बिजनौर लोकसभा : वेस्ट यूपी की ऐसी सीट जिसने दलित राजनीति को दी नई पहचान, मायावती से लेकर राम विलास पासवान तक लड़ चुके चुनाव

वेस्ट यूपी की ऐसी सीट जिसने दलित राजनीति को दी नई पहचान, मायावती से लेकर राम विलास पासवान तक लड़ चुके चुनाव
UPT | बिजनौर लोकसभा

Apr 02, 2024 07:00

पूरे देश के साथ-साथ उत्तर प्रदेश में लोकसभा 2024 के चुनाव होने जा रहे हैं। इस चुनाव में मतदाता अपने सांसद को चुनने के लिए वोट करेगी। देश के साथ-साथ प्रदेश में भी 19 अप्रैल से शुरू होकर चुनाव 1 जून को खत्म होगा। चुनावों के परिणाम 4 जून को आएंगे। इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश टाइम्स प्रदेश हर लोकसभा सीट के मिजाज और इतिहास को आप तक पहुंचाने की कोशिश कर रही है। इस अंक में पढ़ें बिजनौर लोकसभा क्षेत्र के बारे में...

Apr 02, 2024 07:00

Short Highlights
  • बहुजन समाज पार्टी ने बिजनौर सीट से चौधरी विजेंद्र सिंह को टिकट दिया है।
  • भाजपा-रालोद गठबंधन के प्रत्याशी चंदन चौहान मैदान  में हैं।
  • सपा ने यशवीर सिंह को मैदान में उतारा है।
Bijnor Lok Sabha constituency : बिजनौर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। महात्मा विदुर की धरती के नाम से बिजनौर चर्चित है। बिजनौर लोकसभा क्षेत्र से पूर्व मुख्यमंत्री मायावती, पूर्व केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक रामविलास पासवान और पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार जैसे दिग्गज चुनाव लड़ चुके हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की बाकी सीटों की तरह ही इस सीट पर भी चुनावों में जाट आमने-सामने होते हैं। इस लोकसभा क्षेत्र में मुस्लिम 28%, जाटव 21.6 %, बाल्मीकि 4.6% है। साथ ही गुर्जर,नाई, कहार 4.8%, सिंधी-पंजाबी 1.3%, जाट 14.5%, ठाकुर 11%, ब्राह्मण 4.4% है। इन सबके अलावा इस सीट पर मुस्लिम समुदाय निर्णायक भूमिका में है। बिजनौर लोकसभा सीट पर चुनाव पहले चरण में 19 अप्रैल को होनी है।

पहली लोकसभा में तीन सीट में बंटा था बिजनौर
देशभर में पहला लोकसभा चुनाव में साल 1952 में हुआ था। इस चुनाव में बिजनौर सीट का कोई अलग से अस्तित्व नहीं था। यह क्षेत्र तीन अलग लोकसभा क्षेत्रों में बंटा था। पहला क्षेत्र था देहरादून सह बिजनौर जो उत्तर पश्चिम सीट के नाम से जाना जाता था। इस सीट से कांग्रेस के महावीर त्यागी  जीता था। महावीर त्यागी ने जनसंघ के उम्मीदवार जे आर गोयल को 95669 मतों से हाराया था। दूसरी सीट थी गढ़वाल (पश्चिम) सह टिहरी गढ़वाल सह बिजनौर (उत्तर) लोकसभा सीट, इस सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार ने चुनाव जीता था। इस सीट से निर्दलीय उम्मीदवार महारानी साहिबा ने कांग्रेस के उम्मीदवार कृष्णा सिंह को मात दी थी। वहीं तीसरी सीट बिजनौर (दक्षिण) से कांग्रेस की निमी सरन ने जीत दर्ज की थी। निमी सरन ने गोविंद सहाय को हराया था। अगले लोकसभा चुनाव में अलग बिजनौर लोकसभा सीट का गठन किया गया। साल 1957 में हुए चुनाव में बिजनौर लोकसभा सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार अब्दुल लतीफ गांधी ने यह चुनाव जीता था। अब्दुल लतीफ ने भारतीय जनसंघ के भूदेव सिंह को 84173  मतों से हराया था। दो चुनाव के बाद यह पहली दफा था कि किसी निर्दलीय प्रत्यशी ने चुनाव जीता था। साल 1962 के चुनाव में प्रकाश वीर शास्त्री ने कांग्रेस के मौजूदा सांसद अब्दुल लतीफ को 76584 मतों से चुनाव हराकर सबको चौंका दिया था। लेकिन अगले ही चुनाव में कांग्रेस ने इस सीट पर वापसी की और  बिजनौर सीट से एसआर नंद ने चुनाव जीता।

