महिला कैदियों को संचार में कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है। खासतौर पर कोरोना संक्रमण के दौरान जब मुलाकातें बंद कर दी गईं थीं, तब उनकी स्थिति बेहद खराब थी।
यूपी की जेलों में महिला कैदी और उनके बच्चों की दिक्कतें-जरूरतें : वर्तिका नन्दा के शोध में सामने आया सच, सिफारिशों पर होगा काम
Aug 23, 2024 19:39
Aug 23, 2024 19:39
आगरा जिला जेल से हुई शोध की शुरुआत, महिला कैदियों से जाना हाल
डॉ. वर्तिका नन्दा ने भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR) के अंतर्गत किए गए इस अध्ययन में उत्तर प्रदेश की 6 जेलों का चयन किया । इस अध्ययन के दौरान जिला जेल, आगरा में जेल रेडियो की भी शुरुआत की गई। इस दौरान मुख्य सचिव ने कहा कि उत्तर प्रदेश के जेलों में महिला कैदियों और उनके साथ रह रहे बच्चों के लिए विभिन्न कल्याणकारी उपाय किए जा रहे हैं। इनमें महिला कैदियों के लिए अलग आवास और बैरकों का निर्माण, स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के साथ-साथ शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण पहल शामिल हैं। शोध रिपोर्ट में जेलों में सुधार सिफारिशें को जेलों में लागू कराने की पूरी कोशिश की जाएगी। इस मौके पर पीवी राम शास्त्री ने महिला कैदियों और उनके बच्चों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए चल रही पहलों पर जोर दिया, जिनमें बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा कार्यक्रम और कौशल प्रशिक्षण शामिल हैं।
एक साल में शोध में यूपी की छह जेलों का बारीकी से किया गया अध्ययन
इस अध्ययन का उद्देश्य उत्तर प्रदेश की जेलों में महिला और बच्चों की संचार आवश्यकताओं और उनके जीवन की स्थिति को समझना था। इसमें उनकी भलाई और जीवन को बेहतर बनाने के बारे में सुझाव भी दिए गए हैं। डॉ. वर्तिका नन्दा ने इसके लिए मार्च 2019 से 2020 तक एक वर्ष तक गहन शोध किया। इसमें महामारी के दौरान कैदियों के सामने आने वाली संचार चुनौतियों को भी शामिल किया गया। उत्तर प्रदेश की जिन छह प्रमुख जेलों को इस अध्ययन के लिए चुना गया, उनमें जिला जेल आगरा, नारी बंदी निकेतन लखनऊ, जिला जेल गाजियाबाद, गौतम बुद्ध नगर, बांदा और केंद्रीय जेल नैनी शामिल हैं। यह अध्ययन मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश पर केंद्रित था। हालांकि, इसमें दिल्ली की तिहाड़ जेल की स्थितियों के साथ तुलनात्मक विश्लेषण भी शामिल किया गया है।
कई समस्याओं से जूझ रहीं महिला कैदी, बच्चों को लेकर भी सुधार जरूरी
इस दौरान शोध में सामने आया है कि महिला कैदी पूरी तरह से अलग-थलग क्षेत्रों में रहती हैं। यहां उनकी आवश्यकताओं की आमतौर पर अनदेखी की जाती है। जेल का वातावरण पुरुषों के लिए डिजाइन किया गया है, जिसके कारण महिला, बच्चे और ट्रांसजेंडर कैदियों को स्वास्थ्य सेवाओं, संचार सुविधाओं और व्यावसायिक प्रशिक्षण में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। महिला कैदियों को संचार में कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है। खासतौर पर कोरोना संक्रमण के दौरान जब मुलाकातें बंद कर दी गईं थीं, तब उनकी स्थिति बेहद खराब थी। कहने को मॉडल जेल मैनुअल में जेल रेडियो का प्रावधान है। लेकिन, उत्तर प्रदेश की कई जेलों में यह सुविधा नाकाफी है। इसी तरह जेल में रहने वाले बच्चों के सामने गुणवत्तापरक शिक्षा, मनोरंजन आदि को लेकर भी दिक्कतें हैं। इंटरनेट सुविधा नहीं होने और कंप्यूटर प्रशिक्षण को लेकर उचित उपायों के अभाव में हालात बेहतर नहीं हैं।
शोध के दौरान सकारात्मक पहल से बदला माहौल
डॉ. वर्तिका नन्दा के शोध के दौरान कुछ सकारात्मक पहलू भी देखने को मिले। उनके अध्ययन के दौरान आगरा जेल में रेडियो स्टेशन शुरू किया गया। इसका संचालन कैदियों ने संभाला और इसमें पहली महिला रेडियो जॉकी तुहिना थी। इस तरह के प्रयास से संचार की खाई को पाटने और कैदियों के मनोबल को बढ़ाने में बड़ी मदद मिली। अहम बात है कि इस रेडियो स्टेशन से प्रेरणा लेकर हरियाणा की 10 जेलों में भी ऐसा ही प्रोजेक्ट शुरू किया गया। इसके साथ ही कैदियों में कौशल विकास को बढ़ावा देने के कार्यक्रम भी जेलों में शुरू किए गए हैं। इसके अलावा अध्ययन के सुझावों के मद्देनजर विभिन्न जेलों में कैदियों के लिए टेलीफोन की सुविधाएं मुहैया कराई गई हैं।
शोध में की गईं अहम सिफारिशें
- गृह मंत्रालय को एक नीति निर्देश जारी करना चाहिए ताकि सभी प्रदेश जेल मैनुअल में जेल रेडियो को शामिल किया जा सके।
- जेल रेडियो संचालन में सक्रिय रूप से भाग लेने वाले कैदियों को विशेष छूट दी जानी चाहिए।
- बच्चों को दूसरे कैदियों के नकारात्मक प्रभाव से बचाना बेहद जरूरी है। इसके लिए उनकी आवासीय व्यवस्था उनकी मां के आवास के करीब होने की सिफारिश की गई है।
- जेल में रहने वाले बच्चों को टेलीफोन का इस्तेमाल और डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों से जोड़ा जाना बेहद जरूरी है।
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