देश में 18वीं लोकसभा का पहला सत्र शुरू हो गया है। लोकसभा में पहले नए सांसदों का शपथग्रहण हुआ और फिर स्पीकर का चयन हुआ। इसके बाद चौथे दिन यानी गुरुवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का अभिभाषण हुआ। करीब 50 मिनट के अभिभाषण में सरकार ने हर मुद्दे पर बात की।
संसद में संपन्न हुआ राष्ट्रपति का अभिभाषण : आजादी के पहले से चली आ रही है यह परंपरा, जानिए इसकी जरूरत क्यों है
Jun 27, 2024 18:26
Jun 27, 2024 18:26
- 16वीं सदी से भी पुरानी है परंपरा
- संविधान से अनुच्छेद 86 (1) में है प्रावधान
- ब्रिटेन से ली गई है यह परंपरा
16वीं सदी से भी पुरानी है परंपरा
सबसे पहले तो आपको ये मालूम होना चाहिए कि सदन में अभिभाषण की यह परंपरा भारत की है ही नहीं। यह परपंरा हमने अंग्रेजों से सीखी है। ब्रिटेन में सदन को संबोधित करने की परंपरा 16वीं सदी से भी ज्यादा पुरानी है। उस समय वहां के राजा या रानी ही सदन को संबोधित करते थे। लेकिन 1852 के बाद से ब्रिटेन की महारानी ही सदन को संबोधित करती आ रही हैं। भारत में राज करने के दौरान अंग्रेज यही सिस्टम भारत में भी लेकर आए। ब्रितानी हुकूमत ने 1919 में भारत में भारत सरकार अधिनियम पास किया। भारत में लोकसभा तो 1853 से ही अस्तित्व में थी, जिसे तब लेजिस्लेटिव काउंसिल कहा जाता था। इस लेजिस्लेटिव काउंसिल में केवल 12 सदस्य होते थे। लेकिन 1919 में राज्यसभा अस्तित्व में आई। हालांकि उसे भी तब काउंसिल ऑफ स्टेट कहा जाता था।
भारत में ऐसे हुई शुरुआत
दरअसल 15 अगस्त 1947 को आजादी मिलने के बाद संविधान सभा का गठन हुआ था। डॉ. राजेंद्र प्रसाद को इसका अध्यक्ष बनाया गया था। ये बात तो सभी को पता है कि जब हमारा संविधान बना था, तो उस समय 10 देशों के संविधान से अलग-अलग बातें जोड़कर भारत का संविधान बनाया गया था। जिस संसदीय प्रणाली का आज हम इस्तेमाल कर रहे हैं, वह भी ब्रिटेन से ली गई है। इस प्रणाली के साथ-साथ हमने कई सारी संसदीय परंपराएं भी ब्रिटेन की तर्ज पर हमारे लागू की गईं। ब्रिटेन में सत्र की शुरुआत से पहले वहां के राजा या रानी सदन को संबोधित करते थे, वैसे ही भारत में भी होने लगा। हालांकि हमारे यहां राजा या रानी की जगह राष्ट्रपति को सदन को संबोधित करने का अधिकार मिला। 1950 में जब भारत में संविधान लागू हुआ, तो आर्टिकल 86 (1) में राष्ट्रपति के अभिभाषण का प्रावधान किया गया। ब्रिटेन में राजपरिवार के प्रमुख का ओहदा भारतीय संसदीय प्रणाली के राष्ट्रपति के बराबर होता है। ब्रिटेन में राजा या रानी का भाषण सरकार ही तैयार करती थी और भारत में भी ऐसा ही होता है।
अभिभाषण का क्या है महत्व?