मायावती और रामविलास पासवान को मिली थी हार
साल 1962 के चुनाव को छोड़ दें तो लगातार कांग्रेस का इस सीट पर दबदबा था। लेकिन साल 1977 में भारतीय लोक दल के प्रत्यशी ने इस सीट से चुनाव जीता था। भारतीय लोक दल के उम्मीदवार महीलाल ने कांग्रेस उम्मीदवार राम दयाल को 195814 वोटों से हराया था। हालांकि साल 1984 के चुनाव में ये सीट फिर से कांग्रेस के पास आ गई। इस चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर गिरधारी लाल ने चुनाव लड़ा था। उन्होंने लोकदल उम्मीदवार मंगल राम प्रेमी को 99813 वोटों के भारी अंतर से चुनाव हराया था। लेकिन साल 1985 में इस सीट पर उपचुनाव हुए थे। इस चुनाव में कांग्रेस नेत्री और पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार मैदान में थीं। यहां से उन्होंने दो दिग्गज को चुनाव में हराया था। एक तरफ जहां मायावती मैदान में थीं तो दूसरी तरफ राष्ट्रीय लोक दल के टिकट पर रामविलास पासवान मैदान में थे। मीरा कुमार ने  रामविलास पासवान को 122747 के भारी अंतर से हराया था।

मुस्लिम वोट के बिना चुनाव जितना मुश्किल
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की चर्चित लोकसभा क्षेत्र में से एक बिजनौर लोकसभा क्षेत्र में मुस्लिम समुदाय की भी आबादी काफी संख्या में है। जानकार बताते हैं कि इस क्षेत्र में हिंदू आबादी अधिक होने के बाद भी सभी पार्टियों की नजर मुस्लिम वोट बैंक पर होती है। क्योंकि मुस्लिम समुदाय यहां उम्मीदवारों का भविष्य तय करती है। बिजनौर लोकसभा क्षेत्र में मुस्लिम समुदाय 28 % है। चुनावों में हिंदू वोटरों की अपेक्षा मुस्लिम वोटर बढ़चढ़कर वोट डालते हैं। साथ ही हिंदुओं की बात करें तो यहां हिंदू दलित की आबादी 22 फीसदी के करीब है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बाकी सीटों की तरह इस सीट पर भी जाटों का प्रभाव अत्यधिक है। साल ही लोकसभा में हरिजन वोट भी बड़ी संख्या में है। मुस्लिम वोटर को लेकर ऐसा कहा जाता है कि इस सीट पर मुस्लिम वोटर किसी भी पार्टी को जीत दिलाने का माद्दा रखते हैं।

