पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक 24 मार्च 1993 की शाम को अपर कस्टम कलेक्टर एलडी अरोड़ा की कार्यालय से वापस आते समय घर के बाहर कार पार्क करते समय गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। बबलू श्रीवास्तव और दो अन्य अभियुक्तों पर इस अपराध का आरोप लगा और उन्हें इस हत्याकांड के लिए दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
माफिया डॉन बबलू श्रीवास्तव की रिहाई की दया याचिका राज्यपाल ने की खारिज : हत्याकांड में मिल चुका है आजीवन कारावास
Nov 06, 2024 20:29
Nov 06, 2024 20:29
घर के बाहर गोली मारकर की गई थी अपर कस्टम कलेक्टर एलडी अरोड़ा की हत्या
मुंबई में 90 के दशक में अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम दहशत का पर्याय था। उसने कई बड़ी वारदातों को यूपी के अपराधियों के जरिए अंजाम दिया। 1993 में दाऊद ने यूपी से उभरे ओम प्रकाश श्रीवास्तव उर्फ बबलू श्रीवास्तव के जरिए इलाहाबाद में असिस्टेंट कस्टम कलेक्टर एलडी अरोड़ा की हत्या करवाई। दरअसल मुंबई में तैनाती के दौरान एलडी अरोड़ा ने दाऊद के हथियारों की खेप पकड़ी थी। इस सनसनीखेज मर्डर को बबलू ने अपने उत्तर प्रदेश के साथियों कमल सैनी और मनजीत सिंह मंगे के साथ मिलकर अंजाम दिया। पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक 24 मार्च 1993 की शाम को अपर कस्टम कलेक्टर एलडी अरोड़ा की कार्यालय से वापस आते वक्त घर के बाहर कार पार्क करने के दौरान गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। बबलू श्रीवास्तव और दो अन्य अभियुक्तों पर इस अपराध का आरोप लगा और उन्हें इस हत्याकांड के लिए दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। यह हत्याकांड एक जघन्य अपराध माना गया।
सुप्रीम कोर्ट ने उम्र कैद की सजा को रखा बरकरार
बबलू श्रीवास्तव को न्यायालय डेजिगनेटेड कोर्ट अंडर टाडा एक्ट-सत्र न्यायाधीश, कानपुर नगर की अदालत ने 30 सितंबर 2008 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपने 25 जनवरी 2011 के आदेश में इस सजा को बरकरार रखा।
लखनऊ पुलिस उपायुक्त की रिपोर्ट में रिहाई का विरोध
लखनऊ पुलिस उपायुक्त की रिपोर्ट में उच्चतम न्यायालय के निर्दिष्ट पांच बिंदुओं की समीक्षा के तहत पाया गया कि बबलू श्रीवास्तव का अपराध समाज पर व्यापक प्रभाव डालने वाला है। ऐसे अपराधों में समयपूर्व रिहाई से न्यायिक व्यवस्था पर समाज का विश्वास कमजोर हो सकता है। इसी वजह से इस अपराध की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए समयपूर्व रिहाई का विरोध किया गया।
जिला मजिस्ट्रेट और प्रोबेशन अधिकारी की राय
जिला मजिस्ट्रेट और जिला प्रोबेशन अधिकारी, लखनऊ की रिपोर्ट में इस मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्दिष्ट बिंदुओं के आधार पर अपना अभिमत दिया गया। उन्होंने अपराध की गंभीरता को देखते हुए यह पाया कि बंदी की रिहाई उचित नहीं होगी। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि अपराध की प्रकृति और बंदी के पुनः अपराध करने की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए रिहाई नहीं की जानी चाहिए।
प्रोबेशन बोर्ड ने दर्ज कराई आपत्ति
प्रोबेशन बोर्ड ने भी बबलू श्रीवास्तव की रिहाई को अस्वीकार करने की सिफारिश की। बोर्ड ने कहा कि इस तरह के जघन्य अपराध करने वाले व्यक्तियों को समयपूर्व रिहा करना न्यायिक प्रणाली के खिलाफ जाएगा और समाज में गलत संदेश जाएगा। इस अपराध की गंभीरता और इसके सामाजिक प्रभाव को देखते हुए बबलू श्रीवास्तव की रिहाई की अनुमति देना उचित नहीं है।
समाज में न्यायिक प्रणाली का विश्वास मजबूत बनाए रखने का प्रयास
इस प्रकार बबलू श्रीवास्तव के अपराध की गंभीरता एवं जघन्यता को देखते हुए जिला प्रोबेशन अधिकारी, पुलिस उपायुक्त एवं जिला मजिस्ट्रेट, लखनऊ की रिपोर्ट में समयपूर्व रिहाई का विरोध किया गया। इन बिंदुओं के आधार पर राज्यपाल ने बबलू श्रीवास्तव की भारत का संविधान के अनुच्छेद-161 के अन्तर्गत दया याचिका के आधार पर समयपूर्व रिहाई विचार करने के बाद अस्वीकार कर दी।
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