राष्ट्रपति के अभिभाषण का प्रावधान भारत के संविधान में ही निहित है। भारतीय संसद के दोनों सदनों में एक साल में तीन सत्र होते हैं। इसमें पहला सत्र बजट सत्र, दूसरा मानसून सत्र और तीसरा शीतकालीन सत्र कहा जाता है। संविधान के अनुच्छेद 86 (1) में राष्ट्रपति को ये अधिकार दिया गया है कि वह जब चाहें, तब संसद के किसी एक सदन या दोनों सदनों के सदस्यों को बुला सकते हैं और अभिभाषण दे सकते हैं। हालांकि इस आर्टिकल का आज तक इस्तेमाल नहीं किया गया है। वहीं संविधान के ही अनुच्छेद 87 (1) में यह प्रावधान है कि आम चुनाव के बाद के पहले सत्र और हर साल के पहले सत्र की शुरुआत में संसद के दोनों सदनों में राष्ट्रपति अभिभाषण देंगे। अब चूंकि साल का पहला सत्र बजट सत्र होता है, इसलिए राष्ट्रपति बजट सत्र के पहले संसद के दोनों सदनों को संबोधित करते हैं।
अभिभाषण से जुड़ी एक और दिलचस्प बात
यहां एक बात और जाननी दिलचस्प है। आजादी के बाद जब देश में संविधान लागू हुआ था, तब राष्ट्रपति को हर सत्र को संबोधित करना होता था। लेकिन बाद में इसमें संशोधन किया गया। 1951 में हुए पहले संविधान संशोधन में हर सत्र को संबोधित करने के उपबंध को बदलकर आम चुनाव के बाद का पहला सत्र और साल का पहला सत्र कर दिया गया। इसके पीछे वजह दी गई कि अभिभाषण के लिए सदन के बाह कुछ तैयारी करनी पड़ती है, जो कई बार परेशानी पैदा करने वाली होती है। एक बात और जानने योग्य है कि राष्ट्रपति के अभिभाषण के बिना संसद का कोई भी सत्र शुरू नहीं किया जा सकता। जब तक राष्ट्रपति दोनों सदनों के समक्ष अभिभाषण नहीं दे देते, तब तक कोई अन्य कार्य नहीं किया जा सकता। हर साल के पहले सत्र के पहले दिन ही राष्ट्रपति दोनों सदनों में अभिभाषण देते हैं। हालांकि अनुच्छेद 87 में यह भी स्पष्ट है कि यद साल के पहले सत्र के प्रारंभ में लोकसभा भंग कर दी गई है और राज्यसभा की बैठक होनी है, तो राष्ट्रपति के अभिभाषण के बिना ही राज्यसभा अपना सत्र शुरू कर सकती है।
अभिभाषण में पूरी करनी होती हैं औपचारिकताएं
राष्ट्रपति का अभिभाषण संविधान के अंतर्गत एक गंभीर और औपचारिक कार्य है। इसके लिए नियम के अनुरुप गरिमा और मर्यादा बनाए रखना आवश्यक है। राष्ट्रपति के अभिभाषण के लिए पहुंचने से पहले ही संसद के सदस्य सेंट्रल हॉल में अपनी सीटों पर बैठे होते हैं। राष्ट्रपति अपनी गाड़ी से संसद भवन तक पहुंचते हैं। राज्यसभा के सभापति, लोकसभा अध्यक्ष, प्रधानमंत्री, संसदीय कार्य मंत्री और दोनों सदनों के महासचिव गेट पर राष्ट्रपति का स्वागत करते हैं। राष्ट्रपति के आते ही सभी सदस्य अपनी सीट से उठ खड़े हो जाते हैं और तब तक खड़े रहते हैं, जबत तक राष्ट्रपति अपने स्थान पर आसीन नहीं हो जाते। राष्ट्रपति के अभिभाषण के दौरान यह अपेक्षा की जाती है कि कोई भी सदस्य सेंट्रल ह़ॉल को छोड़कर न जाए और न ही इस अवसर पर कोई ऐसी बात कहे या आचरण करे, जिसे अवसर की गंभीरता या गरिमा पर आंच आए।
अभिभाषण के बाद की प्रक्रिया
राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद इस पर चर्चा की जाती है। इसका समय दोनों सदनों के अध्यक्ष तय करते हैं। लोकसभा के नियम 16 और राज्यसभा के नियम 14 में यह जिक्र है कि अध्यक्ष सदन के नेता या प्रधानमंत्री से राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा का समय तय करेगा। इसके बाद सदन में धन्यवाद प्रस्ताव पेश किया जाता है और इस पर चर्चा की जाती है। धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब देने का अधिकार सरकार के पास होता है। प्रधानमंत्री या सरकार की तरफ से कोई मंत्री ये जवाब दे सकता है। एक बार जब सरकार की तरफ से जवाब दे दिया जाता है, तो सदन के अन्य किसी सदस्य को उत्तर देने का अधिकार नहीं होता है। राष्ट्रपति के अभिभाषण में सरकार के अगले एक साल के कामकाज का ब्योरा भी रहता है। सरकार की नीतियों और कामकाज के बारे में राष्ट्रपति अभिभाषण के माध्यम से संसद को बताते हैं। किसी भी सदस्य को राष्ट्रपति के पर सवाल उठाने का अधिकार नहीं होता है। हालांकि वह धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान इस पर बहस कर सकते हैं, लेकिन इसमें भी राष्ट्रपति का नाम नहीं ले सकते।
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