अनोखी परंपरा : 700 साल बाद भी यहां होली के दिन मनाया जाता है मातम, बेरंग रहते हैं 28 गांव

700 साल बाद भी यहां होली के दिन मनाया जाता है मातम, बेरंग रहते हैं 28 गांव
UPT | राजा डलदेव की प्रतिमा।

Mar 25, 2024 20:12

क्षेत्र के बुजुर्ग बताते हैं कि वर्ष 1321 ई. में डलमऊ के राजा डलदेव नए संवत्सर के आगमन का जश्न मना रहे थे। पूरे क्षेत्र में हर्षोल्लास का माहौल था। डलमऊ के किले में सैनिकों के साथ प्रजा भी मौजूद थी। हर किसी के चेहरे पर खुशी और उत्साह था।

Mar 25, 2024 20:12

Raebareli News : होली त्योहार पर जहां चारों तरफ उत्साह है, हर कोई खुशी मना रहा है, वहीं रायबरेली के डलमऊ क्षेत्र के 28 गांवों के लोग इस दिन मातम मनाते हैं। करीब 700 साल पुरानी घटना को आज भी याद करके इन गांवों में कोई भी होली नही मनाता। डलमऊ के राजा डलदेव ने दुश्मनों से प्रजा की रक्षा के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी थी। उनकी याद में ही लोग यहां पांच दिन तक शोक मनाते हैं। इसके बाद होली का त्योहार मनाया जाता है। 

क्या है कहानी
क्षेत्र के बुजुर्ग बताते हैं कि वर्ष 1321 ई. में डलमऊ के राजा डलदेव नए संवत्सर के आगमन का जश्न मना रहे थे। पूरे क्षेत्र में हर्षोल्लास का माहौल था। डलमऊ के किले में सैनिकों के साथ प्रजा भी मौजूद थी। हर किसी के चेहरे पर खुशी और उत्साह था। सभी जश्न में डूबे थे। राजा डलदेव भी सभी के साथ खुशी मना रहे थे। तभी जौनपुर रियासत के राजा शाहशर्की की सेना ने डलमऊ के किले पर अचानक आक्रमण कर दिया। जिस वक्त किले पर हमला बोला गया, उस समय राजा और उनकी सेना युद्ध के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थी। किसी को इसका अंदाजा भी नहीं था। इसके बावजूद राजा ने हार नहीं मानी।

प्रजा की रक्षा के लिए राजा डलदेव ने गंवा दी थी जान
शाहशर्की का सामना करने के लिए राजा डलदेव युद्ध में कूद पड़े। बिना किसी तैयारी के महज कुछ सैनिकों की एक टुकड़ी लेकर राजा डलदेव ने दुश्मनों डंटकर सामना किया। राजा और उनकी छोटी सी सेना की वीरता देख कर दुश्मन भी कायल हो गए थे। जिस तरह से राजा और उनके सैनिकों ने लड़ाई लड़ी, उसकी चर्चाएं आज भी लोग करते हैं। सैनिकों की संख्या कम होने के बावजूद भी युद्ध में राजा और उनकी सेना पीछे नहीं हटी। इस युद्ध में राजा की छोटी सी सेना ने शाहशर्की के दो हजार सैनिकों को मार गिराया। हालांकि लड़ाई में राजा के भी सभी सिपाही एक-एक करके शहीद हो गए थे। बाद में पखरौली गांव के पास युद्ध के समय ही राजा डलदेव को शाहशर्की ने चारों तरफ से घेर लिया। यहां राजा ने अपनी जान प्रजा की रक्षा के लिए न्यौछावर कर दी।

इस घटना को सदियां बीत गईं, देश में राजपाठ खत्म हो गए, लेकिन डलमऊ के लोग आज भी अपने राजा की वीरता को नहीं भूले हैं। डलमऊ तहसील क्षेत्र के 28 गांवों ऐसे हैं जहां आज भी लोग राजा की मौत के शोक में होली का त्योहार नहीं मनाते। होली के पांच दिन बाद यहां पर रंग खेला जाता है। 

इन गांवों में नहीं मनाई जाती है होली
डलमऊ के अलावा पूरे रेवती, खपराताल, पूरे ज्वाला, पूरे भागू, नाथ खेड़ा, पूरे नाथू, पूरे गड़रियन, नेवाजगंज, पूरे वल्ली, मलियापुर, पूरे मुराइन, भटानीहार, महुवाहार, पूरे धैताली, पूरे धानू, बिबियापुर, मखदूमपुर, देवली, नगरूमऊ, पूरे कोइली, सुर्जीपुर, पूरे डालबाल, पूरे सेखन, पूरे जोधी, तेलहना, पूरे लालता, मुर्सीदाबाद गांव शामिल हैं। जहां पांच दिन शोक के बाद होली मनाई जाती है।
 

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