भारतीय भाषा दिवस 2024 : मातृभाषा हमारे भाव की भाषा, नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ें

मातृभाषा हमारे भाव की भाषा, नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ें
UPT | चौधरी चरण सिंह विवि मेरठ के भाषा विभाग में भारतीय भाषा दिवस 2024 पर आयोजित कार्यक्रम।

Dec 12, 2024 10:41

भारतीय भाषा दिवस 2024 के अवसर पर 'भारतीय भाषाएं और लिपियां' विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

Dec 12, 2024 10:41

Short Highlights
  • चौधरी चरण सिंह विवि के भाषा विभाग में कार्यक्रम
  • कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफेसर वीसी संगीता शुक्ला ने की 
  • महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा की कुलपति ने व्यक्त किए विचार 
Meerut CCSU News : हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ द्वारा भारतीय भाषा दिवस 2024 के अवसर पर 'भारतीय भाषाएं और लिपियां' विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफेसर संगीता शुक्ला जी, माननीय कुलपति चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ ने की।

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा, प्रोफेसर सोमा बंदोपाध्याय
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर वी. रा. जगन्नाथन पूर्व निदेशक, भाषा संकाय इग्नू नई दिल्ली, निदेशक, केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा प्रोफेसर के. के. सिंह, माननीय कुलपति महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा, प्रोफेसर सोमा बंदोपाध्याय, माननीय कुलपति, शिक्षक प्रशिक्षण विश्वविद्यालय कोलकाता, प्रो सुनील कुलकर्णी , निदेशक, केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा, प्रोफेसर असलम जमशेदपुर अध्यक्ष, उर्दू विभाग, प्रोफेसर वाचस्पति मिश्र, समन्वयक, संस्कृत विभाग और प्रोफेसर नवीन चंद्र लोहनी अध्यक्ष एवं वरिष्ठ आचार्य हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय रहे।

अपनी मातृभाषा का सुर सबसे मीठा
प्रोफेसर सोमा बंदोपाध्याय ने कहा कि भारतीय भाषाओं में विविधता है। मातृभाषा हमारे भाव की भाषा है। वर्तमान पीढ़ी आधुनिकता की दौड़ में अपनी भाषाओं से दूर हो रही है इसलिए हमारा कर्तव्य है कि हम नवीन पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ें। अपनी मातृभाषा का सुर सबसे मीठा होता है। भारतीय भाषाओं का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। लुप्त होती भाषा भी चिंता का विषय है। अपनी भाषा से दूर होने का अर्थ है अपनी जड़ों से कट जाना। प्रत्येक भाषा लिपि भारतीय विविधता और समृद्धि को दर्शाती है।

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हिंदी पाठ्यक्रम में एकरूपता होनी चाहिए

प्रोफेसर वी. रा. जगन्नाथन ने कहा कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी पाठ्यक्रम में एकरूपता होनी चाहिए. भारत में तीन आर्य भाषाएँ हैं हिंदी, उर्दू और बंगाली। हमें अपनी शक्ति को पहचानना चाहिए। हम अपने ही देश की क्षेत्रीय भाषाओं को दृढ़ नहीं कर पा रहे हैं। भारत के बहुभाषी समाज को आदर की दृष्टि से देखना चाहिए।

हिंदी भारत को एक सूत्र में पिरोने का कार्य कर सकती है
हिंदी भारत को एक सूत्र में पिरोने का कार्य कर सकती है। हिंदी भारतीय भाषाओं की बड़ी बहन के रूप में है। भारतीय भाषाओं का नेतृत्व करने के लिए हिंदी को भी संशोधन की सामर्थ रखनी चाहिए। भारतीय भाषाओं के विकास के लिए यह आवश्यक है कि क्षेत्रीय भेदभाव को भूलकर भारतीय भाषाओं को आगे बढ़ाने के लिए सरकार को भी अपने कदम और मजबूती से रखना चाहिए। 

