स्पीकर को लेकर एनडीए-इंडिया में ठनी : जब एक वोट से गिर गई थी अटल सरकार, जानिए क्यों इतना महत्वपूर्ण माना जाता है ये पद

जब एक वोट से गिर गई थी अटल सरकार, जानिए क्यों इतना महत्वपूर्ण माना जाता है ये पद
UPT | स्पीकर को लेकर एनडीए-इंडिया में ठनी

Jun 25, 2024 15:20

भारतीय राजनीति के इतिहास में यह पहली बार होने जा रहा है कि लोकसभा के स्पीकर पद के लिए चुनाव कराना पड़े। लेकिन आखिर ऐसी तनातनी की नौबत आई ही क्यों? आखिर लोकसभा स्पीकर का पद इतना महत्वपूर्ण क्यों है कि सरकार और विपक्ष इसके लिए भिड़ गए हैं।

Jun 25, 2024 15:20

Short Highlights
  • स्पीकर को लेकर एनडीए-इंडिया में ठनी
  • विपक्ष की शर्तों पर तैयार नहीं भाजपा
  • बेहद महत्वपूर्ण होता है स्पीकर का पद
New Delhi : 18वीं लोकसभा का सत्र सोमवार यानी 24 जून से शुरू हो गया है। लेकिन पहले ही दिन सरकार और विपक्ष में स्पीकर पद को लेकर ठन गई। एनडीए की तरफ से ओम बिरला स्पीकर पद के चेहरे के रूप में उतारे गए, तो विपक्ष ने के. सुरेश को आगे किया। भारतीय राजनीति के इतिहास में यह पहली बार होने जा रहा है कि लोकसभा के स्पीकर पद के लिए चुनाव कराना पड़े। लेकिन आखिर ऐसी तनातनी की नौबत आई ही क्यों? आखिर लोकसभा स्पीकर का पद इतना महत्वपूर्ण क्यों है कि सरकार और विपक्ष इसके लिए भिड़ गए हैं। आज हम आपको इसी बारे में बताएंगे, साथ ही आपको वो किस्सा भी सुनाएंगे, जब केवल एक वोट ने पूरी सरकार को गिरा दिया था।

सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच क्यों ठनी?
दरअसल नई सरकार के गठन के बाद ही विपक्ष ने ये एलान कर दिया कि वह सरकार को स्पीकर पद के लिए समर्थन देगा, लेकिन उसे बदले में डिप्टी स्पीकर का पद चाहिए। मगर सरकार की तरफ से इस पर कोई सहमति नहीं दी गई थी। सोमवार को जब सदन शुरू हुआ, तो राहुल गांधी का एक बयान सुर्खियां बटोरने लगा। राहुल गांधी ने कहा कि राजनाथ सिंह ने खड़गे को फोन कर स्पीकर पद के लिए समर्थन मांगा। लेकिन खड़गे ने डिप्टी स्पीकर पद की मांग की, तो राजनाथ ने कॉल बैक करने को कहा। राहुल ने कहा कि वो कॉल बैक अभी तक नहीं आया है। जाहिर है कि स्पीकर पद के लिए सहमति नहीं बन पाने के बाद सरकार और विपक्ष में ठन गई और उन्होंने अपना के. सुरेश को बतौर स्पीकर पद के उम्मीदवार मैदान में उतार दिया।

विपक्ष की शर्तों पर तैयार नहीं भाजपा
4 जून को जब लोकसभा चुनाव के नतीजे घोषित हुए, तो भारतीय जनता पार्टी को अकेले अपने दम पर बहुमत नहीं मिला। हालांकि सहयोगी दलों के साथ मिलकर उसके गठबंधन ने 292 सीटें जीतीं। तब से ही ये कहा जा रहा था कि भाजपा के सहयोगी दल उससे कई अहम मंत्रालय और स्पीकर का पद मांग सकते हैं। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। भाजपा ने सभी अहम मंत्रालय अपने पास रखे। वहीं स्पीकर पद भी अपने पास रखने के लिए भाजपा ने ओम बिरला के नाम पर सहयोगी दलों से सहमति ले ली है। जाहिर है कि जो पद भाजपा ने अपने सहयोगी दलों को नहीं दिया, उसे लेकर वह विपक्ष की शर्ते कैसें मांग लेती। यही वजह है कि अब सरकार और विपक्ष ने अपने-अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं।

