उत्तर प्रदेश की विधानसभा में नजूल संपत्ति विधेयक पारित होने के बाद हंगामा मचा हुआ है। योगी सरकार के अपने ही विधायक विधेयक का विरोध कर रहे हैं। सदन में बुधवार को पारित हुए इस विधेयक के बाद यूपी का सियासत में हंगामा मचा हुआ है...
यूपी की सियासत में हंगामा है क्यों बरपा : सीएम का नजूल विधेयक फिजूल! अपनों ने बढ़ाई सरकार की टेंशन, अनुप्रिया, राजा भैया भी खिलाफ
Aug 03, 2024 00:28
Aug 03, 2024 00:28
संसदीय कार्यमंत्री ने प्रस्तुत किया विधेयक
यूपी विधानसभा में बुधवार को संसदीय कार्यमंत्री सुरेश खन्ना ने विधानसभा में नजूल संपत्ति विधेयक 2024 प्रस्तुत किया। उन्होंने इस दौरान बताया कि जनहित की परियोजनाओं के लिए भूमि की व्यवस्था में अक्सर समस्याएं आती हैं, जिससे सार्वजनिक कार्यों में विलंब होता है। उन्होंने कहा कि इसके बाद नजूल संपत्ति का इस्तेमाल सार्वजनिक हितों की योजनाओं के लिए किया जा सकेगा। लेकिन गुरुवार को विधेयक को लेकर बहुत हंगामा हुआ और विधेयक फंस गया। इसके बाद योगी सरकार को विपक्ष ही नहीं बल्कि अपने भी विधायकों के विरोध का सामना करना पड़ा।
क्या है नजूल की जमीन
नजूल की जमीनें ऐसी होती हैं जिनके कई वर्षों से कोई वारिस नहीं होता। इन जमीनों पर राज्य सरकार का अधिकार हो जाता है। ब्रिटिश काल में, बगावत करने वाले लोगों और रियासतों की संपत्तियों पर ब्रिटिश शासन ने कब्जा कर लिया था। स्वतंत्रता के बाद, जिन्होंने इन संपत्तियों पर रिकॉर्ड के साथ दावा किया, उनकी जमीनें सरकार ने लौटा दीं। जिन जमीनों पर कोई दावा नहीं किया गया, वे नजूल की जमीनें बन गईं, जिन पर राज्य सरकारों का अधिकार है। यूपी सरकार का कहना है कि वे इन नजूल जमीनों का उपयोग अब विकास कार्यों के लिए करेंगे।
किस काम की नजूल जमीन
नजूल जमीन का मालिकाना हक सरकार के पास होता है और इसका उपयोग प्रशासन द्वारा तय किया जाता है। यह जमीन ज्यादातर सरकारी स्कूल, अस्पताल, या पंचायत भवन बनाने में इस्तेमाल होती है। कई बार हाउसिंग सोसायटीज भी नजूल जमीन पर बनाई जाती हैं, जिन्हें लीज पर दिया जाता है। नजूल जमीन के रखरखाव और उपयोग के लिए लैंड्स ट्रांसफर रूल, 1956 लागू होता है। इस प्रक्रिया में प्रशासन यह सुनिश्चित करता है कि जमीन का उपयोग जनहित के कार्यों के लिए हो, जिससे समुदाय को लाभ पहुंचे।
क्या है नजूल भूमि विधेयक
नजूल संपत्ति विधेयक के तहत, यदि किसी ने नजूल संपत्ति का पट्टा लिया है और किराये का नियमित भुगतान कर रहा है, साथ ही पट्टे की शर्तों का उल्लंघन नहीं किया है, तो उसका पट्टा नवीनीकरण कर दिया जाएगा। ऐसे मामलों में, पट्टे की अवधि 30 साल के लिए बढ़ा दी जाएगी। यदि पट्टे की अवधि समाप्त हो चुकी है, तो संपत्ति सरकारी नियंत्रण में आ जाएगी। इसके अलावा, अगर पट्टा समाप्ति के बाद भी नजूल संपत्ति का उपयोग जारी रहता है, तो पट्टे के किराये का निर्धारण जिला मजिस्ट्रेट द्वारा किया जाएगा।
अनुप्रिया पटेल ने किया विरोध
अनुप्रिया पटेल ने इस विधेयक को तुरंत वापस लेने की मांग की है। गुरुवार को उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर कहा कि नजूल भूमि संबंधी विधेयक को विमर्श के लिए विधान परिषद की प्रवर समिति को आज भेज दिया गया है। व्यापक विमर्श के बिना लाये गये नजूल भूमि संबंधी विधेयक के बारे में मेरा स्पष्ट मानना है कि यह विधेयक न सिर्फ़ ग़ैरज़रूरी है बल्कि आम जन मानस की भावनाओं के विपरीत भी है। उन्होंने आगे लिखा कि उत्तर प्रदेश सरकार को इस विधेयक को तत्काल वापस लेना चाहिए और इस मामले में जिन अधिकारियों ने गुमराह किया है उनके ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई होनी चाहिए।
