संत प्रेमानंद महाराज इन दिनों भक्तों की आस्था का बड़ा केंद्र बने हुए हैं। उनके दर्शन के लिए देश-विदेश से हजारों भक्त प्रतिदिन यहां आते हैं...
Premanand Maharaj Story : जानिए क्या है प्रेमानंद महाराज का असली नाम, कैसे बने सन्यासी...
Apr 14, 2024 17:30
Apr 14, 2024 17:30
प्रेमानंद महाराज का निजी जीवन
उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक ब्राह्मण परिवार में जन्में प्रेमानंद महाराज के बचपन का नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे है। इनके घर में सबसे पहले प्रेमानंद महाराज के दादाजी ने संन्यास लिया था। इनके परिवार में भक्तिभाव का माहौल था और इसी का प्रभाव उनके जीवन पर भी पड़ा। प्रेमानंद महाराज बताते हैं कि, जब वे 5वीं कक्षा में थे, तभी से गीता का पाठ शुरू कर दिया और इस तरह से धीरे-धीरे उनकी रुचि आध्यात्म की ओर बढ़ने लगी। 13 साल की उम्र में उन्होंने ब्रह्मचारी बनने का फैसला किया। इसके बाद वे घर का त्याग कर संन्यासी बन गए। संन्यासी जीवन की शुरुआत में प्रेमानंद महाराज का नाम आरयन ब्रह्मचारी रखा गया।
घर का त्याग कर आए वाराणसी
प्रेमानंद महाराज संन्यासी बनने के लिए घर का त्याग कर वाराणसी आए थे और यहीं अपना जीवन बिताने लगे। यह गंगा में प्रतिदिन तीन बार स्नान करते थे और तुलसी घाट पर भगवान शिव और माता गंगा का ध्यान व पूजन किया करते थे। दिन में केवल एक बार ही भोजन करके संन्यासी जीवन जीते थे। वृंदावन आकर वे राधा वल्लभ सम्प्रदाय से भी जुड़े और देखते ही देखते संत प्रेमानंद महाराज भक्तों की आस्था का बड़ा केंद्र गए। वर्तमान में वे अपने सत्संग व प्रवचनों के माध्यम से सोशल मीडिया पर काफी चर्चित है।
देश विदेश से आते हैं भक्त
बताते चलें कि संत प्रेमानंद महाराज इन दोनों भक्तों की आस्था का बड़ा केंद्र बने हुए हैं। उनके दर्शन के लिए देश-विदेश से हजारों भक्त प्रतिदिन यहां आते हैं। सोशल मीडिया पर भी वह भक्तों को सद्मार्ग की ओर चलने का संदेश देते हैं। शुक्रवार देर शाम को उनकी तबियत उस समय अचानक बिगड़ गई जब वह अपने आश्रम में राधारानी की संध्या आरती के दर्शन कर रहे थे।
सीने में दर्द की शिकायत
आश्रम से जुड़े सूत्रों के मुताबिक संत प्रेमानंद महाराज को संध्या आरती के दर्शन करते समय अचानक सीने में दर्द की शिकायत हुई तो उनके शिष्य बिना समय गंवाए उन्हें रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम अस्पताल ले गए। जहां डॉक्टरों की टीम ने उनका ईसीजी आदि परीक्षण किया। सभी रिपोर्ट नॉर्मल आने पर शिष्य एवं डॉक्टरों ने राहत की सांस ली। इसके बाद महाराज श्री के शिष्य उन्हें वापस आश्रम ले गए।
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