टी कार्यकर्ताओं में असंतोष।
  9. ठाकुर मतदाताओं का भाजपा से दूर होना।
  10. कुर्मी, कुशवाहा और शाक्य जैसे पिछड़े समुदायों से समर्थन की कमी।
  11. अनुसूचित जाति के मतदाताओं, विशेष रूप से पासी और वाल्मीकि का सपा और कांग्रेस की ओर झुकाव।
  12. बसपा उम्मीदवारों द्वारा मुस्लिम और अन्य वोटों को विभाजित न करना, लेकिन जहां भाजपा के मजबूत उम्मीदवार थे, वहां वोट काटने में सफल होना।

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