आप सोच रहे होंगे कि जब जेल में बंद कैदी चुनाव लड़ सकता है, तो वो वोट क्यों नहीं डाल सकता है? बता दें संविधान के नियमों के मुताबिक जेल में बंद कोई भी कैदी वोट नहीं डाल सकता है...
Lok Sabha Election 2024 : जेल में बंद कैदी लड़ सकते हैं चुनाव, पर नहीं कर सकते मतदान, जानिए क्या कह रहे हैं कानून के जानकार
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May 16, 2024 20:50
May 16, 2024 20:50
कैदी लड़ सकता है चुनाव पर नहीं कर सकता वोट
आप सोच रहे होंगे कि जब जेल में बंद कैदी चुनाव लड़ सकता है, तो वो वोट क्यों नहीं डाल सकता है? बता दें संविधान के नियमों के मुताबिक जेल में बंद कोई भी कैदी वोट नहीं डाल सकता है। पुलिस हिरासत में मौजूद व्यक्ति को वोट देने का अधिकार नहीं होता है। सुप्रीम कोर्ट इस संबंध में दाखिल एक जनहित याचिका को पहले ही खारिज कर चुका है। जानकारी के मुताबिक वर्तमान कानूनी प्रावधान के मुताबिक जेल में सजा काट रहे आरोपी को वोट देने का अधिकार नहीं होता है। इसके साथ ही अगर कोई आरोपी विचाराधीन है या न्यायिक हिरासत या पुलिस कस्टडी में हैं, तो उसे भी वोट डालने का अधिकार नहीं होता है।
क्या है अधिनियम 1951 की धारा 62(5)
बता दें कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 62(5) के तहत जेल में बंद कैदी को वोट देने का अधिकार नहीं होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि वोट देने का अधिकार एक कानूनी अधिकार होता है। कानून का उल्लंघन करने वाले इसका इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं। कानूनी प्रावधानों के मुताबिक वह आरोपी जिसे कोर्ट द्वारा किसी केस में ट्रायल के बाद दोषी ठहराया गया है, या आरोपी व्यक्ति भी जिसे कोर्ट द्वारा पुलिस कस्टडी या न्यायिक हिरासत में भेजा गया है। वह भी चुनाव में वोट नहीं डाल सकता है।
जेल में बंद कैदी लड़ सकता है चुनाव
अब आप सोच रहे होंगे कि जेल में बंद कैदी को मतदान का अधिकार नहीं है,लेकिन कैदी को चुनाव लड़ने का अधिकार है। जी हां नियमों के मुताबिक जेल में बंद कोई भी कैदी चुनाव लड़ सकता है। बता दें जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (RP Act) की धारा 8 के मुताबिक उन लोगों को संसद और राज्य विधानमंडलों की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया जाता है जिन्हें किसी अपराध के लिए दोषी ठहराया गया हो और दो साल या उससे अधिक की जेल की सजा दी गई हो। अधिनियम की धारा 8 (3)के मुताबिक, “किसी भी अपराध के लिए दोषी ठहराया गया व्यक्ति और जिसे कम से कम दो साल के कारावास की सजा सुनाई गई हो, उसे सजा की तारीख से अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा और रिहाई के बाद भी छह साल की अवधि के लिए अयोग्य बना रहेगा।” लेकिन अधिनियम विचाराधीन कैदियों को चुनाव लड़ने से नहीं रोकता है। इसका साफ मतलब है कि अगर कैदी जेल में ट्रायल से गुज़र रहा है और उसका दोष साबित नहीं हुआ है तो वह चुनाव लड़ सकता है। जानकारी के मुताबिक 2013 में आरपीए एक्ट के सेक्शन 62(5) में संशोधन हुआ। इसमें जेल में रहते हुए इलेक्शन में दावेदारी की छूट मिली, जिसके बाद जेल में बंद कैदी भी चुनाव लड़ सकता है।
क्या कह रहे हैं कानून के जानकार
इस पूरे मुद्दे को और समझने के लिए हमने कानून के कुछ जानकार वकीलों से बात की। इस कड़ी में हमने दिल्ली कडकडडुमा कोर्ट के वकील अनिल भट्ट से बात की। उनका कहना है कि वोट का अधिकार काफी बड़ी जिम्मेदारी है। इसलिए जो व्यक्ति आपराधिक गतिविधि में संलिप्त है उन्हें वोटिंग के अधिकार से दूर ही रखना चाहिए साथ ही चुनाव लड़ने का भी उन्हें हक नहीं देना चाहिए। वहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकील रंजन श्रीवास्तव से बात की उन्होंने बताया कि जो भी अंडर ट्रायल कैदी हैं वो सामान्य नागरिक की तरह वोट नहीं कर सकते, लेकिन अगर वो चाहे तो जेलर से पोस्टल वोट या टेंडर वोट की मांग सकते है। जेलर से अनुमति मिलने पर वो वोट डाल सकते हैं। इन वोटों की गिनती तब होती है जब पूरे वोटों की गिनती पूरी हो जाती है, लगभग बहुत कम मार्जिन से जीता या हारा जाता है तो इसे गिनती में शामिल किया जाता है।
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