पूरे देश के साथ-साथ उत्तर प्रदेश में लोकसभा 2024 के चुनाव होने जा रहे हैं। इस चुनाव में मतदाता अपने सांसद को चुनने के लिए वोट करेगी। देश के साथ-साथ प्रदेश में भी 19 अप्रैल से शुरू होकर चुनाव 1 जून को खत्म होगा। चुनावों के परिणाम 4 जून को आएंगे। इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश टाइम्स प्रदेश हर लोकसभा सीट के मिजाज और इतिहास को आप तक पहुंचाने की कोशिश कर रही है। इस अंक में पढ़ें रामपुर लोकसभा क्षेत्र के बारे में...
रामपुर लोकसभा : इस सीट पर मुस्लिमों नेताओं का रहा है दबदबा लेकिन पिछले चुनाव में भाजपा ने लगाई थी सेंध, जानें आजम खान का किला कितना मजबूत
Apr 09, 2024 07:00
Apr 09, 2024 07:00
- रामपुर लोकसभा सीट पर मुस्लिम समुदाय की संख्या सबसे ज़्यादा है।
- इस सीट पर करीब 42 प्रतिशत आबादी मुस्लिम समुदाय की है।
रामपुर संसदीय सीट पर सबसे पहले देश के पहले शिक्षा मंत्री और स्वतंत्रता सेनानी मौलाना अबुल कलाम आजाद ने चुनाव जीता था। साल 1952 में हुए चुनाव में कांग्रेस की तरफ से मौलाना अबुल कलाम आजाद पहले सांसद बनकर सांसद पहुंचे। मुस्लिम बहुल सीट होने की वजह से यह सीट हमेशा चर्चा में बनी रही है। अब तक हुए ज्यादातर चुनाव में मुस्लिम उम्मीदवार ने चुनाव जीता है। अब तक हुए कुल 17 चुनावों में 12 बार मुस्लिम उम्मीदवार को जीत मिली है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह हो सकता है कि इस सीट पर मुस्लिम वोटरों की संख्या बहुत ज्यादा है। मुस्लिम उम्मीदवार के अलावा रामपुर लोकसभा सीट पर 5 चुनावों में ही हिंदू प्रत्याशियों को जीत मिली है। 5 चुनाव होने के बाद साल 1977 के चुनाव में पहली बार हिंदू प्रत्याशी के तौर पर लोक दल के प्रत्याशी राजेंद्र कुमार शर्मा को जीत मिली थी। साल 1957 के चुनाव में राजा सईद अहमद मेहदी को जीत मिली थी। उन्होंने भारतीय जनसंघ के उम्मीदवार सीता राम को चुनाव में हराया था। वहीं 1962 में हुए अगले चुनाव में भी सईद अहमद मेहदी ने जीत हासिल की थी। 1967 के चुनाव में जुल्फिकार अली खान ने मैदान फतेह की थी। इसके अलावा 1971, 1980, 1984, 1989 के चुनाव में भी जुल्फिकार अली खान ने ही जीत हासिल की थी। लगातार 11 साल तक ये सांसद रहे थे। साथ ही इससे पहले भी 10 साल तक सांसद रहे हैं। 1991 में पहली बार इस सीट पर भाजपा को सफलता मिली। भारतीय जनता पार्टी के राजेंद्र कुमार शर्मा चुनाव जीता था। राजेंद्र कुमार ने कई बार सांसद रहे जुल्फिकार अली खान चुनाव में हराया था। इसके बाद 1996 के चुनाव में फिर से कांग्रेस ने वापसी की और कांग्रेस के बेगम नूर बानो ने भाजपा के प्रत्याशी राजेंद्र कुमार शर्मा में हराया था। 1998 में फिर से यह सीट भाजपा के खाते में गई। भाजपा के टिकट पर इस चुनाव में मुख्तार अब्बास नक़वी ने चुनाव जीता। 1999 में फिर से कांग्रेस की बेगम नूर बानो ने चुनाव जीता। साल 2004 के चुनाव में पहली बार समाजवादी पार्टी को इस सीट मिली। 2004 और फिर 2009 के चुनाव में समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार जाया प्रदा ने चुनाव जीता था। इन दोनों चुनाव में जाया प्रदा ने कांग्रेस की उम्मीदवार बेगम नूर बानो को हराया था। 16 साल के बाद भाजपा के खाते में यह सीट आई और इस सीट से भाजपा के डॉक्टर नेपाल सिंह को जीत मिली। लेकिन अगले ही चुनाव में समाजवादी पार्टी ने यह सीट भाजपा से छीनकर अपने पास ले ली। 2019 के चुनाव में सपा के दिग्गज नेता आज़म खान ने यह चुनाव जीता। लेकिन जेल जाने की वजह से उनकी सदस्यता खत्म हो गई। जिसके बाद 2022 में फिर चुनाव हुए और इस बार भाजपा ने लोधी समाज से आने वाले घनश्याम सिंह लोधी को मैदान में उतारा। घनश्याम सिंह लोधी ने सपा के प्रत्याशी आसिम रजा को 40 हजार से ज्यादा वोट से हराया था।
रामपुर मतलब आजम खान
