उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हरिशंकर तिवारी के गांव टाडा में लगने वाली प्रतिमा के लिए बना चबूतरा जिला प्रशासन ने तोड़ दिया। चर्चा फैली और ऐसी फैली कि लखनऊ तक पहुंची। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश ने घटना पर आक्रोश जताया। लेकिन इस विवाद ने एक बार फिर उत्तर प्रदेश की सियासत में ब्राह्मण बनाम ठाकुर की चिंगारी को हवा दे दी है।
चबूतरा टूटा तो फिर शुरू हुई ब्राह्मण बनाम ठाकुर सियासत : सड़क से सदन तक घमासान, बाहुबली हरिशंकर तिवारी के बहाने अखिलेश क्यों ठोंक रहे ताल?
Aug 01, 2024 18:18
Aug 01, 2024 18:18
- टाडा गांव में चबूतरा तोड़ने पर विवाद
- ब्राह्मण बनाम ठाकुर सियासत फिर सुलगी
- सड़क से सदन तक मचा घमासान
पहले पूरा विवाद समझिए
दरअसल हरिशंकर तिवारी के गांव टाडा में उनकी पहली जयंती आयोजित की जानी थी। इस मौके पर गांव में 5 अगस्त को हरिशंकर तिवारी की मूर्ति स्थापित होनी थी। इसके लिए निश्चित स्थान पर एक चबूतरा बनाया गया था। ग्रामीणों का आरोप है कि जब प्रशासन से प्रतिमा स्थापित करने के लिए अनुमति मांगी गई, तो न ही अनुमित दी गई और न ही प्रतिमा स्थापित करने से मना किया गया। इसके बाद चबूतरा बना दिया गया तो बुधवार को एसडीएम राजू कुमार, सीओ और कई थानों की पुलिस टाडा गांव पहुंची और चबूतरे को ढहा दिया गया। ग्रामीणों और प्रशासनिक अधिकारियों के बीच इसके लेकर तीखी नोंक-झोंक भी हुई। एसडीएम ने चबूतरे को अवैध निर्माण बताया। लेकिन गांव वालों ने कहा कि कार्रवाई से पहले उन्हें नोटिस तक नहीं दिया गया। विवाद बड़ा तो मामला पूरे प्रदेश में पहुंचा। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने पोस्ट कर कहा कि अब तक भाजपा का बुलडोज़र दुकान-मकान पर चलता था, अब दिवंगतों के मान-सम्मान पर भी चलने लगा है।
अब तक भाजपा का बुलडोज़र दुकान-मकान पर चलता था, अब दिवंगतों के मान-सम्मान पर भी चलने लगा है।
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) August 1, 2024
चिल्लूपार के सात बार विधायक रहे उप्र के पूर्व कैबिनेट मंत्री स्व. श्री हरिशंकर तिवारी जी की जयंती पर उनकी प्रतिमा के प्रस्तावित स्थापना स्थल को भाजपा सरकार द्वारा तुड़वा देना, बेहद… pic.twitter.com/quV9bE372b
यूपी में हरिशंकर तिवारी का प्रभुत्व
उत्तर प्रदेश के सियासत की नब्ज पहचानने वाले जानते हैं कि सूबे में ब्राह्मण बनाम क्षत्रिय की लड़ाई काफी पुरानी है। हरिशंकर तिवारी को भले ही माफिया टर्न पॉलिटिशियन कहा जाता हो, लेकिन ब्राह्मणों का एक वर्ग उन्हें अपने स्वाभिमान का प्रतीक मानता है। लंबे वक्त तक प्रदेश के अधिकतर मुख्यमंत्री ब्राह्मण थे। कहते हैं कि गोरखपुर और उसके आस-पास के कई इलाकों में मठ का काफी प्रभाव था। लेकिन प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी, इसलिए मठ के वर्चस्व को तोड़ने के लिए गोरखपुर के एक डीएम ने हरिशंकर तिवारी को मजबूत किया। गोरखपुर में हाता बनाम मठ की लड़ाई भी यहीं से शुरू हुई। जब वीर बहादुर सिंह यूपी के मुख्यमंत्री बने तो गोरखपुर की राजनीति में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए उन्होंने हरिशंकर तिवारी को गिरफ्तार करवा लिया। गोरखपुर में हरिशंकर तिवारी तीन मोर्चों पर लड़ाई लड़ रहे थे- मठ, वीरेंद्र शाही और वीर बहादुर सिंह। इस लड़ाई में हरिशंकर तिवारी कितने सफल और कितने असफल हुए, ये भले ही बहस का विषय हो, लेकिन इन मोर्चों में ब्राह्मणों के मन में हरिशंकर तिवारी की छवि इस तरह की बना दी कि वह उनके स्वाभिमान का प्रतीक बन गए।
सूबे में ब्राह्मणों का काफी दबदबा
