ईवीएम पर फिर उठने लगे सवाल : एलन मस्क के बाद राहुल-अखिलेश ने की आपत्ति, आखिर इस मशीन की जरूरत क्यों है?

एलन मस्क के बाद राहुल-अखिलेश ने की आपत्ति, आखिर इस मशीन की जरूरत क्यों है?
UPT | ईवीएम पर फिर उठने लगे सवाल

Jun 16, 2024 18:47

हाल ही में अमेरिकी बिजनेसमैन और टेस्ला के सीईओ एलन मस्क ने ईवीएम पर प्रश्न चिन्ह खड़ा किया था। अब इस मुद्दे पर भारत में भी बगावत के सुर उठने लगे हैं। लेकिन सवाल ये है कि आखिर ईवीएम को लेकर समय-समय पर सवाल क्यों उठने लगते हैं और भारत में इस मशीन की जरूरत क्यों है?

Jun 16, 2024 18:47

Short Highlights
  • एलन मस्क ने ईवीएम पर उठाए सवाल
  • राहुल-अखिलेश ने भी जताई आशंका
  • 15 साल से ईवीएम पर लग रहे प्रश्न चिन्ह 
New Delhi : भारत में पहले चुनाव बैलेट पेपर से करवाए जाते थे। लेकिन मतगणना में काफी समय लगता था और धांधली की आशंका भी बनी रहती थी। ऐसे में ईवीएम यानी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन अस्तित्व में आई। 1998 में इसके पहले औपचारिक इस्तेमाल के बाद से अब तक चुनावों में ईवीएम का प्रयोग किया जा रहा है। लेकिन इसे लेकर समय-समय पर सवाल भी उठते रहे हैं। हाल ही में अमेरिकी बिजनेसमैन और टेस्ला के सीईओ एलन मस्क ने ईवीएम पर प्रश्न चिन्ह खड़ा किया था। अब इस मुद्दे पर भारत में भी बगावत के सुर उठने लगे हैं। राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने बैलट पेपर से चुनाव करवाने की मांग की है। लेकिन सवाल ये है कि आखिर ईवीएम को लेकर समय-समय पर सवाल क्यों उठने लगते हैं और भारत में इस मशीन की जरूरत क्यों है?

सबसे पहले बात इतिहास की
ईवीएम का झगड़ा समझने से पहले जरूरी है कि इतिहास जान लिया जाए। 1979 में ईवीएम का प्रोटोटाइप तैयार किया गया था। मई 1982 में केरल में विधानसभा चुनाव हुए, तब पहली बार ईवीएम का इस्तेमाल हुआ। लेकिन तब तक ईवीएम से चुनाव कराने का कानून नहीं था, इसलिए सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ याचिकाएं डाली गईं और कोर्ट ने सुनवाई के बाद चुनाव को रद्द कर दिया। इसके 7 साल बाद 1989 में जाकर रिप्रेंजेंटेटिव्स ऑफ पीपुल्स एक्ट, 1951 में संशोधन किया गया और ईवीएम से चुनाव कराने का कानून जोड़ा गया। इसके बावजूद 1998 में जब मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए, तब जाकर पहली बार देश में ईवीएम का औपचारिक रूप से इस्तेमाल किया गया।

कैसे काम करती है ईवीएम मशीन?
ईवीएम मशीन साधारण बैटरी से चलने वाली एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस है। इसमें मतदान के दौरान वोटों को दर्ज किया जाता है। कंट्रोल यूनिट और बैलेट यूनिट ईवीएम के दो हिस्से होते हैं। ये दोनों एक-दूसरे से 5 मीटर लंबे तार से जुड़े होते हैं। कंट्रोल यूनिट पोलिंग अफसरों की निगरानी में होता है। इसका बटन दबाते ही बैलेट यूनिट एक्टिव हो जाती है। बैलेट यूनिट में ही कैंडिडेट के नाम दर्ज होते हैं। इसका बटन दबाते ही वोट दर्ज हो जाता है और बीप की आवाज आती है। ईवीएम मशीन में 64 उम्मीदवारों के नाम दर्ज हो सकते हैं। वहीं एक ईवीएम मशीन में अधिकतम 3840 वोट दर्ज किए जा सकते हैं।

