रायबरेली का राजनीतिक पारा हाई रहता है। 20 मई को पांचवे चरण में यहा चुनाव होना है। इस बार राहुल गांधी इस सीट से लोकसभा चुनाव में दम भर रहे है, उनके सामने है बीजेपी प्रत्याशी दिनेश प्रताप सिंह...
यूपी की सियासत : सुर्खियों में रहना रायबरेली का शगल, राहुल के हाथ में मां की सियासी विरासत
May 15, 2024 18:24
May 15, 2024 18:24
- 20 मई को पांचवें चरण में रायबरेली में चुनाव होना है।
- रायबरेली हमेशा से ही कांग्रेस का गढ़ माना जाता है।
- इस सीट पर साल 1971 में इंदिरा गांधी ने जीत दर्ज की थी।
हाई रहता है रायबरेली का सियासी पारा
रायबरेली का राजनीतिक पारा हमेशा हाई रहता है। 20 मई को पांचवें चरण में यहां चुनाव होना है। इस बार राहुल गांधी इस सीट से लोकसभा चुनाव में दम भर रहे हैं। उनके सामने बीजेपी प्रत्याशी दिनेश प्रताप सिंह ताल ठोक रहे हैं। यह वही दिनेश प्रताप सिंह हैं, जिनका बीजेपी से नया और कांग्रेस से पुराना नाता है। जी हां, योगी सरकार में बतौर राज्यमंत्री शामिल दिनेश प्रताप सिंह कांग्रेस से पहली बार 2010 में और दूसरी बार साल 2016 में विधान परिषद सदस्य बने थे। फिर 2018 में कांग्रेस से अपना पुराना नाता तोड़कर वह सत्तारूढ़ भाजपा में शामिल हो गए। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उन्हें इसी रायबरेली से सोनिया गांधी के विरुद्ध मैदान में उतारा था, जिसका असर सोनिया गांधी के वोट ग्राफ पर भी पड़ा था।
रायबरेली से कब कौन जीता
- रायबरेली कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। इस सीट पर साल 1971 में इंदिरा गांधी ने जीत दर्ज की थी। उसके बाद इस सीट पर कांग्रेस का बोलबाला रहा। कुछ खास मौकों को छोड़ दें तो गांधी परिवार और उनके समर्थित लोगों ने ही जीत दर्ज की।
- भारतीय जनता पार्टी आज तक इस सीट पर सिर्फ दो बार जीत दर्ज कर पाई है। साल 1996 में और साल 1998 में हुए लोकसभा चुनावों में यहां बीजेपी के अशोक सिंह ने जीत दर्ज की थी। अशोक सिंह ने 1996 के चुनाव में अपने ही नाम वाले जनता दल के प्रत्याशी अशोक सिंह को मात दी थी।
- साल 1998 में बीजेपी के अशोक सिंह ने सपा के सुरेंद्र बहादुर सिंह को चुनाव मैदान में मात दी थी। इन दोनों ही चुनावों में दिलचस्प बात यह रही कि कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी चौथे नंबर पर रहे। वर्ष 1996 में कांग्रेस ने यहां विक्रम कौल और 1998 में दीपा कौल को चुनाव मैदान में उतारा था।
- इस सीट में कुछ बात तो है कि साल 2004 से 2019 तक अमेठी में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले और तीन बार सांसद रहे राहुल गांधी इस बार अमेठी छोड़ रायबरेली से चुनाव लड़ रहे हैं। यह तो जगजाहिर है कि रायबरेली सीट कांग्रेस का गढ़ रही है। रायबरेली वही सीट है, जहां से जीत कर फिरोज गांधी से लेकर इंदिरा गांधी, अरुण नेहरू और सोनिया गांधी तक संसद पहुंची हैं।
- इस बार सोनिया गांधी ने राजस्थान से राज्यसभा का रूख कर लिया और फिर लोकसभा चुनाव न लड़ने के फैसले से सबको चौंका दिया। सोनिया गांधी ने रायबरेली की जनता को भावुक चिट्ठी लिखकर कहा कि अब उम्र हो गई है और चुनाव नहीं लड़ सकती हूं।
- कई प्राचीन इमारतों, क़िलों, महल और कुछ सुन्दर मस्ज़िदों से घिरा रायबरेली का चुनावी इतिहास कांग्रेस के पक्ष में नजर आता है। कांग्रेस को यहां बेशुमार जीत मिली, लेकिन तीन ही मौके ऐसे भी आए हैं, जब इस लोकसभा सीट से कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार को हार का मुंह देखना पड़ा।
- साल 1977 में कांग्रेस पहली बार रायबरेली में हारी थी। तब भारतीय लोकदल के दिग्गज नेता राजनारायण ने आयरन लेडी इंदिरा गांधी को 55 हजार से अधिक वोटों से शिकस्त दी थी। साल 1996 में कांग्रेस के विक्रम कौल और साल 1998 में कांग्रेस की दीपा कौल को हार का सामना करना पड़ा था। इसके अलावा यहां कांग्रेस को कभी भी हार का मुंह नहीं देखना पड़ा है।
- तीन हार के बाद फिर पासा पलटा। साल 1971 और साल 1980 में हुए लोकसभा चुनावों में इंदिरा गांधी रायबरेली की सांसद बनीं। इसके बाद 1989 में और 1991 में शाीला कौल यहां की सांसद बनीं। साल 1996 और 1998 में यहां कांग्रेस प्रत्याशी चौथे नंबर पर रहे। साल 1999 में कांग्रेस के टिकट पर कैप्टन सतीश शर्मा सांसद बने। इसके बाद पार्टी का गढ़ बचाने के लिए 2004 में खुद सोनिया गांधी चुनाव मैदान में उतरीं। रायबरेली की जनता ने उन्हें करीब ढाई लाख वोट के अंतर से बड़ी जीत का तोहफा दिया। साल 2004, 2009, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में सोनिया गांधी ने जीत दर्ज की।
रायबरेली इंदिरा गांधी का निर्वाचन क्षेत्र रहा है। इतने चुनावी घटनाक्रम देखने के बाद तो एक बात साफ है कि रायबरेली यानी कांग्रेस। इस बार के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस और बीजेपी आमने-सामने है। दिल्ली से रायबरेली की दूरी 623.5 किलोमीटर है। देखना बेहद दिलचस्प होगा कि क्या कांग्रेस के युवराज इस सीट को जीतकर रायबरेली से दिल्ली की दूरी तय कर पाते हैं या नहीं।
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