यूपीपीसीएल का घाटा यूं ही नहीं पहुंचा 1.10 लाख करोड़ : उपभोक्ता परिषद ने इन फैसलों पर उठाए सवाल, दी चुनौती

उपभोक्ता परिषद ने इन फैसलों पर उठाए सवाल, दी चुनौती
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Nov 25, 2024 17:35

उपभोक्ता परिषद ने कहा कि पावर कारपोरेशन को यह बताना चाहिए कि वर्ष 2000-2001 में जब घाटा 77 करोड़ रुपये था, तो वह बढ़कर 1,10,000 करोड़ रुपये कैसे पहुंच गया। संगठन ने इसके लिए केंद्र और प्रदेश सरकार की नीतियों को भी जिम्मेदार ठहराया।

Nov 25, 2024 17:35

Lucknow News : उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड (UPPCL) के अचानक बिजली कंपनियों के घाटे का मुद्दा उठाने पर उपभोक्ता परिषद ने निशाना साधा है। संगठन ने कहा है कि ये घाटा 1.10 लाख करोड़ पहुंचने पर यूपीपीसीएल को अब इसकी याद आई है। जब​कि उसके कई फैसले इसके लिए जिम्मेदार है। उपभोक्ता परिषद पहले से ही इसे लेकर सवाल उठाता आया है। यूपीपीसीएल को स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए कि आखिरकार निजीकरण व फ्रेंचाइजीकरण के क्या लाभ हैं। संगठन ने दवा किया कि अगर उसकी बात मानी जाए तो ये घाटा काफी कम हो सकता है।

विद्युत परिषद को कई कंपनियों में बांटने के बाद भी कम नहीं हुआ घाटा
संगठन ने कहा कि उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद की स्थापना 1959 में की गई थी, जिसका उद्देश्य राज्य में विद्युत वितरण और उत्पादन से जुड़े कार्यों को सुचारु रूप से चलाना था। लेकिन, समय के साथ इस परिषद का घाटा बढ़ता गया और वर्ष 2000 तक यह घाटा 10,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। इसके बाद सरकार ने 14 जनवरी 2000 को राज्य विद्युत परिषद को विघटित कर इसे कई कंपनियों में विभाजित कर दिया। इस निर्णय के बाद सरकार ने यह दावा किया कि अब बिजली कंपनियों में सुधार आएगा और उन्हें बेहतर तरीके से चलाया जाएगा। हालांकि, हालिया घटनाओं ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या वास्तव में विद्युत वितरण में सुधार हुआ है या यह केवल एक दिखावा था।



निजी क्षेत्र के बड़े घरानों का सहयोग लेने की मंशा
इन दिनों उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड ने बिजली कंपनियों के घाटे के बारे में चर्चा शुरू कर दी है। यह चर्चा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे यह अंदाजा लगाना संभव हो सकता है कि यूपीपीसीएल मंशा क्या है। क्या इसके पीछे कोई निजी क्षेत्र के बड़े घरानों को सहयोग लेने की योजना है, या फिर यह एक स्वच्छ सुधार प्रक्रिया का हिस्सा है, यह जल्द ही सामने आ सकता है। 

2000-2001 में 77 करोड़ रुपये था घाटा 
उपभोक्ता परिषद ने इस स्थिति पर अपनी चिंता जाहिर की है और कहा कि पावर कारपोरेशन को यह बताना चाहिए कि वर्ष 2000-2001 में जब घाटा 77 करोड़ रुपये था, तो वह बढ़कर 1,10,000 करोड़ रुपये कैसे पहुंच गया। संगठन ने इसके लिए केंद्र और प्रदेश सरकार की नीतियों को भी जिम्मेदार ठहराया। उपभोक्ता परिषद के मुताबिक इनमें उदय योजना की विफलता, पावर फॉर ऑल का असफल होना, एफआरपी की नाकामी और महंगी बिजली खरीदने के फैसले आदि प्रमुख रूप से जिम्मेदार है।

उपभोक्ता परिषद का प्रस्ताव और समाधान
उपभोक्ता परिषद ने कहा कि पावर कारपोरेशन यदि तैयार है, तो उपभोक्ता परिषद अपनी योजना प्रस्तुत करने के लिए तैयार है, जिससे बिना उद्योगपतियों का सहयोग लिए भी घाटे को कम किया जा सकता है और बिजली कंपनियां आत्मनिर्भर बन सकती हैं। परिषद ने यह भी कहा कि वह किसी भी स्तर पर इस विषय पर बहस करने के लिए तैयार है और वह पावर कारपोरेशन को अपनी पूरी सहायता देने के लिए तत्पर है। इसके अलावा, उपभोक्ता परिषद का मानना है कि अगर बिजली कंपनियों के घाटे को सही तरीके से समझा जाए और उचित कदम उठाए जाएं, तो ये समस्याएं हल हो सकती हैं।

सपा सरकार का निजीकरण मॉडल और उपभोक्ता परिषद की आपत्ति
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष और राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने बताया कि समाजवादी पार्टी सरकार के दौरान अप्रैल 2013 में गाजियाबाद, वाराणसी, मेरठ, कानपुर को ट्रिपल पी मॉडल (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) के तहत निजी क्षेत्र में देने का प्रस्ताव था। हालांकि, बाद में यह निर्णय वापस ले लिया गया। उपभोक्ता परिषद ने इस पर आपत्ति जताई और विद्युत नियामक आयोग में याचिका दायर की थी। विद्युत नियामक आयोग ने इस पर स्पष्ट आदेश जारी किया था कि बिजली कंपनियों को यह बताना होगा कि निजीकरण या फ्रेंचाइजीकरण से उपभोक्ताओं को क्या लाभ होगा और इसका आधार क्या होगा। यह निर्णय बिजली क्षेत्र में सुधार के लिए अहम साबित हो सकता है।

बिजली कंपनियों के घाटे का विवरएण
वर्ष                घाटा (करोड़ रुपये में)
  • 2000-01         77 करोड़ (एफआरपी के अनुसार)
  • 2005-06         5439 करोड़ (एफआरपी के अनुसार)
  • 2007-08         13162 करोड़ (एफआरपी के अनुसार)
  • 2009-10         20104 करोड़ (एफआरपी के अनुसार)
  • 2010-11          24025 करोड़ (एफआरपी के अनुसार)
  • जनवरी 2016    70738 करोड़ (उदय अनुबंध के अनुसार)
  • 2015-16          72770 करोड़ (पावर फॉर आल के अनुसार)
  • वर्तमान स्थिति     1,10,000 करोड़

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