राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (NSS) 2014 के अनुसार 18 से 24 वर्ष की आयु के बीच भारत में 16.6 प्रतिशत पुरुष स्नातक छात्र और 9.5 % महिला स्नातक छात्र उच्च शिक्षा का खर्च नहीं उठा सकते। इसके अलावा, अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण( 2019- 20) ने संकेत दिया है कि केवल 66.3% छात्रों को निजी तौर पर संचालित 78.6% कॉलेज द्वारा शिक्षा मुहैया कराई।
Hapur News : मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण पर ध्यान देने की जरूरत
Jun 14, 2024 02:35
Jun 14, 2024 02:35
- शिक्षा का अधिकार बनाम धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार पर सेमिनार
- किसी समाज और देश के विकास का आधार वहां की शिक्षा
- मुस्लिम महिलाओं में शिक्षा का स्तर गिरता चिंता का विषय
मुस्लिम विद्यार्थियों (पुरुष) का नामांकन वर्ष 2022 में आधा हो गया
इस दौरान उन्होंने बताया कि एक सर्वे के अनुसार कर्नाटक के उडुपी जिले में जो कि 2022 के हिजाब विरोध का मुख्य केंद्र था। विचारणीय स्तर पर मुस्लिम विद्यार्थियों का पलायन, सरकारी शिक्षा संस्थानों से निजी शिक्षण संस्थानों में देखा गया। सरकारी संस्थानों में मुस्लिम विद्यार्थियों (पुरुष) का नामांकन वर्ष 2022 में आधा हो गया है (210 से घटकर 95), वहीं मुस्लिम छात्राओं का सरकारी संस्थाओं में नामांकन लगभग 91 प्रतिशत तक घट गया (178 से 91 तक)। इस गिरावट के साथ निजी शिक्षण संस्थान में बढ़ते नामांकन ने प्रतिसंतुलन की स्थिति को पैदा कर दिया है। यह आंकड़े भयावह हैं क्योंकि अब बहस गुणवत्तापूर्ण सस्ती शिक्षा बनाम गैरकिफायती शिक्षा से हटकर शिक्षा बनाम धार्मिक विश्वास पर हो गई है। उन्होंने कहा कि सभी अपने बच्चों की शिक्षा पर जोर दें। खासकर मुस्लिम लड़कियों पर।
66.3% छात्रों को निजी तौर पर संचालित 78.6% कॉलेज द्वारा शिक्षा मुहैया
डॉ. शबीना खान ने कहा कि राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (NSS) 2014 के अनुसार 18 से 24 वर्ष की आयु के बीच भारत में 16.6 प्रतिशत पुरुष स्नातक छात्र और 9.5 % महिला स्नातक छात्र उच्च शिक्षा का खर्च नहीं उठा सकते। इसके अलावा, अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण( 2019- 20) ने संकेत दिया है कि केवल 66.3% छात्रों को निजी तौर पर संचालित 78.6% कॉलेज द्वारा शिक्षा मुहैया कराई जाती है। शिक्षा से ना केवल व्यक्ति और समुदाय को बल्कि पूरे देश को लाभ होता है। उन्होंने कहा कि मुस्लिम माता-पिता भारी कर्ज और भेदभाव किए जाने की गलत धारणाओं के बारे में अपने डर और चिंताओं पर काबू करके, अपने बच्चों को स्कूल में दाखिला दिलाते हैं। यह गलत धारणा लंबे समय से बनी हुई है कि मुस्लिम परिवार औपचारिक शिक्षा में रुचि नहीं रखते, हालांकि सच्चर समिति की रिपोर्ट सहित कई अध्ययनों ने इस मिथक को दूर किया है और यह बताया है कि मुस्लिम छात्र और उनके माता-पिता ईमानदारी से अपने बच्चों को शीर्ष स्कूलों में दाखिला दिलाना चाहते हैं लेकिन कई सामाजिक और आर्थिक दबावों से मजबूर हैं। उन्होंने कहा कि एक राष्ट्र की भलाई तभी परिभाषित होती है जब महिलाएं मजबूत होती है। बेहतर होगा कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीअत उलेमा हिंद आदि संगठन इस विषय में पहल करें। वो विभिन्न संस्थानों द्वारा प्रदान की जाने वाली गुणवत्ता वाली सस्ती शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हुए अपने समुदाय के लिए कानूनी लड़ाई लड़ें। शिक्षा को, राजनीति से प्रेरित किन्ही भी विवादों से बाधित नहीं होना चाहिए जो लाखों छात्रों के भविष्य को नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखते हैं।
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