उत्तर प्रदेश का पहला प्राइवेट ब्रिज : अंग्रेज या सरकार के सहयोग नहीं बल्कि चंदे के पैसे से बनवाया यह पुल

अंग्रेज या सरकार के सहयोग नहीं बल्कि चंदे के पैसे से बनवाया यह पुल
UPT | प्रदेश का पहला प्राइवेट ब्रिज

Jul 24, 2024 15:39

 भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने रायबरेली-लालगंज राजपाट पर बने बैस पुल के बगल में नया पुल तो बना दिया, लेकिन पुराने पुल के संरक्षण के लिए कुछ नहीं किया। बताया जाता है कि इतिहास को...

Jul 24, 2024 15:39

Raebareli News : भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने रायबरेली-लालगंज राजपाट पर बने बैस पुल के बगल में नया पुल तो बना दिया, लेकिन पुराने पुल के संरक्षण के लिए कुछ नहीं किया। बताया जाता है कि इतिहास को दोहराने के लिए या फिर आगे आने वाली पीढ़ियों को विकास जानने के लिए इस पुल का संरक्षित किया जाना अति आवश्यक है।

सई नदी (राजघाट) पर बनाया 'बैस ब्रिज' 
1857 की क्रांति में स्थानीय राजाओं को अंग्रेजों से अपने हक के लिए लड़ने के साथ ही रास्तों की जटिलताओं से भी लड़ना पड़ा था। अगर अमर सेनानी राना बेनी माधव बक्स सिंह की सेना की बात करें तो सेनाओं ने सई नदी को पार कर अंग्रेजों को मात देती रही। सई नदी को पार कर उन्नाव, फतेहपुर, कानपुर, लखनऊ से रसद लाने में भी कई परेशानियों का सामना करना पड़ता था। तो उस समय इन सभी जटिलताओं को ध्यान में रखते हुए रायबरेली और लालगंज के मध्य सई नदी (राजघाट) पर 'बैस ब्रिज' बनाया गया था। इसमें सबसे खास बात यह है कि इस पुल को अंग्रेजों ने नहीं बल्कि यहां के तालुकेदारों और जमींदारों ने धन संग्रह कर यानी चंदा का पैसा जमा कर पुल का निर्माण करवाया था। ऐसा माना जाता है कि उस समय यह यूपी का पहला पुल होगा जो बिना किसी सरकारी सहयोग के बना था। यह बैस ब्रिज साल-1867 से यह आज तक लोगों के उपयोग में आ रहा है।

सभी वर्गों का सहयोग से बना यह पुल
तालुकेदारों और जमींदारों में सभी जातियों के लोग शामिल थे। इस पुल के बारे में इतिहास के पन्नों में कहीं कोई किसी प्रकार का जिक्र तो नहीं किया गया है, लेकिन इसमें लगे शिलापट से साफ है कि इसके निर्माण में उन्नाव व लखनऊ, बाराबंकी तक फैले बैसवारा के तालुकेदारों और जमींदारों ने चंदा जमा कर इस पुल का निर्माण कराया था। इसके बाद साल- 1867 में इसे जनता को समर्पित किया। इसका शिलापट आज भी लगा है। इतिहास के जानकार डॉक्टर ओपी सिंह ने बताया कि 1857 की क्रांति में नदी में पुल के निर्माण की आवश्यकता महसूस की गई थी।

86 तालुकेदार और 200 जमींदार का रहा सहयोग
1867 में रायबरेली, उन्नाव, लखनऊ और बराबंकी बॉर्डर तक लगभग 86 तालुकेदार थे। इसके साथ ही 200 जमींदार रहे। चंदापुर के स्टेट के राजा हर्षेद्र सिंह बताते हैं कि इस पुल के निर्माण में इन सभी का सहयोग रहा। इतिहास के पन्नों में इस पुल का जिक्र भले ही न हो, लेकिन आने वाली पीढ़ियों के लिए यह इतिहास से कम नहीं है। इसलिए इस ब्रिज का संरक्षण बहुत जरूरी है।

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