अहम बात है कि डीजीपी की स्थाई नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका लंबित है, जिसमें कार्यवाहक डीजीपी की तैनाती को असंवैधानिक बताया गया है। इस मामले में 14 नवंबर को यूपी सरकार को शपथ पत्र दाखिल करना है।
यूपी में डीजीपी की स्थाई नियुक्ति की राह में कई अड़चनें : सिर्फ कैबिनेट मंजूरी से नहीं बनेगी बात, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई अहम
Nov 05, 2024 19:52
Nov 05, 2024 19:52
सुप्रीम कोर्ट इन राज्यों की नियमावली पर लगा चुका है प्रश्नचिह्न
पूर्व वरिष्ठ अफसरों का कहना है कि पंजाब और पश्चिम बंगाल की इसी तर्ज पर बनी नियमावली को सुप्रीम कोर्ट गलत ठहरा चुका है। ऐसे में यूपी की वर्तमान नियमावली की स्थिति पर भी प्रश्नचिह्न लग सकता है। सब कुछ उतना आसान और सीधा नहीं है, जिस तरीके से दावे किए जा रहे हैं।
सेवाकाल के मुद्दे और केंद्र की सहमति
यूपी कैबिनेट से मंजूरी नियमावली के अनुसार, यदि डीजी स्तर के अधिकारी की सेवा अवधि छह माह बची है, तो उसे डीजीपी बनाया जा सकता है, और उसका कार्यकाल दो वर्षों का हो सकता है। हालांकि, डेढ़ साल का सेवा विस्तार देने के लिए केंद्र की सहमति आवश्यक है। इस स्थिति में सवाल उठता है कि क्या केंद्र सरकार ऐसे जूनियर अधिकारी को सेवा विस्तार देने की अनुमति देगी, जब उसके बैच में अन्य सीनियर अधिकारी भी मौजूद हैं और डीजीपी के लिए योग्य हैं।
यूपी में कार्यवाहक डीजीपी को लेकर लगातार उठते रहे हैं सवाल
यूपी सरकार ने डीजीपी की सीधे नियुक्ति का रास्ता तो निकाल लिया है, लेकिन यह भी सवाल उठ रहा है कि भाजपा शासित राज्यों जैसे मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और उत्तराखंड में डीजीपी की नियुक्ति के लिए तीन नामों का पैनल भेजा जाता है। फिर उत्तर प्रदेश में कार्यवाहक डीजीपी की तैनाती पिछले पांच वर्षों से क्यों की जा रही है? विपक्ष शुरुआत से ही आरोप लगाता रहा है कि इस प्रक्रिया में सीनियर अधिकारियों की उपेक्षा की जा रही है और जूनियर अधिकारियों को इस महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त किया जा रहा है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पहले से ही इस मुद्दे पर सरकार पर हमलावर बने हुए हैं। वह लगातार कहते आ रहे हैं कि आखिर योगी आदित्यनाथ सरकार अब तक यूपी को परमानेंट डीजीपी क्यों नहीं दे पाई?
सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिका का मुद्दा
अहम बात है कि डीजीपी की स्थाई नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका लंबित है, जिसमें कार्यवाहक डीजीपी की तैनाती को असंवैधानिक बताया गया है। इस मामले में 14 नवंबर को यूपी सरकार को शपथ पत्र दाखिल करना है। कहा जा रहा है कि शपथ पत्र दाखिल करने से पहले ही कैबिनेट में इस नई नियमावली को मंजूरी दी गई है, जिससे अदालत में इस संबंध में पैरवी करना आसान हो सके। इससे इस बात के साफ संकेत मिल रहे हैं कि सरकार अपने फैसले को सही ठहराने की कोशिश कर रही है।
पूर्व डीजीपी ने दायर की है याचिका
याचिका दायर करने वाले पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह यूपी कैबिनेट से मंजूर नियमावली से सहमत तो हैं। लेकिन, उनका भी मानना है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश अहम होगा। इससे पहले अन्य प्रदेशों में इस तरह की नियमावली में सुप्रीम कोर्ट संशोधन करा चुका है। हालांकि प्रकाश सिंह ने अपनी याचिका में जो संस्तुति की गई हैं, उनमें से अधिकांश को योगी सरकार ने अपनी नियमावली में शामिल किया है। इस तरह ये भी कहा जा रहा है कि सरकार ने नियमावली को मंजूरी से पहले उससे जुड़े विभिन्न पहलुओं पर बारीकी से काम किया है।
स्थायी डीजीपी मुकुल गोयल को हटाने के साथ हुई कार्यवाहक डीजीपी बनाने की शुरुआत
देखा जाए तो उत्तर प्रदेश में कार्यवाहक डीजीपी बनाने की प्रक्रिया 2019 से शुरू हुई, जब स्थायी डीजीपी मुकुल गोयल के बाद भाजपा सरकार ने देवेंद्र सिंह चौहान चौहान को कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त किया। प्रदेश सरकार ने 11 मई 2022 को तत्कालीन डीजीपी मुकुल गोयल को पद से हटा दिया था। मुकुल गोयल को डीजीपी पद से हटाकर डीजी सिविल डिफेंस जैसे महत्वहीन पद पर भेजा गया। सरकार की ओर से कहा गया कि मुकुल गोयल ने डीजीपी रहते सरकारी आदेशों को नहीं माना और कानून व्यवस्था को बनाए रखने में शिथिलता बरती। इसके बाद तत्कालीन एडीजी लॉ एंड आर्डर प्रशांत कुमार के पास एक दिन डीजीपी का चार्ज रहा और फिर 13 मई को शासन ने डीएस चौहान को कार्यवाहक डीजीपी बना दिया।
डीजीपी प्रशांत कुमार जवाब देने से कर चुके हैं इनकार
इसके बाद विजय कुमार, आरके विश्वकर्मा और प्रशांत कुमार जैसे अधिकारियों को यह जिम्मेदारी दी गई। प्रशांत कुमार की सेवानिवृत्ति 31 मई, 2025 को होगी, जो आगामी दिनों में और विवाद को जन्म दे सकती है। हाल ही में उनसे एक इंटरव्यू में जब यूपी में कार्यवाहक डीजीपी के चलन पर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि वह इसके लिए सक्षम व्यक्ति नहीं हैं। शासन स्तर से ही इस संबंध में जवाब मिल सकता है। हालांकि प्रशांत कुमार ने ये साफ तौर पर कहा कि अगर उन्हें डीजीपी बनाया गया है तो इसका सीधा अर्थ है कि वह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के विश्वत हैं। उन्होंने कहा हर सरकार में डीजीपी मुख्यमंत्री का विश्वसनीय होता है।
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