जेवर में बन रहे नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट के भीतर एमआरओ सुविधा विकसित करने के लिए 40 एकड़ एरिया में एक सेंटर बनाया जाएगा। एयरपोर्ट वाले सेंटर के लिए टेंडर निकाला है।
भारत में दोगुना होने वाली है हवाई जहाजों की संख्या : जेवर एयरपोर्ट सालाना हजारों करोड़ रुपये कमाएगा, तैयारी हुई शुरू
Aug 09, 2024 21:04
Aug 09, 2024 21:04
- जेवर एयरपोर्ट सालाना हजारों करोड़ रुपये कमाएगा
- यमुना अथॉरिटी ने प्लान पर काम शुरू किया
- सालाना 3.5 मिलियन मीट्रिक टन एयर कार्गो
यमुना अथॉरिटी ने प्लान पर काम शुरू किया
डॉ अरुणवीर सिंह ने बताया, "अमेरिका और चीन के बाद सबसे बड़ा एमआरओ हब बनाया जाएगा। एयर कार्गो का 5.6 बिलियन डॉलर का बिजनेस है। अभी देश में 713 एयरक्राफ्ट हैं। आने वाले वर्षों में सांख्य बढ़कर 1,500 होने वाली है। इनके लिए मेंटिनेंस कोस्ट 1200-1500 प्रतिशत तक बढ़ेगी। कंपोनेंट मेंटिनेंस 1500-6000 घंटे में होता है। बड़े हवाई जहाज का मेंटेनेंस 12-18 महीने या 12,000-18,000 घंटे चलने के बाद होता है। जेवर हवाईअड्डे पर साल 2025 में दूसरा रनवे बनेगा। जिससे सालाना 80 मिलियन टन कार्गो आयात और निर्यात करने का लक्ष्य है।"
भारत में 1.7 बिलियन डॉलर का एमआरओ बाजार
भारतीय एमआरओ बाजार लगभग 1.7 बिलियन डॉलर है और 2031 तक इसके 4 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। इस क्षमता के बावजूद, भारत के एमआरओ बाजार में लगभग 90% से अधिक सेवाएं विदेशी देशों को आउटसोर्स किया जाता है। जिसका मुख्य कारण लागत लाभ और पर्याप्त घरेलू बुनियादी ढांचे की कमी है। देश में उच्च कर और जटिल विनियामक वातावरण है। कुशल कार्यबल की कमी है। सीमित अवसंरचना और प्रौद्योगिकी है। पड़ोसी देशों में स्थापित एमआरओ केंद्रों से प्रतिस्पर्धा बहुत ज्यादा है। भारत सरकार ने एमआरओ क्षेत्र की क्षमता को पहचाना है और कई योजनाओं को लागू किया है, इसके विकास को बढ़ावा देने के उपाय सामने आए हैं। जिनमें एमआरओ सेवाओं पर जीएसटी को 18% से घटाकर 5% करना जरूरी है। एमआरओ क्षेत्र में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति देना और राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति के तहत एमआरओ हब का विकास करना जरूरी है। इसी के तहत जेवर एयरपोर्ट के पास यह हब विकसित किया जाएगा। एमआरओ हब का विकास होने से घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय हवाई यातायात में वृद्धि होगी। भारतीय वाहकों के बेड़े का आकार बढ़ेगा। दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व के लिए एमआरओ हब के रूप में काम करने की क्षमता देश में विकसित की जा सकती है।
सालाना 3.5 मिलियन मीट्रिक टन एयर कार्गो
भारत का एयर कार्गो क्षेत्र लगातार विकास का अनुभव कर रहा है, जो देश के लॉजिस्टिक्स और आपूर्ति श्रृंखला नेटवर्क में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। तेजी से बढ़ते ई-कॉमर्स बाजार के साथ दुनिया की सातवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में, भारत का एयर कार्गो उद्योग महत्वपूर्ण क्षमता रखता है। अभी भारत सालाना लगभग 3.5 मिलियन मीट्रिक टन एयर कार्गो संभालता है। एयर कार्गो भारतीय एयरलाइन उद्योग के राजस्व का लगभग 27% योगदान देता है। प्रमुख खिलाड़ियों में एयर इंडिया कार्गो, ब्लू डार्ट एविएशन और स्पाइसएक्सप्रेस शामिल हैं।
इन 4 वजहों से बढ़ रहा कार्गो बाजार
1. ई-कॉमर्स में उछाल
2. बढ़ता दवा निर्यात
3. खराब होने वाले सामानों के परिवहन में वृद्धि
4. विनिर्माण क्षेत्र में वृद्धि
ये हैं 4 चुनौतियां
1. कई हवाई अड्डों पर अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा
2. उच्च परिचालन लागत
3. जटिल विनियामक वातावरण
4. टियर-2 और टियर-3 शहरों से सीमित संपर्क
सरकार ने क्या कदम उठाए
- राष्ट्रीय एयर कार्गो नीति रूपरेखा 2019: इसका लक्ष्य 2025 तक भारत को शीर्ष पाँच एयर फ्रेट बाज़ारों में शामिल करना है।
- एयर कार्गो कम्युनिटी सिस्टम: कार्गो संचालन को सुव्यवस्थित करने के लिए डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म।
- कृषि उड़ान योजना: हवाई परिवहन नेटवर्क के साथ बेहतर एकीकरण के माध्यम से कृषि में मूल्य प्राप्ति में सुधार पर ध्यान केंद्रित करती है।
भारतीय एयर कार्गो बाज़ार अगले 5 वर्षों में 9-10% बढ़ने की उम्मीद है। इस दौरान तेजी से बुनियादी ढांचे का विकास हो रहा है। तकनीकी उन्नति (जैसे, स्वचालन, एआई) हो रही है। घरेलू कनेक्टिविटी को भारत सरकार बढ़ा रही है। इस सेक्टर को रेगुलरेट किया जा रहा है। भारत के बढ़ते एयर कार्गो बाजार विशेष रूप से फार्मास्यूटिकल्स, पेरिशेबल्स और ई-कॉमर्स लॉजिस्टिक्स जैसे विशेष क्षेत्रों में नए निवेशकों और खिलाडियों के लिए अवसर मौजूद हैं।कुल मिलाकर इन सारी परिस्थितियों का फायदा जेवर अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे को मिलेगा। जिससे इस इलाके में रोजगार के नए अवसर आने वाले हैं। युवाओं को आगे बढ़ने का मौका मिलेगा। कार्गो और एमआरओ से जुड़ी कंपनियां यहां आएंगी और निवेश करेंगी।
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