लखनऊ में कालाजार की दस्तक : किशोर में संक्रमण की पुष्टि-फीमेल सेंड फ्लाई मिली, 2019 में खत्म मान ली गई थी बीमारी

किशोर में संक्रमण की पुष्टि-फीमेल सेंड फ्लाई मिली, 2019 में खत्म मान ली गई थी बीमारी
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Nov 05, 2024 09:32

मामले की गंभीरता को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग ने किशोर के घर के आसपास रहने वाले 500 परिवारों की स्वास्थ्य जांच कराने की योजना बनाई है। आमतौर पर नेपाल सीमा के पास स्थित जिलों में कालाजार के केस सामने आते थे। लेकिन, लखनऊ में इसका पहला मामला सामने आने के बाद सतर्कता बढ़ा दी गई है। किशोर का इलाज निजी मेडिकल कॉलेज में हो रहा है।

Nov 05, 2024 09:32

Lucknow News : राजधानी में कालाजार का पहला मामला सामने आने के बाद स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मच गया है। स्वास्थ्य विभाग की टीम ने मरीज के घर में जांच की, जहां कालाजार फैलाने वाली बालू मक्खी भी मिली है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की टीम ने भी स्थिति का जायजा लिया है। त्रिवेणीनगर क्षेत्र में मिले इस मरीज की पहचान 17 वर्षीय किशोर के रूप में हुई है, जिसका कोई यात्रा इतिहास नहीं है। इस वजह से चिकित्सक भी पता लगाने में जुटे हैं कि आखिर किशोर इससे ग्रसित कैसे हुआ। लखनऊ में कालाजार के मामले देखने को नहीं मिलते हैं। प्रदेश में इसे समाप्त माना जा चुका है।

500 परिवारों की होगी स्वास्थ्य जांच
इस मामले की गंभीरता को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग ने किशोर के घर के आसपास रहने वाले 500 परिवारों की स्वास्थ्य जांच कराने की योजना बनाई है। आमतौर पर नेपाल सीमा के पास स्थित जिलों में कालाजार के केस सामने आते थे। लेकिन, लखनऊ में इसका पहला मामला सामने आने के बाद सतर्कता बढ़ा दी गई है। किशोर का इलाज निजी मेडिकल कॉलेज में हो रहा है, जहां डेंगू और मलेरिया की रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद कालाजार की पुष्टि हुई थी।



बालू मक्खी के कारणों की जांच
स्वास्थ्य विभाग के संयुक्त निदेशक (कालाजार) डॉ. एके चौधरी के मुताबिक बालू मक्खी के यहां मिलने के कारणों की भी जांच की जा रही है। उनका कहना है कि यह मक्खी जानवरों के जरिए यहां तक पहुंच सकती है। बालू मक्खी के काटने से होने वाली इस बीमारी को फीमेल सेंड फ्लाई से फैलने वाला कालाजार कहा जाता है।

कालाजार को 2019 में यूपी से माना गया था समाप्त
2019 में उत्तर प्रदेश में प्रति 10,000 की आबादी पर 0.5 केस से भी कम आने के कारण इस बीमारी को खत्म मान लिया गया था। डब्ल्यूएचओ के मानक के अनुसार, अगर प्रति वर्ष एक ब्लॉक में 1,000 की आबादी पर एक ही केस सामने आए तो उसे उन्मूलन की श्रेणी में माना जाता है। 2024 में अब तक कुशीनगर में सात, बलिया में दो, और देवरिया में एक केस मिले हैं जिनकी लगातार निगरानी की जा रही है।

फीमेल सेंड फ्लाई के काटने से होता है कालाजार
गैस्ट्रोइंट्रोलॉजिस्ट बताते हैं कि कालाजार का कारण फीमेल सेंड फ्लाई के काटने से फैलने वाला लौशमैनिया परजीवी है। बालू मक्खी गहरी नमी और कम रोशनी वाली जगह पर पाई जाती है। मक्खी जब किसी पीड़ित को काटती है तो वह परजीवी लेकर जाती है और दूसरे व्यक्ति को काटने पर उस परजीवी को वहां पहुंचा देती है। इस बीमारी में बुखार, थकान, वजन कम होना, एनीमिया, और यकृत व प्लीहा में सूजन जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। अगर इसका इलाज न किया जाए तो यह जानलेवा साबित हो सकता है।