उत्तर प्रदेश सरकार को इस विधेयक को तत्काल वापस लेना चाहिए और इस मामले में जिन अधिकारियों ने गुमराह किया है उनके ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई होनी चाहिए।
— Anupriya Patel (@AnupriyaSPatel) August 1, 2024
राजा भैया ने कहा- क्या हाईकोर्ट भी हटवा दोगे
कुंडा से निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह राजा भैया ने भी विधेयक का खुलकर विरोध किया है। उन्होंने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट भी नजूल की जमीन पर बना है, और पूछा कि क्या उसे भी हटा दिया जाएगा। राजा भैया ने चेतावनी दी कि अगर नजूल पर बसे लोगों को हटाया गया तो बड़ी क्रांति हो सकती है और लोग सड़कों पर आ जाएंगे। उन्होंने विधेयक को प्रवर समिति को सौंपने की मांग भी की।
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संजय निषाद ने क्या कहा
वहीं यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री संजय निषाद ने कहा कि हमारी सरकार सभी को स्थापित करने के लिए है। हमारी सरकार बड़े लोगों से टैक्स लेकर जिनके पास आवास नहीं है, उन गरीब लोगों को घर दे रही है। उन्होंने कहा कि कुछ अधिकारी ऐसे हैं जो सरकार को ऐसे घुमा रहे हैं कि वोटर नाराज हो जाएं। आगे 2027 के चुनाव हैं 2029 में चुनाव हैं हम किसी को उजाड़ेंगे तो क्या वो हमें छोड़ेंगे। वो हमें वोट क्यों देंगे। अगर हमने उन्हें उजाड़ा तो हमें उखाड़ देंगे। उन्होंने सरकार से इस पर विचार करने की मांग की।
भाजपा के दो विधायकों ने सदन में विरोध किया
इतना ही नहीं भाजपा के दो और विधायकों ने इसका खुलकर विरोध किया। प्रयागराज से भाजपा विधायक सिद्धार्थनाथ सिंह और हर्षवर्धन बाजपेयी ने आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि आजादी के 75 साल बाद भी लोग 100 साल से इन जमीनों पर रह रहे हैं। उन्होंने तर्क दिया कि जहां प्रधानमंत्री मोदी लोगों को आवास दे रहे हैं, वहीं यह विधेयक उन्हें बेघर कर देगा। उन्होंने मांग की कि जो लोग पहले से नजूल भूमि पर रह रहे हैं, उन्हें फ्री होल्ड किया जाए।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का बयान
इसके बाद विधेयक के संबंध में बीजेपी के कुछ विधायकों ने बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी से मुलाकात की। उन्होंने बिल के पारित होने पर बीजेपी को पूरे राज्य में बड़े नुकसान की चेतावनी दी है। इसके साथ ही, विधान परिषद के नेता केशव प्रसाद मौर्य भी इस विधेयक के खिलाफ अपनी असहमति जाहिर करते नजर आए। भूपेंद्र चौधरी ने विधान परिषद में खड़े होकर इस बिल पर आपत्ति जताई और इसे प्रवर समिति को सौंपने को कहा। इसके बाद यह बिल फंस गया और इस प्रवर समिति को सौंपने का फैसला लिया गया। जब से नजूल संपत्ति विधेयक आया है, योगी सरकार को अपने ही इसके विरोध में खड़े हो गए हैं। फिलहाल, नजूल विधेयक का मामला फंसा हुआ है। इसका अंतिम फैसला आने में कितना समय लगेगा, कहना मुश्किल है।
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