Baghpat News : बरनावा में कौरवों ने बनाई थी पांडवों को जलाकर मारने की योजना, जानिए फिर कैसे बचे पांडव

बरनावा में कौरवों ने बनाई थी पांडवों को जलाकर मारने की योजना, जानिए फिर कैसे बचे पांडव
UPT | बरनावा में हिंदू पक्ष के लोग खुशी मनाते

Feb 05, 2024 20:00

लाक्षागृह के पास मौजूद कुछ बुजुर्ग लोगों ने इसके पूरे इतिहास के बारे में बताया। इस पर उत्तर प्रदेश टाइम्स ने भी बरनावा के महाभारत कालीन लाक्षागृह के बारे में लोगों से बातचीत कर एक रिपोर्ट बनाई है…

Feb 05, 2024 20:00

Baghpat News : बागपत जिले में बरनावा में महाभारत कालीन लाक्षागृह को लेकर सोमवार को आए अदालत के फैसले से हिंदू पक्ष के लोगों में खुशी की लहर है। लोग एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर खुशी मना रहे हैं। इस दौरान लोगों ने बताया कि 53 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद उन्हें अपना तीर्थ स्थल मिला है। लाक्षागृह के पास मौजूद कुछ बुजुर्ग लोगों ने इसके पूरे इतिहास के बारे में बताया। इस पर उत्तर प्रदेश टाइम्स ने भी बरनावा के महाभारत कालीन लाक्षागृह के बारे में लोगों से बातचीत कर एक रिपोर्ट बनाई है…

महाभारत में कौरवों ने पांडवों को इस महल में था ठहराया
मेरठ से करीब 35 किलोमीटर दूर बागपत जिले में बरनावा नाम से एक तहसील है। यहां महाभारत कालीन लाक्षागृह नामक इमारत के अवशेष आज एक टीले के रूप में मौजूद हैं। जिसके बारे में लोगों ने बताया कि महाभारत में कौरवों ने पांडवों को इस महल में ठहराया था और फिर उन्हें जलाकर मारने की योजना बनाई थी। किन्तु पांडवों के शुभचिंतकों ने उन्हें गुप्त रूप से सूचित कर दिया था और वे वहां से बचकर निकल गए थे। बताया जाता है कि सभी पांडव यहां से एक गुप्त सुरंग द्वारा निकले थे। यह सुरंग आज भी हिंडन नदी के किनारे जाकर खुलती है। इतिहास अनुसार पांडव इसी सुरंग के रास्ते जलते महल से सुरक्षित बाहर निकल गए थे। मेरठ जिले से लगे जनपद में बागपत व बरनावा तक पहुंचने वाली कृष्णा नदी का यहां हिंडन में मिलन भी होता है।

जानिए किस नाम को बदलकर पड़ा बरनावा 
इतिहासकारों के अनुसार दुर्योधन ने पांडवों को जलाकर खत्म करने की योजना बनाई थी। जिसके चलते वारणावर्त ( जो अब बरनावा) में है, पुरोचन नाम के शिल्पी से ज्वलनशील पदार्थों लाख व मोम आदि से एक भवन तैयार कराया गया था। जिसके अंदर कौरवों ने षडयंत्र के तहत पांडवों को ठहराया था। लेकिन भवन में आग लगने से पहले ही सभी पांडव एक सुरंग के जरिए वहां से बचकर निकल गए थे। उल्लेखनीय है, कि पांडवों ने जो पांच गांव दुर्योधन से मांगे थे, वह गांव पानीपत, सोनीपत, बागपत, तिलपत, वरुपत (बरनावा)  नाम से जाने जाते हैं। वहीं जब श्रीकृष्ण जी संधि का प्रस्ताव लेकर दुर्योधन के पास आए थे, तो दुर्योधन ने कृष्ण का यह कहकर अपमान कर दिया था, कि "युद्ध के बिना सुई की नोक के बराबर भी जमीन नहीं मिलेगी।" इस अपमान की वजह से कृष्ण ने दुर्योधन के यहां खाना भी नहीं खाया था और वे महामुनि विदुर के आश्रम में गए थे। जहां विदुर का आश्रम आज गंगा के उस पार बिजनौर जिले में पड़ता है। वहां पर विदुर जी ने कृष्ण को बथुवे का साग खिलाया था।

लाक्षागृह के साथ सुरंग के हैं अवशेष, पांडव निकले थे सुरक्षित 
लाक्षागृह और पांडव जिस सुरंग से होकर बाहर सुरक्षित निकल गए थे, उनके अवशेष आज भी बरनावा बागपत में मिलते हैं। गांव के दक्षिण में लगभग 100 फुट ऊंचा और 30 एकड़ भूमि पर फैला हुआ यह टीला लाक्षागृह के अवशेष के रूप में मौजूद है। इस टीले के नीचे 2 सुरंगें होना बताया जाता है। 

पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित क्षेत्र, 24 लाख रुपये में किया जीर्णोद्धार
बरनावा के इस लाक्षागृह टीले पर एएसआइ द्वारा संरक्षित क्षेत्र भी है। जहां प्राचीन काल के अवशेष आज भी मौजूद हैं। एएसआइ आगरा से सुपरवाइजर शमशेर के निर्देशन में पिछले दिनों कारीगरों की टीम ने पहचान खो रहे संरक्षित क्षेत्र की चाहरदीवारी का निर्माण कर गुम्बदनुमा अवशेष को नक्काशी कर पत्थर लगाकर संवारा था। करीब 24 लाख रुपये के बजट से इसका जीर्णोद्धार किया गया। 

पर्यटकों के लिए बना विशेष आकर्षण का केंद्र
जीर्णोद्धार के बाद यह क्षेत्र भी पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है। प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति विभाग द्वारा लाक्षागृह को महाभारत सर्किट योजना से जोड़कर वर्ष 2006-07 में करीब डेढ़ करोड़ रुपये की धनराशि से सौंदर्यीकरण कराया गया। इसमें सुरंगों का सौंदर्यीकरण, सभा कक्ष, पर्यटकों के लिए शेड, फुटपाथ, सीढि़या, स्नानागार व शौचालय आदि का निर्माण हुआ। लाक्षागृह पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो रहा है।

स्वदेश दर्शन योजना नहीं चढ़ी परवान, विदेश से आते हैं श्रद्धालु 
बताया जाता है कि लाक्षागृह के विकास के लिए पिछली केंद्र सरकार के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्रालय द्वारा भी लाक्षागृह को स्वदेश दर्शन योजना के आध्यात्मिक परिपथ-1 प्रोजेक्ट के तहत वर्ष 2016 में 1.39 करोड़ की धनराशि से विकास की स्वीकृति दी गई थी, लेकिन एएसआइ के अड़ंगे के चलते यह योजना शुरू ही नहीं हो पाई। यहां गुरुकुल परिसर में पांच भव्य यज्ञशालाएं हैं। इनमें वर्ष में दो बार बड़े यज्ञों के आयोजन होते हैं, जिनमें देश भर ही नहीं विदेश से भी श्रद्धालु भाग लेने आते हैं।

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