देवभूमि के रहने वाले लोग जहां भी रहें, वह अपने पारंपरिक स्वाद को नहीं भूलते हैं। लखनऊ में रहने वाले उत्तराखंडी यहां देवभूमि से जुड़े आयोजनों का बेहद इंतजार करते हैं, क्योंकि इस दौरान पहाड़ से जहां कलाकार सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए आते हैं।
लखनऊ में उत्तरायणी कौथिग : उत्तराखंड की संस्कृति और खानपान का संगम, गहत-भट्ट से लेकर ये बीज हैं सेहत का खजाना
Jan 18, 2025 18:44
Jan 18, 2025 18:44
मैदान में मिल रहा पहाड़ का जायका
देवभूमि के रहने वाले लोग जहां भी रहें, वह अपने पारंपरिक स्वाद को नहीं भूलते हैं। लखनऊ में रहने वाले उत्तराखंडी यहां देवभूमि से जुड़े आयोजनों का बेहद इंतजार करते हैं, क्योंकि इस दौरान पहाड़ से जहां कलाकार सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए आते हैं, वहीं कारोबारी अपने साथ पहाड़ों की दाल और अन्य खाद्य पदार्थों लेकर पहुंचते हैं, जिनकी यहां काफी बिक्री होती है। उत्तराखंड के जो लोग वहां जाकर इनकी खरीद नहीं कर पाते हैं, उनके लिए ये बेहद अच्छा अवसर होता है। इसके अलावा अब तो पहाड़ के जायके का आनंद लेने के लिए अन्य लोग भी इन उत्पादों की खरीद के लिए आगे रहते हैं।
स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं ये बीज
कौथिग मेले में उत्तराखंड के पहाड़ी व्यंजनों का विशेष ध्यान रखा गया है। यहां पहाड़ के अनाज और दालें भी प्रदर्शित की गई हैं, जो अपने स्वास्थ्यवर्धक गुणों के लिए जानी जाती हैं। स्थानीय उत्पादों की गुणवत्ता और पोषण मूल्य को देखते हुए मेले में खरीदारों की अच्छी-खासी भीड़ देखने को मिल रही है। आमतौर पर भांग को भले ही नशे से जोड़ते हैं। लेकिन, उत्तराखंड के भांग की बीजों का अलग मामला है। इसकी चटनी का स्वाद अगर एक बार जीभ पर लग जाए, तो इसके बिना खाने का स्वाद नहीं आता। दरअसल भांग के इन बीजों को पहले आग में भूना जाता है, फिर इन्हें पीसकर चटनी बनाई जाती है। आमतौर पर उत्तराखंडी आलू के गुटके के साथ इस चटनी को इस्तेमाल किया जाता है। इसे पहाड़ के स्नैक्स के तौर पर कहा जाता है। आलू के गुटके वास्तव में सूखे आलू का चटपटा व्यंजन है। भांग की बीज की चटनी के साथ खाने पर इसका जायका कई गुना बढ़ जाता है। ये बीज कैल्शियम और अन्य पोषक तत्वों का बेहतरीन स्रोत हैं। कौथिग मेले में इन बीजों की बिक्री करने वाली महिलाओं का कहना है कि पहाड़ की दाल और अनाज शरीर के स्वास्थ्य के लिए बेहद फायेदमंद हैं। भाग के इन बीजों का सेवन हड्डियों को मजबूत करता है। भांग के बीजों में प्रोटीन, स्वस्थ वसा और विटामिन का संतुलित मिश्रण पाया जाता है। मेले में ये 400 रुपये प्रति किलो के दाम पर उपलब्ध हैं।
पथरी गलाने में मददगार है गहत, गुणों का खजाना है रागी
इसी तरह भट्ट में जहां प्रचुर मात्रा में कैलिश्यम पाया जाता है, वहीं गहत यानी कुलथी पथरी को गलाने में काफी मददगार होती है। ये गर्म दाल पत्थर को गला देती है, इस वजह से पथरी की समस्या से जूझने वाले इसका सेवन करते हैं। जाड़े के दिनों में घी के साथ गहत की दाल खाने का आनंद ही कुछ और होता है। ये दाल प्रोटीन, कैल्शियम, फॉस्फोरस और कई विटामिन के लिहाज से भी फायदेमंद है। कुलथी दाल में फैट बर्नर के गुण होते हैं। इसका सेवन करने से भूख कंट्रोल में रहती है। इसी तरह रागी या मडुआ के आटा पोष्टिक तत्वों से भरपूर अनाज की किस्म है। पहाड़ में इसकी रोटी खूब खाई जाती है। अब इसकी विदेशों में भी बेहद मांग है। मिलेट्स में आने वाला मडुआ सेहत के लिए गुणों का खजाना है। इसमें कैल्शियम की मात्रा ज्यादा होती है, जिससे हड्डियां मजबूत होती हैं। वहीं आयरन, फाइबर की मात्रा अधिक होने से ये वजन कम करने में कारगर है। इसके अलावा इसमें विटामिन ई और विटामिन सी की भी भरपूर मात्रा मिलती है। रागी में ट्रिप्टोफैन एसिड भी पाया जाता है, जो भूख को कंट्रोल में सहायक होता है। इसका इस्तेमाल सूप, जूस, उपमा, डोसा, केक, चॉकलेट, बिस्किटस, चिप्स और आर्युवेदिक दवा के रूप में होता है।
काली हल्दी : आयुर्वेद का दुर्लभ खजाना
मेले में उत्तराखंड की पहाड़ियों में उगाई जाने वाली काली हल्दी भी खास आकर्षण है। अदरक प्रजाति की यह हल्दी पारंपरिक औषधि के रूप में उपयोगी है। पेट दर्द, गैस और वायरस से लड़ने में काली हल्दी के फायदे अनमोल हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है। मेले में काली हल्दी 500 रुपये प्रति 100 ग्राम की दर से उपलब्ध है।
भदोही की कालीन और मध्य प्रदेश की साड़ियों पर छूट
उत्तरायणी कौथिग में भदोही से लाई गई कालीनें और मध्य प्रदेश की साड़ियां भी मेले का आकर्षण हैं। कालीनें 400 रुपये से लेकर 15,000 रुपये तक में उपलब्ध हैं और उन पर 50 प्रतिशत तक की छूट दी जा रही है। मध्य प्रदेश से आईं साड़ियां 200 रुपये से लेकर 1,000 रुपये तक की रेंज में खरीदी जा सकती हैं। मेले में आने वाले ग्राहक इस विशेष छूट का लाभ उठा रहे हैं।
पारंपरिक सांस्कृतिक विरासत का प्रदर्शन
उत्तरायणी कौथिग में उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का जीवंत प्रदर्शन भी देखने को मिल रहा है। छोलिया, झोड़ा और चांचरी नृत्य के कलाकर अपनी कला की शानदार प्रस्तुति कर रहे हैं। पारंपरिक परिधानों और लोक कला ने मेले में सांस्कृतिक माहौल को और भी जीवंत बना दिया।
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