प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मणों का दबदबा ऐसा रहा है कि सूबे के कई मुख्यमंत्री ब्राह्मण ही रहे हैं। उत्तर प्रदेश में यादवों के बाद सबसे ज्यादा आबादी ब्राह्मण वोटरों की है। प्रदेश में करीब 10 से 12 फीसदी ब्राह्मण मतदाता हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया, कुशीनगर, बस्ती, बलिया, आजमगढ़, गाजीपुर, इलाहाबाद, जौनपुर जैसे इलाकों में आज भी हरिशंकर तिवारी ब्राह्मणों का आइकन के रूप में देखे जाते हैं। ये भी सच है कि हरिशंकर तिवारी ही वह शख्स हैं, जिन्होंने प्रदेश में ब्राह्मणों के प्रति समाज की धारणा को काफी बदला है। उत्तर प्रदेश की करीब 115 सीटें ऐसी हैं, जिनपर ब्राह्मण मतदाताओं का काफी प्रभाव है। गोरखपुर, देवरिया, महाराजगंज, संत कबीर नगर, बस्ती, बलरामपुर, जौनपुर, अमेठी, वाराणसी, चंदौली, कानपुर और इलाहाबाद में 15 फीसदी के अधिक ब्राह्मण वोटर हैं। यहां की सीटों पर जीत-हार ब्राह्मणों के मूड पर निर्भर करता है। मध्य, पश्चिम यूपी और बुंदेलखंड की 100 सीटों पर भी ब्राह्मण मतदाता जनमत को प्रभावित करते हैं। अगर 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव पर नजर डालें, तो 403 सीटों में से 52 पर ब्राह्मण और 49 पर ठाकुर समाज के विधायक जीते हैं।
अखिलेश की बदल रही रणनीति?
2024 लोकसभा चुनाव में एनडीए के खिलाफ अखिलेश यादव ने पीडीए का नारा दिया था। पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक। लेकिन ऐसा लगता है कि अखिलेश ने अब नारे को बदलकर पीडीए+ बना दिया है। इस प्लस में जो एक अतिरिक्त ए जुड़ा है, वह अगड़ा है। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद माता प्रसाद पांडेय के पास जाने से तो ऐसा ही लगता है। इसी कड़ी में अखिलेश यादव हरिशंकर तिवारी के मुद्दे को भी कैश कराने में जुटे हैं। यही वजह है कि जब टाडा में चबूतरा ढहाया गया, तो अखिलेश ने मु्द्दे को लपक किया। साफ है कि समाजवादी पार्टी अब हरिशंकर तिवारी के बहाने अपनी ब्राह्मण सियासत को धार देने में जुटे हैं। हरिशंकर तिवारी के दोनों बेटे भीष्म शंकर तिवारी और विनय शंकर तिवारी भी सपा में ही हैं। विनय शंकर विधायक रह चुके हैं और भीष्म शंकर डुमरियागंज से सांसद का चुनाव लड़ चुके हैं। ऐसे में स्थानीय राजनीति में भी दोनों की पकड़ है। जिस तरह हरिशंकर तिवारी ने राजपूतों के खिलाफ ब्राह्मण समाज को लामबंद किया था, ऐसा लगता है कि अखिलेश भी उसी फॉर्मूले पर भाजपा के खिलाफ ब्राह्मणों को लामबंद करने में जुटे हैं।
भाजपा की स्ट्रैटेजी देगी नुकसान?
शुरुआती नजरिए से देखें, तो सियासी जानकार मानते हैं कि चबूतरे को ढहाना ही किसी रणनीति का हिस्सा हो, लेकिन यह भाजपा को ही सियासी नुकसान पहुंचाएगी। जो शख्स करीब 7 सात तक प्रदेश में मंत्री रहा हो, 7 बार का विधायक रहा तो, उसकी मूर्ति स्थापना के लिए प्रशासन दो गज जमीन देने को भी तैयार न हो, ऐसा प्रथम दृष्टया समझ से परे है। प्रशासन भले ही कह दे कि मूर्ति स्थापना के लिए अनुमति नहीं ली गई, लेकिन अगर अनुमति देने की मंशा होती भी, तो पिछले 7 दिनों से चला आ रहा ये मामला चबूतरा ढहाने तक तो नहीं पहुंचता। संभव है कि स्थानीय प्रशासन का ये फैसला लखनऊ से लिया जा रहा हो। लेकिन ये रणनीति भाजपा को नुकसान के सिवा और कुछ नहीं देगी। सोचिए 2027 के चुनाव में भाजपा जब ब्राह्मणों से वोट मांगेगी, तो किस आधार पर मांगेगी? समाजवादी पार्टी भी मुद्दे को छोड़ने के मूड में कतई नहीं है। पहले माता प्रसाद पांडेय और अब हरिशंकर तिवारी के बहाने अगर अखिलेश ये संदेश देने में कामयाब हो जाते हैं कि ब्राह्मणों का ख्याल केवल सपा में रखा जाता है, तो पहले से ठाकुरों के नेता कहे जाने वाले योगी आदित्यनाथ के लिए 2027 में बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा, जिसकी काट निकालना आसान नहीं होगा।
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