भारत में भाषाई विविधता
प्रोफेसर नवीन चंद्र लोहनी ने कहा कि भारत में भाषाई विविधताओं के साथ-साथ लिपियां की विशेषताओं का भी बड़ा क्षेत्र है। लिपियों के क्षेत्र में विचार विमर्श किया जाना चाहिए। दक्षिण भारतीय लिपियों को समझने से कई दक्षिण भारतीय भाषाओं में पुनः शोध कार्य की पर्याप्त संभावनाएं हैं।

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आर्य परिवार की भाषा
आर्य परिवार की भाषा और द्रविड़ परिवार की भाषाओं में कई वर्ण और चिन्ह एक समान है। सभी भारतीय भाषाएं मित्र भाषाएं हैं। भारतीयों का अंग्रेजीकरण होने से ही भारतीय भाषाएं कमजोर हुई है। देवनागरी लिपि में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की रचनाओं को लाना चाहिए। हिंदी क्षेत्र के केंद्र में रहकर हमारा दायित्व है कि हम भारत की अन्य भाषाओं पर चर्चा करें। नई शिक्षा नीति के अंतर्गत भारत सरकार के भी कोशिश है कि भारत की तमाम भाषाओं पर अध्ययन अध्यापन और शोध को आगे बढ़ाया जाए।

अंग्रेजी का वर्चस्व आज चिंता का विषय
प्रोफेसर के के. सिंह ने कहा की भारतीय भाषाओं के संदर्भ में अंग्रेजी का वर्चस्व आज चिंता का विषय है. हम किसी भी स्तर पर अंग्रेजी वर्चस्व को कम नहीं कर पा रहे हैं. लार्ड मैकाले की दी हुई शिक्षा व्यवस्था से हम आज भी उबर नहीं पाए हैं हमें हिंदी के बुनियादी ज्ञान के स्तर को मजबूत करने की आवश्यकता है ताकि नवीन पीढ़ी भारतीय संस्कृति और अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ सकें।

देश अपनी तरक्की के लिए भाषाई तरक्की पर आश्रित होता है
प्रोफेसर असलम जमशेदपुर ने कहा कि कोई भी देश अपनी तरक्की के लिए भाषाई तरक्की पर आश्रित होता है। हिंदी का क्षेत्र अत्यंत व्यापक है। प्रेमचंद ने भी अपने साहित्य लेखन की शुरुआत हिंदी से ही की। भारत में भाषाओं का मिश्रण है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व के लिए हिंदी को महत्व देना होगा लेकिन अपने देश में हमें अपनी क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियां को महत्व देना होगा। उर्दू तहजीब की भाषा है।

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भावों की अभिव्यक्ति अपनी मातृभाषा में ही
भावों की अभिव्यक्ति अपनी मातृभाषा में ही हो सकती है। भारत भाषाई विविधताओं में एकता का प्रतिनिधित्व हिंदी भाषा करती है। प्रोफेसर वाचस्पति मिश्र ने कहा कि आर्थिक विकास भी भाषाई विकास पर आधारित है। भारतीय भाषा दिवस हमें हमारी भाषाओं को उन्नत करने के संकल्प की याद दिलाता है। विज्ञान में हम अपनी भाषाओं में अनुसंधान नहीं कर पा रहे हैं। भारत को विश्व गुरु बनने के लिए अपनी भाषाओं को तकनीक से जोड़ना होगा।
कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन सहायक आचार्य डॉ. अंजू ने किया और कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर आरती राणा ने किया। 

इस अवसर पर उपस्थित रहे
इस अवसर पर प्रोफेसर संजय कुमार, डॉक्टर आसिफ अली, डॉ. शादाब अलीम, डॉ. अलका वशिष्ठ, डॉ. नरेंद्र तेवतिया, डॉक्टर ओमपाल शास्त्री, डॉक्टर प्रवीण कटारिया, डॉक्टर यज्ञेश कुमार, डॉ. विद्यासागर, शोधार्थियों में पूजा यादव, विनय कुमार, रेखा सोम, विभाग के विद्यार्थियों में आयुषी, नेहा, रिया,एकता, विक्रांत, शौर्य, मोनिका, राजकुमार, आयुषी, सोनम, निशा, मोहम्मद साजिद उपस्थित रहे।

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