2014 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से अब तक ईडी ने राजनैतिक व्यक्तियों पर जितनी भी कार्रवाई की है, उसमें से 95 फीसदी नेता विपक्ष के हैं।
ईडी का 'मनी'जाल : रडार पर 95% नेता विपक्षी, 2014 से अब तक कैसे ताकतवर होती गई जांच एजेंसी?
Mar 23, 2024 14:03
Mar 23, 2024 14:03
- 8 सालों में 121 नेताओं पर शिकंजा
- रडार पर विपक्ष के कई बड़े नेता
- सवालों के घेरे में है ईडी की जांच
8 सालों में 121 नेताओं पर शिकंजा
ऐसा नहीं है कि प्रवर्तन निदेशालय यानि ईडी पहले इस तरह की कार्रवाई नहीं करता था। लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से ईडी पर चार कदम आगे जाकर यह काम करने लगी है। एक रिपोर्ट के मुताबिक केवल 2014 से लेकर 2022 तक ही ईडी ने 121 प्रमुख नेताओं पर शिकंजा कसा है, जिसमें से 115 विपक्ष के हैं। इस सभी को ईडी ने या तो गिरफ्तार किया है, या इनके ठिकानों पर रेड डाली है, या फिर उनसे पूछताछ की है। जबकि यूपीए को दो कार्यकाल के दौरान कुल 26 राजनैतिक व्यक्ति ईडी की जांच के दायरे में आए, जिसमें से केवल 14 यानि करीब 54 फीसदी है विपक्ष के थे।
विपक्ष के कई बड़े नेताओं पर शिंकजा
ईडी की जांच के दायरे में बीते कुछ समय में ही कई बडे़ नेता आए हैं। इसमें दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह, झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता हेमंत सोरेन शामिल हैं। इसके अलावा ईडी ने भारत राष्ट्र समिति की नेता के. कविता को भी गिरफ्तार कर लिया है। कविता तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की बेटी हैं। 2014 से लेकर सितंबर 2022 तक कांग्रेस के 24, टीएमसी के 19, एनसीपी के 11, शिवसेना के 8, डीएमके के 6, बीजेडी के 6. आरजेडी के 5, बसपा के 5, सपा के 5, टीडीपी के 5, आम आदमी पार्टी के 3, इनेलो के 3, वाईएसआरसीपी के 3, सीपीएम के 2, नेशनल कॉन्फ्रेंस के 2. पीडीपी के 2, आईएडीएमके के 1, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के 1, सुभासपा के 1 और बीआरएस के 1 नेता पर ईडी ने अपना शिंकजा कसा है।
ईडी के पास इतनी शक्तियां कैसे?
ईडी को इतनी ताकत प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट यानि पीएमएलए से मिलती है। 2005 में इसके लागू होने के बाद से ही ईडी को अन्य जांच एजेंसियों जैसे सीबीआई, एनआईए आदि से कई गुना ज्यादा शक्ति मिल गई। ईडी को किसी मामले में आरोपी के खिलाफ जांच करने, उसे गिरफ्तार करने और उसकी संपत्ति जब्त करने का अधिकार है। ईडी अगर किसी मामले में अपना शिकंजा कस दे, तो आरोपी को जमानत मिलनी भी मुश्किल हो जाती है। ईडी देश की एकलौती एजेंसी है, जिसके सामने दिया गया बयान अदालत में बतौर सबूत माना जाता है। लंबे वक्त में विपक्ष ये आरोप लगा रहा है कि ईडी की कार्रवाई एकतरफा और राजनीति से प्रेरित हैं, लेकिन सरकार और खुद एजेंसी ने इससे इंकार करते हुए कहा कि सारी कार्रवाई गैर-राजनीतिक हैं।
सवालों के घेरे में है ईडी की जांच
ईडी और सरकार चाहें लाख दावे कर लें कि उनकी कार्रवाई गैर-राजनीतिक है, लेकिन कई ऐसे मामले हैं जिन्हें देखने के बाद एजेंसी की जांच पर सवाल उठते हैं। असम के वर्तमान मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा के खिलाफ पहले सीबीआई और फिर ईडी ने शारदा चिटफंड केस में जांच शुरू की थी। सरमा तब कांग्रेस में थे। सीबीआई ने 2014 में उनके घर और दफ्तर पर रेड भी मारी थी। लेकिन बाद में हिमंता बिस्वा सरमा ने भाजपा का दामन थाम लिया। तब से लेकर अब तक इस मामले में कार्रवाई आगे नहीं बढ़ी है। इसी तरह नारद स्टिंग ऑपरेशन केस में सुवेंदु अधिकारी और मुकुल रॉय को ईडी ने अपनी रडार पर लिया था। तब दोनों तृणमूल कांग्रेस में थे। लेकिन 2017 के पश्चिम बंगाल चुनाव से पहले दोनों ने भाजपा की सदस्यता ले ली और केस पर जांच वहीं रुक गई।
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