उत्तर प्रदेश की सियासत में रामपुर मतलब आजम खान कहा जाता है। सरकार किसी की भी हो प्रदेश की सियासत की एक धुरी रामपुर भी होती है। उसका सबसे बड़ा कारन हैं आजम खान। आजम खान रामपुर से 9 बार विधायक रहे हैं। साथ ही रामपुर लोकसभा सीट से भी 1 बार सांसदी का चुनाव लड़ा और जीता भी। जब-जब प्रदेश या केंद्र में सपा की सरकार रही है आजम खान उस सरकार के बड़े नेता रहे हैं। विपक्षी आजम खान पर भी उतना ही हमला करती है जितना कि अखिलेश यादव और मुलायम यादव पर करते थे। आजम खान की ताकत इस बात से लगाई जा सकती है कि रामपुर के साथ-साथ आस-पास के जिलों में इनका प्रभाव देखा जा सकता है। यहां तक कहा जाता है कि टिकट बंटवारे में भी आजम खान की चलती है। इस सीट को लेकर ऐसा बताया जा रहा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में आजम खान की पसंद का उम्मीदवार नहीं होने के कारण उन्होंने जिले में बगावत करवा दी थी। जिसे बाद में शांत करवाया गया। अभी आजम खान जेल में जरूर हैं लेकिन उनके इशारे पर ही रामपुर और इसके आसपास की सियासत चलती है।
विधानसभा में एनडीए गठबंधन मजबूत
रामपुर लोकसभा क्षेत्र में पांच में विधानसभा आते हैं। इनमें रामपुर, स्वार, बिलासपुर, चमरव्वा और मिलक शामिल है। पांचों सीट में से बिलासपुर, रामपुर, मिलक भारतीय जनता पार्टी के पास है। वहीं स्वार से अपना दल के शफीक अहमद अंसारी विधायक हैं। साल 2022 के चुनाव में चमरव्वा से समाजवादी पार्टी के नसीर खान को जीत मिली थी। बिलासपुर, रामपुर, मिलक सीट में से बिलासपुर से बलदेव सिंह औलख ने चुनाव जीता था। वहीं रामपुर से आकाश सक्सेना और मिलक से राजबाला सिंह विधायक है। विधानसभा के हिसाब से देखें तो भाजपा मजबूत स्थिति में नजर आ रही है। लेकिन मुस्लिम बाहुल सीट होने के कारण इस सीट पर सपा को कमतर नहीं आंका जा सकता है। इस संसदीय सीट पर 42 फीसदी मुसलमान हैं। जिस कारण से सपा कभी भी पलटवार का सकती है। साथ ही 2004 के बाद से अब तक समाजवादी पार्टी 3 बार चुनाव जीत चुकी है। साथ ही इस सीट पर 12 बार मुस्लिम सांसद चुनकर संसद पहुंच चुके हैं। साथ ही विधानसभा के चुनाव में रालोद और सपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था। जबकि इस लोकसभा चुनाव में रालोद ने गठबंधन बदलकर भाजपा के साथ चली गई है।
कई साल तक नवाब परिवार का रहा कब्जा
रामपुर लोकसभा सीट पर मुस्लिम समुदाय की संख्या सबसे ज़्यादा है। पूरे उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक मुस्लिम जनसंख्या रामपुर में ही है। इस सीट पर करीब 42 प्रतिशत आबादी मुस्लिम समुदाय की है। बाकी आबादी की बात करें तो बाकी जनसंख्या हिंदुओं की अगड़ी और पिछड़ी जातियों में बंटी हुई है। यह ऐसी सीट है जहां पर मुस्लिम आबादी बड़ी संख्या में है। इस सीट पर ऐसा रहा है कि यह सीट कई सालों तक नवाब परिवार के कब्जे में रहा है। चुनाव जीतने की बात करें तो पांच बार जुल्फिकार अली खान इस सीट से सांसद रहे हैं। साथ ही दो बार उनकी बेगम नूर बानो इस सीट से सांसद चुनी गईं। एक लंबे अरसे तक इस सीट पर जुल्फिकार परिवार का कब्जा रहा है।
बड़ी मुश्किल के बाद सपा का उम्मीदवार तय
रामपुर सीट पर सपा और भाजपा ने अपने-अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं। भाजपा ने जहां यहां से सांसद घनश्याम सिंह लोधी को फिर से मैदान में उतारा है तो दूसरी तरफ कई दिनों के जद्दोजहद के बाद सपा ने दिल्ली के इमाम महीबुल्लाह नदवी रामपुर सीट से प्रत्याशी बनाया है। दरअसल, इस सीट से सपा के दो नेता ने नामांकन दाखिल कर दिया था। बाद में दूसरे उम्मीदवार आसिम रजा का नामांकन रद्द हो गया। 2022 के उपचुनाव में घनश्याम सिंह लोधी ने असीम रजा को चुनाव हराकर संसद पहुंचे थे। इस सीट पर लोधी समाज भी बड़ी संख्या में है। जिस वजह से फिर से भाजपा ने घनश्याम सिंह लोधी पर भरोसा जताया है। वहीं समाजवादी पार्टी भी धर्म की रजनीति पर सवार होकर चुनावी मैदान में है। सपा को इस बात का भरोसा है की मुस्लिम समुदाय उन्हें वोट करेगी और उनका जीतना आसान हो जाएगा। हालांकि साल 2022 में हुए उपचुनाव में भाजपा के घनश्याम सिंह लोधी को जीत मिली थी। अब यह देखना होगा कि क्या फिर से लोधी मैदान फतेह करेंगे या मुस्लिम बाहुल सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार को जीत मिलेगी।
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