राज्य में हिंदू संगठनों द्वारा विभिन्न मस्जिदों और बंद पड़े मंदिरों को लेकर विवाद खड़े करने की घटनाएं बढ़ी हैं। वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद मामले से लेकर संभल, बदायूं, अलीगढ़, मुजफ्फरनगर और बुलंदशहर जिलों में मंदिरों के दावे तेज हुए हैं
यूपी की सियासत का नया अध्याय ! बढ़ते मंदिर-मस्जिद विवादों से तेज ध्रुवीकरण क्या चुनावी गणित बदलेगा? 2027 विधानसभा चुनाव की आहट
Dec 30, 2024 15:45
Dec 30, 2024 15:45
उपचुनावों में ध्रुवीकरण का असर
हाल ही में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनावों में भाजपा ने नौ में से सात सीटें जीतकर स्पष्ट बढ़त बनाई, जबकि समाजवादी पार्टी (सपा) को केवल दो सीटों पर संतोष करना पड़ा। इस दौरान भाजपा की ओर से इस्तेमाल किए गए "बटेंगे तो कटेंगे" नारे को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषक राजीव रंजन सिंह ने कहा, "सपा द्वारा प्रचारित 'पीडीए' (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) नारे के जातीय गोलबंदी के जवाब में भाजपा ने हिंदू एकता को मजबूती देने के लिए 'बटेंगे तो कटेंगे' नारे का सहारा लिया। जिसका सीधा प्रभाव चुनाव परिणामों पर पड़ा।"
धार्मिक विवादों की बढ़ती घटनाएं
राज्य में हिंदू संगठनों द्वारा विभिन्न मस्जिदों और बंद पड़े मंदिरों को लेकर विवाद खड़े करने की घटनाएं बढ़ी हैं। वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद मामले से लेकर संभल, बदायूं, अलीगढ़, मुजफ्फरनगर और बुलंदशहर जिलों में मंदिरों के दावे तेज हुए हैं। ज्ञानवापी मस्जिद में कथित शिवलिंग की खोज के बाद बदायूं की जामा मस्जिद में नीलकंठ महादेव मंदिर होने का दावा किया गया। इस मामले में अदालत में याचिका दायर की गई है और जनवरी में इसकी सुनवाई होनी है। नवंबर में संभल की शाही जामा मस्जिद में हरिहरनाथ मंदिर के दावे को लेकर किए गए सर्वेक्षण के दौरान भड़की हिंसा में चार लोगों की जान चली गई।
यूपी में 2027 की तैयारी
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटनाएं 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ाने की रणनीति का हिस्सा हो सकती हैं। लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति और सामाजिक कार्यकर्ता प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा कहती हैं, "ऐसे विवाद सिर्फ उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं हैं, लेकिन यहां ये घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। इसका मकसद सत्तारूढ़ दल के लिए सांप्रदायिक आधार पर समर्थन जुटाना हो सकता है।"
भाजपा और सपा की प्रतिक्रिया
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इन विवादों पर सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा, "यह लोग खोदते-खोदते अपनी सरकार को भी खोद देंगे। भाजपा जनता की मूल समस्याओं से ध्यान भटकाने के लिए ऐसे मुद्दे उठा रही है।" भाजपा प्रवक्ता हरिश्चंद्र श्रीवास्तव ने पलटवार करते हुए कहा, "विपक्ष तुष्टिकरण की राजनीति कर रहा है। हम सत्य को उजागर कर रहे हैं। हिंदुओं के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय को दूर करना हमारी प्राथमिकता है।" राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में पुणे में एक बयान देते हुए कहा, "राम मंदिर हिंदुओं की श्रद्धा का प्रतीक है, लेकिन नई जगहों पर इसी तरह के मुद्दों को उठाना स्वीकार्य नहीं है।"
संभल हिंसा और संभावित प्रभाव
संभल में हुई हिंसा को लेकर पुलिस ने मामले की जांच शुरू की है। इस बीच कुछ संगठनों ने इसे अंतरराष्ट्रीय आतंकी नेटवर्क से जोड़ने का दावा किया है। पुलिस ने मामले में आईएसआई और अल-कायदा से जुड़े संभावित फंडिंग और हथियार आपूर्ति के एंगल की जांच भी शुरू की है।
2027 से पहले और बढ़ सकते हैं विवाद
लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति और सामाजिक कार्यकर्ता प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा ने प्रदेश सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा, "यह घटनाएं 2027 के विधानसभा चुनाव की तैयारी का हिस्सा हो सकती हैं। हाल के लोकसभा चुनाव में भाजपा को झटका लगा था और सत्ता पक्ष अब सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की रणनीति पर काम कर रहा है।" वर्मा ने कहा, "2024 के लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन ने उत्तर प्रदेश में मजबूत प्रदर्शन किया था। भाजपा और उसके सहयोगियों को 80 में से केवल 36 सीटें मिलीं, जबकि सपा ने 37 और कांग्रेस ने 6 सीटें जीतीं। यह हार सत्तारूढ़ दल को नई रणनीति अपनाने के लिए मजबूर कर सकती है।"
संभल हिंसा का आतंकी एंगल?
संभल की हिंसा के पीछे आतंकी संगठनों का हाथ होने की आशंका जताई जा रही है। पुलिस ने मामले की जांच शुरू की है और इसमें आईएसआई और अल-कायदा जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों से जुड़े फंडिंग और हथियार सप्लाई के तार तलाशे जा रहे हैं।
क्या होगा 2027 में?
बाबा साहब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और राजनीतिक विश्लेषक सुशील कुमार पांडेय ने कहा, "ऐतिहासिक शिकायतों को उठाने और राम मंदिर निर्माण के बाद इस तरह के मुद्दों से सांप्रदायिक तनाव बढ़ना स्वाभाविक है। इन विवादों का 2027 के विधानसभा चुनाव पर निश्चित रूप से असर पड़ेगा।" राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटनाएं चुनावी रणनीति का हिस्सा हैं। भाजपा अपने हिंदुत्व एजेंडे को धार देकर विपक्ष की जातीय गोलबंदी को कमजोर करने की कोशिश कर रही है। जहां सत्ता पक्ष इसे "सत्य की खोज" करार दे रहा है, वहीं विपक्ष इसे "जनता का ध्यान भटकाने" का हथकंडा बता रहा है। ऐसे में उत्तर प्रदेश की जनता इन विवादों को कैसे देखती है। यह 2027 के चुनावों में स्पष्ट होगा।
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