अधिकांश साइबर धोखाधड़ी देश के सिर्फ चार राज्यों के दस जिलों से हो रही है। राजस्थान का भरतपुर इस लिस्ट में सबसे ऊपर है, जबकि उत्तर प्रदेश के मथुरा का दूसरा नंबर है।
राजस्थान में साइबर स्कैम सबसे ज्यादा : दूसरे नंबर आता है यूपी का ये जिला, दो साल में मिले 38 लाख मामले
Nov 06, 2024 16:04
Nov 06, 2024 16:04
- राजस्थान में साइबर स्कैम सबसे ज्यादा
- यूपी में देश के 15 फीसदी मामले
- डिजिटल अरेस्ट बन रहा चुनौती
यूपी में देश के 15 फीसदी मामले
भारत में साइबर क्राइम के मामलों में वित्तीय धोखाधड़ी प्रमुख बन गई है और उत्तर प्रदेश इस मामले में काफी आगे है। 2022 से अगस्त 2024 के बीच साइबर अपराध से जुड़ी 38.85 लाख कॉल्स रिपोर्ट की गईं, जिनमें से 6.05 लाख कॉल्स उत्तर प्रदेश से थीं, जो कि राष्ट्रीय आंकड़े का 15.7 प्रतिशत हैं। इस दौरान राज्य में हुए वित्तीय धोखाधड़ी के मामलों की राशि 3,153 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है, जो देश भर में धोखाधड़ी की कुल राशि का एक बड़ा हिस्सा है। राज्य में सबसे ज्यादा धोखाधड़ी मोबाइल कनेक्शन के जरिए की जा रही है, और यूपी पुलिस ने इस पर काबू पाने के लिए 1.16 लाख से अधिक धोखाधड़ी वाले मोबाइल नंबरों को ब्लॉक किया है।
डिजिटल अरेस्ट बन रहा चुनौती
हाल के दिनों में साइबर अपराधियों ने "डिजिटल अरेस्ट" की एक नई धोखाधड़ी की रणनीति अपनाई है, जिसमें वे खुद को पुलिस अधिकारियों या अन्य कानूनी एजेंसियों के रूप में पेश करते हैं। इस स्कैम में ठग पीड़ितों को यह बताते हैं कि वे किसी अपराध में शामिल हैं और उन्हें तुरंत पैसा ट्रांसफर करने या पर्सनल जानकारी देने के लिए धमकाते हैं। यह चाल डर और भ्रम का फायदा उठाती है, और अक्सर पीड़ित घबराकर बिना जांच-पड़ताल किए पैसे भेज देते हैं। एक्सपर्ट्स का मानना है कि यह एक बेहद खतरनाक फ्रॉड है, क्योंकि इसमें पीड़ित का मानसिक स्थिति अपराधी के हाथों में खेल रही होती है और वे जल्दी में गलत कदम उठा लेते हैं।
आरोपियों तक पहुंचना अब भी मुश्किल
साइबर अपराधों से निपटना पुलिस के लिए एक बड़ा चुनौती बन चुका है। इन अपराधों में एक बड़ी समस्या यह है कि अधिकांश धोखाधड़ी कॉल्स व्हाट्सएप और अन्य VOIP सेवाओं के माध्यम से की जाती हैं, जिनका पता लगाना बेहद कठिन है। इन कॉल्स के सर्वर अक्सर विदेशों में होते हैं, जिससे अपराधियों तक पहुंचना और अपराधी की पहचान करना समय और संसाधनों की भारी मांग करता है। पुलिस के लिए हर मामले में त्वरित कार्रवाई करना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि धोखाधड़ी के बाद जब तक आवश्यक जानकारी जुटाई जाती है, तब तक आरोपी रकम को कई बैंक खातों में ट्रांसफर कर देते हैं या क्रिप्टोकरेंसी में बदल देते हैं, जिससे अपराधी आसानी से बच निकलते हैं।
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