मिर्जापुर का शक्तिपीठ मां अष्टभुजा मंदिर : विंध्य पर्वत पर महासरस्वती के रूप में विराजमान हैं देवी, पूरी करती हैं मनोकामनाएं

विंध्य पर्वत पर महासरस्वती के रूप में विराजमान हैं देवी, पूरी करती हैं मनोकामनाएं
UPT | देवी मां अष्टभुजा

Oct 10, 2024 17:13

मार्कण्डेय पुराण में वर्णित है कि जब धरती पर अत्याचार का बोलबाला था, तब महामाया ने नंद गोप के घर में यशोदा के गर्भ से जन्म लिया। यह अवतार कंस के अत्याचारों से मानवता को मुक्त कराने के लिए था। कहा जाता है कि जब कंस ने नवजात शिशु को मारने का प्रयास किया, तो वह बालिका उसके हाथों से छूटकर अष्टभुजा देवी के रूप में प्रकट हो गईं।

Oct 10, 2024 17:13

Mirzapur News : अज्ञानी पापी कंस का नाश करने के लिए नंद के घर प्रकट हुई महामाया भक्तों की रक्षा के लिए विंध्य पर्वत पर बस गईं। ज्ञान की देवी मां अष्टभुजा ने नंद के घर जन्म लिया और पापी कंस के हाथों से मुक्त होने के बाद विंध्याचल पर्वत पर निवास कर भक्तों को अभय प्रदान करती हैं। पापों का नाश करने वाली मां के चरणों में कंस के अंगुलियों के निशान आज भी मौजूद हैं। विंध्य पर्वत पर त्रिकोण मार्ग पर स्थित ज्ञान की देवी मां सरस्वती के स्वरूप मां अष्टभुजा के दर्शन के लिए नवरात्रि में दूर-दूर से भक्त आते रहते हैं। जब-जब धरती पर राक्षसों का साम्राज्य बढ़ा है, तब-तब आदि शक्ति ने उनका नाश करने के लिए अवतार लिया है। 

आज भी  मौजूद हैं माता के बाएं पैर में कंस के अंगुलियों के निशान
नर और नारायण को राक्षसों के भय से मुक्ति दिलाने वाली मां के विभिन्न रूपों में से एक रूप मां अष्टभुजा का भी है। माता के अवतार के विषय में मार्कण्डेय पुराण में वर्णन है कि
" नन्द गोप गृहे जाता यशोदा गर्भ संभवा,
ततस्तौ नाशयिष्यामी विन्ध्याचल निवासिनी......।



द्वापर काल में पृथ्वी पर बढ़ते कंस के अत्याचारों से लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए महामाया ने भगवान कृष्ण की बहन के रूप में बाबा नंद के घर सातवीं संतान के रूप में अवतार लिया। अपनी मृत्यु के भय से जब कंस ने उस नन्हीं बालिका को पत्थर पर पटक कर मारना चाहा तो वह बालिका उसके हाथों से छूट गई और अष्टभुजा का रूप धारण कर लिया। उसने पापी कंस से कहा, "अरे दुष्ट! तू मुझे कैसे मारेगा, तुझे मारने वाला तो पहले ही पैदा हो चुका है" यह कहकर देवी विन्ध्य पर्वत पर आकर बैठ गईं। आज भी माता के बाएं पैर में कंस के अंगुलियों के निशान मौजूद हैं।

मां अष्टभुजा के दर्शन मात्र से पूर्ण होती हैं मनोकामनाएं
मां अष्टभुजा ज्ञान की देवी हैं। इनके दर्शन मात्र से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। गर्ग ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर मां विंध्यवासिनी योग माया के रूप में हजारवें अंश से नंद के घर प्रकट हुईं और पृथ्वी को पापी कंस के भार से मुक्त किया। मां के दरबार में अपनी मनोकामना लेकर आने वाले भक्तों को अपार सुख की प्राप्ति होती है। भक्त सब कुछ भूलकर बार-बार करुणामयी मां के दरबार में आकर मां का प्रेममय आशीर्वाद प्राप्त करने की कामना करते हैं। पिछले कई वर्षों से लगातार मां के दरबार में आ रहे भक्त अपनी सारी उपलब्धियों को मां का आशीर्वाद मानते हैं। मां विंध्यवासिनी विंध्य क्षेत्र के लोगों के कल्याण की शक्ति जगत कल्याण हेतु सदैव भक्तों को आकर्षित करती रही है। ज्ञान की देवी के दर्शन मात्र से ही मानव का कल्याण होता है तथा उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

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