सीमावर्ती जिलों में विशेष निगरानी
उत्तर प्रदेश में कालाजार से प्रभावित अधिकांश मरीजों का यात्रा इतिहास नेपाल से जुड़ा पाया गया है। इसी कारण नेपाल से सटे जिलों जैसे लखीमपुर खीरी, महराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, बलिया, देवरिया, बहराइच और गाजीपुर के 46 ब्लॉक को संवेदनशील मानते हुए विशेष निगरानी की जा रही है। इन क्षेत्रों में बालू मक्खी के संभावित स्थानों पर छिड़काव और अन्य नियंत्रण के उपाय किए जा रहे हैं।

लखनऊ में कालाजार को लेकर विशेष सतर्कता
लखनऊ में इस मामले के सामने आने के बाद जिले में बचाव के उपाय तुरंत शुरू कर दिए गए हैं। स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. ब्रजेश राठौर के मुताबिक अन्य जिलों में भी अलर्ट जारी कर दिया गया है और जहां पहले से केस हैं, उन जिलों में निगरानी को बढ़ा दिया गया है। लखनऊ में कालाजार के मामलों की जांच और नियंत्रण के लिए सतर्कता बढ़ाई गई है ताकि बीमारी को आगे फैलने से रोका जा सके।

कालाजार क्या है?
कालाजार, जिसे विसरल लीशमैनियासिस (Visceral Leishmaniasis) भी कहा जाता है, एक गंभीर और घातक परजीवी संक्रमण है जो लौशमैनिया डोनोवानी (Leishmania donovani) नामक परजीवी से होता है। यह परजीवी मुख्य रूप से एक विशेष प्रकार की मादा सेंड फ्लाई (बालू मक्खी) के काटने से फैलता है।

कालाजार का कारण और प्रसार
परजीवी संक्रमण :
यह बीमारी लौशमैनिया डोनोवानी परजीवी से होती है, जो मादा बालू मक्खी के काटने से मानव शरीर में प्रवेश करता है।
प्रसार का माध्यम : यह रोग केवल फीमेल सेंड फ्लाई के काटने से फैलता है, जो आमतौर पर नमी और अंधेरे स्थानों में रहती हैं।

कालाजार के लक्षण 
तेज बुखार :
रोगियों को बार-बार और लंबे समय तक तेज बुखार हो सकता है।
वजन कम होना : भूख न लगने के कारण तेजी से वजन घटता है।
थकान और कमजोरी : रोगी अत्यधिक थकान और कमजोरी महसूस करता है।
त्वचा का रंग बदलना : रोगी के चेहरे, हाथों और पैरों का रंग काला पड़ सकता है, इसलिए इसे ‘कालाजार’ कहा जाता है।
यकृत और प्लीहा में सूजन : पेट के ऊपरी हिस्से में सूजन और दर्द महसूस होता है, जो लीवर और स्प्लीन में सूजन के कारण होता है।
एनीमिया (रक्ताल्पता) : रोगियों में हीमोग्लोबिन का स्तर गिर जाता है, जिससे एनीमिया हो सकता है।

कालाजार से बचाव के उपाय
बालू मक्खी का नियंत्रण :
मक्खियों के प्रजनन स्थल को नष्ट करना आवश्यक है। नमी और अंधेरे वाली जगहों पर छिड़काव किया जाना चाहिए।
निजी सुरक्षा : संक्रमित क्षेत्रों में रहते समय मच्छरदानी, फुल आस्तीन के कपड़े पहनने चाहिए और मच्छर प्रतिरोधक क्रीम का प्रयोग करना चाहिए।
स्वास्थ्य निगरानी : नेपाल सीमा के आसपास और अन्य संवेदनशील क्षेत्रों में नियमित स्वास्थ्य जांचें कराई जाती हैं।
सामुदायिक जागरूकता : इस बीमारी के प्रति समुदाय को जागरूक बनाना और बचाव के उपायों की जानकारी देना महत्वपूर्ण है।

भारत में कालाजार की स्थिति
संवेदनशील राज्य: भारत में यह बीमारी विशेष रूप से बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और नेपाल की सीमा से सटे जिलों में पाई जाती है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, अगर किसी क्षेत्र में प्रति 10,000 की आबादी पर एक से कम केस मिलते हैं तो इसे उन्मूलन मान लिया जाता है।
 

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