5 विधानसभा में 4 पर एनडीए का कब्जा
बिजनौर लोकसभा सीट 3 जिलों में फैला हुआ है। इसमें मुजफ्फरनगर, बिजनौर और मेरठ शामिल है। इस लोकसभा क्षेत्र में मुजफ्फरनगर के 2 विधानसभा पुरकाजी और मीरापुर आता है। बिजनौर के चंदनपुर और बिजनौर विधानसभा इस लोकसभा क्षेत्र में आते हैं। साथ ही मेरठ का हस्तिनापुर विधानसभा भी इस क्षेत्र में आता है। इन विधानसभा सीटों की बात करें तो इसमें पुरकाजी और मीरापुर पर राष्ट्रीय लोकदल का कब्जा है तो दूसरी तरफ बिजनौर और मेरठ के हस्तिनापुर सीट पर भाजपा का कब्जा है। वहीं चंदनपुर का सीट समाजवादी पार्टी के पास है। हालांकि इस चुनाव में राष्ट्रीय लोक दल ने सपा का छोड़कर भाजपा के साथ गठबंधन कर लिया है। इस स्थिति में विधानसभा के 5 सीटों में से 4 पर एनडीए का कब्जा है। लेकिन लोकसभा चुनाव में  रालोद का भाजपा के साथ जाना जनता को पसंद आएगा या नहीं। यह एक सवाल है। क्योंकि विधानसभा में चुनाव में रालोद और सपा ने एक साथ मिलकर चुनाव लड़ा था।

बसपा के उम्मीदवार से रालोद को खतरा
बहुजन समाज पार्टी ने बिजनौर सीट से चौधरी विजेंद्र सिंह को टिकट दिया है। मेरठ के रहने वाले चौधरी विजेंद्र सिंह ने हाल ही में लोकदल  छोड़कर बसपा में आए थे। विजेंद्र सिंह लोकदल से जुड़े हुए थे उस वक्त भी चुनावों की तैयारी में लगे हुए थे। बसपा से घोषित प्रत्याशी विजेंद्र चौधरी जाट समाज से आते हैं। इसलिए इस सीट पर कड़ी टक्कर होने की बात कही जा रही है। क्योंकि भाजपा ने जाट समीकरण को साधने के कारण ही रालोद को गठबंधन में ये सीट दी थी। लेकिन चौधरी विजेंद्र सिंह के मैदान में आने से यह मुकाबला दिलचस्प हो गया है। अध्यक्ष जयंत चौधरी ने बिजनौर लोकसभा सीट से मीरापुर से विधायक चंदन चौहान को टिकट दिया है। चंदन चौहान गुर्जर समाज से आते हैं। 

भाजपा-रालोद गठबंधन के प्रत्याशी चंदन चौहान की बात करें तो इनके सामने अपनी राजनीतिक विरासत को और आगे बढ़ाने की चुनौती है तो दूसरी ओर बहुजन समाज पार्टी से टिकट पाने वाले चौधरी विजेंद्र सिंह के सामने भी अपनी राजनीति आगे बढ़ाने का मौका है। रालोद के प्रत्याशी चंदन चौहान के दादा चौधरी नारायण सिंह 1977 में मुख्यमंत्री बाबू बनारसीदास की सरकार में उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं। जिसके बाद नारायण सिंह के बेटे संजय चौहान ने भी विधायकी का चुनाव लड़ा था। संजय चौहान अपने पिता की सीट से ही विधायक बने थे। सपा के प्रत्याशी यशवीर सिंह की बात करें तो पूर्व सांसद यशवीर सिंह धोबी को सपा ने बिजनौर से मौका दिया है। यशवीर सिंह धोबी वर्ष 2009 के चुनाव में नगीना लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था और जीता भी था। यशवीर सिंह इस बार भी नगीना से ही टिकट मांग  रहे थे लेकिन उनको बिजनौर से चुनावी मैदान में उतारा गया है। बहुजन समाजवादी पार्टी ने बिजनौर लोकसभा सीट से चौधरी विजेंद्र सिंह को उम्मीदवार बनाया है। चौधरी विजेंद्र सिंह का राजनीती से बहुत पुराना नाता नहीं रहा है। उन्होंने कुछ महीनों पहले ही रालोद में आकर अपनी सियासी पारी शुरू की थी। लेकिन कुछ दिनों पहले ही उन्होंने रालोद का साथ छोड़कर बसपा के साथ आ गए थे। अब मायावती ने उनको बिजनौर से अपना उम्मीदवार बनाया है।

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