यह चुनाव जीतना सबसे बड़ी चुनौती भाजपा के लिए है। उसके दो कारण है। पहला ये सीट भाजपा विधायक अतुल गर्ग के इस्तीफे से खाली हुई है। दूसरे, लखनऊ और दिल्ली में भाजपा की सरकार है।
गाजियाबाद उपचुनाव : जीत में निर्णायक भूमिका निभाएगा लाइन पार का मतदाता
Nov 19, 2024 08:58
Nov 19, 2024 08:58
- लाइनपार मतदाताओं को पक्ष में करने के लिए झोंकी ताकत
- मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कर चुके हैं लाइनपार रोड शो
- वोट प्रतिशत बढ़ाने के साथ मतदाताओं को साधना बड़ी चुनौती
भाजपा ने स्टार प्रचारकों ने जमकर प्रचार किया
विधानसभा उपचुनाव के प्रचार के दौरान गाजियाबाद में भाजपा ने स्टार प्रचारकों ने जमकर प्रचार किया। भाजपा प्रत्याशी के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दो बार आकर माहौल बनाने की कोशिश कर चुके हैं। उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक भी चुनावी जनसभा को संबोधित कर चुके हैं। सांसद और फिल्म स्टार मनोज तिवारी ने पूर्वांचल के मतदाताओं को साधने का काम किया।
अखिलेश यादव, राहुल गांधी और प्रियंका के कार्यक्रम की कोशिशें तो रही
दूसरी ओर सपा-कांग्रेस प्रत्याशी के लिए अखिलेश यादव, राहुल गांधी और प्रियंका के कार्यक्रम की कोशिशें तो रही। लेकिन तीनों ही नेता उपचुनाव में प्रचार के लिए नहीं पहुंच सके। योगी आदित्यनाथ के गाजियाबाद में चुनाव के दो दौरे हो चुके हैं। इससे पहले योगी चुनाव को लेकर हिंदी भवन में प्रबुद्ध सम्मेलन और उसके बाद घंटाघर रामलीला मैदान में एक जनसभा सितंबर माह में कर चुके हैं। ये सभी कार्यक्रम शहरी क्षेत्र में हुए। जहां पर उपचुनाव होना है।
लाइनपार में भाजपा को सपा से कड़ी टक्कर
लाइनपार क्षेत्र में भाजपा की सपा प्रत्याशी से कड़ी टक्कर बताई जा रही है। गाजियाबाद विधानसभा उपचुनाव भाजपा से संजीव शर्मा मजबूत प्रत्याशी माने जा रहे हैं, लेकिन फिर भी भाजपा की दो बड़ी चिंता हैं। पहली चिंता वोटिंग प्रतिशत और दूसरी चिंता लाइनपार के मतदाताओं को साधने की है। किसी वजह से वोटिंग प्रतिशत कम हुआ तो ये प्रत्याशियों के लिए नुकसानदेह हो सकता है। सपा-कांग्रेस प्रत्याशी लाइनपार क्षेत्र से दलित वर्ग से आते हैं। सीट पर करीब 75 हजार दलित वोटर हैं और बड़ा वर्ग लाइनपार क्षेत्र से है। इसके अलावा लाइनपार क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या में अच्छी खासी है।
मतदाताओं का ध्रुवीकरण रोकना बड़ी चुनौती
गाजियाबाद विधानसभा उपचुनाव में ध्रुवीकरण होने से सपा को बड़ा नुकसान हो सकता है। खुद सपा को भी इस बात का अहसास है। इसलिए सपा उपचुनाव को लेकर बहुत एग्रेसिव नहीं है। अखिलेश यादव पिछले दिनों आए और एक बैंक्वेट हाल में कार्यकर्ता सम्मेलन को संबोधित कर लौट गए। जबकि ऐसे कार्यक्रम सपा की चुनावी रणनीति में कम दिखते हैं। भाजपा जरूर इस तरह के कार्यक्रम आयोजित करती रही है। हालांकि अखिलेश यादव का जनसभा को संबोधित करने का कार्यक्रम था लेकिन वो ऐन मौके पर रदद हो गया।
दलित-मुस्लिम मतदाताओं पर दारोमदार
दलित-मुस्लिम मतदाताओं की संख्या जोड़ दी जाए तो आंकड़ा डेढ़ लाख पहुंच जाता है। यही वह जादुई संख्या है जो किसी भी प्रत्याशी को विधानसभा पहुंचाने के लिए पर्याप्त है। अखिलेश यादव के द्वारा दलित प्रत्याशी के रूप में सिंहराज जाटव का उतारा जाना और पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) का नारा देना यहीं इशारा करता है। भाजपा अपने कार्यक्रम में लगातार मत प्रतिशत बढ़ाने की बात पर जोर देती रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी पन्ना प्रमुखों को यही जिम्मेदारी सबसे बड़ी सौंपी है। लाइनपार वालों को अपना बनाने के लिए भाजपा प्रत्याशी चुनाव के बीच लाइनपार इलाके में जा बसे हैं।
भाजपा भी सपा से मान रही मुकाबला
भाजपा प्रत्याशी संजीव शर्मा ने विधानसभा उपचुनाव में बसपा से मुकाबला बताया है। बसपा से परमानंद गर्ग प्रत्याशी हैं, लेकिन सियासी जानकारों की माने तो भाजपा अपनी लड़ाई सपा से मान रही है और इसका कारण सपा प्रत्याशी का दलित और लाइनपार क्षेत्र से होना है। लेकिन देखना यह भी है आजाद समाज पार्टी के प्रत्याशी सत्यपाल चौधरी और एआईएमआईएम प्रत्याशी रवि गौतम भी चुनाव मैदान में हैं। रवि गौतम खुद दलित समाज से आते हैं और सत्यपाल चौधरी की पार्टी दलित समाज में दखल रखती है। इसलिए उपचुनाव में सभी पार्टियों कोई कसर बाकी नहीं छोड़ना चाहती।
चुनाव भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती
यह चुनाव जीतना सबसे बड़ी चुनौती भाजपा के लिए है। उसके दो कारण है। पहला ये सीट भाजपा विधायक अतुल गर्ग के इस्तीफे से खाली हुई है। दूसरे, लखनऊ और दिल्ली में भाजपा की सरकार है। जाहिर तौर पर उपचुनाव के परिणाम कहीं न कहीं सरकारों का रिपोर्ट कार्ड भी माने जाएंगे।
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