स्पीकर पद की इतनी लालसा क्यों?
अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर स्पीकर पद में ऐसा क्या है, जो हर पार्टी को इसकी लालसा है। दरअसल लोकसभा में स्पीकर पद की काफी अहमियत होती है। राज्यसभा में तो उपराष्ट्रपति ही चेयरमैन होता है, लेकिन लोकसभा में स्पीकर का चुनाव सांसद वोट देकर करते हैं। ऐसे में सरकार और विपक्ष आपसी सहमति से स्पीकर और डिप्टी स्पीकर पद पर फैसला ले लेते हैं। लोकसभा का स्पीकर हाउस का कस्टोडियन होता है। लोकसभा को स्पीकर ही चलाता है और स्पीकर ही अंतिम निर्णय लेता है। लोकसभा की कार्यवाही के दौरान किसी प्रश्न पर या मोशन पर स्पीकर ही अंतिम फैसला लेता है और वह सबको मानना पड़ता है। कई बार सहयोगी दल भी स्पीकर का पद इसलिए ही मांगते हैं।

जब एक वोट ने गिरा दी थी सरकार
1999 में जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार से जयललिता की पार्टी ने अपना समर्थन वापस ले लिया था, तब उन्हें विश्वास प्रस्ताव पेश करना पड़ गया था। उससे पहले वाजपेयी की सरकार को टीडीपी ने समर्थन देकर स्पीकर का पद हासिल कर लिया था। टीडीपी के सांसद जीएमसी बालयोगी स्पीकर बने थे। जब वाजपेयी सरकार ने विश्वास प्रस्ताव लाया, तो चर्चा के बाद वोटिंग हुई। तभी उड़ीसा के नवनियुक्त मुख्यमंत्री गिरधर गमांग सदन में पहुंचे। वह भले ही मुख्यमंत्री बन गए थे, लेकिन उन्होंने अपनी संसदीय सीट से अभी इस्तीफा नहीं दिया था। संसद में हंगामा मचने लगा कि राज्य के पॉलिटिकल सिस्टम में जा चुका आदमी संसद की बैठक में शामिल कैसे हो सकता है। लेकिन बालयोगी ने अपने विवेक से फैसला लेते हुए गमांग को वोटिंग में हिस्सा लेने की अनुमति दे दी। लेकिन जब वोटिंग हुई, तो अटल बिहार वाजपेयी की सरकार मात्र 1 वोट से गिर गई। सत्ता पक्ष को 269 और विपक्ष में 270 वोट डाले गए।

डिप्टी स्पीकर चाहता था विपक्ष
विपक्ष चाहता था कि अगर वह स्पीकर पद पर सरकार का समर्थन करे, तो बदले में डिप्टी स्पीकर का पद उसे मिले। लोकसभा स्पीकर के पद की शक्तियां क्या होती हैं, इसके बारे में हम आपको बता चुके हैं। स्पीकर की अनुपस्थिति में डिप्टी स्पीकर ही सदन को चलाता है। उसके पास भी वही सारी शक्तियां होती हैं, जो स्पीकर को मिलती हैं। ऐसे में विपक्ष की ये मांग सरकार को रास नहीं आ रही थी। पिछली लोकसभा में डिप्टी स्पीकर का पद खाली रखा गया था। एक बात और गौर करने वाली है कि इस बार लोकसभा स्पीकर के लिए सदन को संभालना आसान नहीं होगा। इसकी वजह ये है कि लोकसभा में सरकार और विपक्ष दोनों के ही पास ज्यादा संख्या में सांसद हैं। अगर ओम बिरला स्पीकर बन भी जाते हैं, तो उन्हें इसके लिए काफी मशक्कत करनी पडे़गी।

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