क्यों पड़ी ईवीएम की जरूरत?
दरअसल चुनावों में ईवीएम का इस्तेमाल करने की दो बड़ी वजहें हैं। पहला तो ये कि इससे मतदान और मतगणना दोनों ही बैलेट के मुकाबले काफी जल्दी हो जाते हैं। दूसरी वजह ये कि ईवीएम के कारण बूथ कैप्चरिंग जैसी घटनाओं पर लगाम लगी है। आपको बता दें कि 1957 में हुए देश के दूसरे आम चुनाव में ही बूथ कैप्चरिंग की घटनाएं सामने आने लगी थीं। 70 और 80 के दशक में तो ये घटनाएं आम हो गई थीं। लंबे समय तक चुनावों के दौरान अखबारों में यही हेडलाइन होती थी। चुनाव आयोग तब से ही इसका कोई विकल्प तलाश रहा था और यह तलाश ईवीएम पर आकर खत्म हुई।

निशाने पर आने लगी ईवीएम
ईवीएम पर सबसे पहले भारतीय जनता पार्टी ने ही सवालिया निशान उठाया था। 2009 में लालकृष्ण आडवाणी और सुब्रमणयण स्वामी ने ईवीएम के जरिए धांधली का आरोप लगाया। स्वामी इसके लिए कोर्ट भी गए। भाजपा के नेता जीवीएल नरसिम्हा राव ने तो ईवीएम की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए बाकायदा किताब भी लिख दी। इसके बाद जो सिलसिला शुरू हुआ, वह अब तक नहीं थमा है। तब से लगभग हर चुनाव में हारने वाली पार्टी ईवीएम पर सवाल उठा देती है। राजनीतिक पार्टियां इसे लेकर कई बार कोर्ट भी जा चुकी हैं। उनकी मांग है कि ईवीएम को हटाकर चुनाव दोबारा से बैलट पेपर से कराए जाएं। लेकिन चुनाव आयोग इसके लिए कतई तैयार नहीं है।

चुनाव आयोग का क्या है तर्क?
भारत निर्वाचन आयोग लगातार ईवीएम की सुरक्षा और विश्वसनीयता की बात करता रहा है। आयोग का कहना है कि भारत में इस्तेमाल होने वाली ईवीएम में छेड़छाड़ नामुमकिन है क्योंकि उनमें विश्व स्तरीय सुरक्षा फीचर्स हैं। ईवीएम को लेकर सबके अलग-अलग तर्क हैं। ईवीएम का इस्तेमाल करने वाले देश इसे पारदर्शी, विश्वसनीय और लागत प्रभावी समझते हैं। दूसरी ओर, इसके विरोधी इसे गैर-जिम्मेदार बताते हैं और इसपर छेड़छाड़ का आरोप लगाते रहे हैं। आयोग ईवीएम की तकनीकी खासियतों को गिनाता रहा है जैसे कि ये मशीनें बैटरी और सिग्नल से संचालित नहीं होतीं बल्कि केवल मैन्युअल पावर केबल से चलती हैं। इनमें डेटा ट्रांसफर नहीं किया जा सकता। हर मशीन में यूनिक्यू आइडेंटिफिकेशन नंबर होता है। निर्वाचन आधिकारियों और पार्टी प्रतिनिधियों की मौजूदगी में ही मशीनों को सील किया जाता है। मतदान केंद्रों पर पैरा-मिलिट्री बलों की तैनाती की जाती है। मतगणना केंद्रों पर पार्टी प्रतिनिधियों को मतगणना की पूरी प्रक्रिया देखने की अनुमति होती है। पिछले कुछ चुनावों के दौरान आयोग ने विपक्ष के साथ मशीनों का लाइव डेमो भी किया था ताकि उनके सवालों का समाधान हो सके। लेकिन फिर भी आशंकाएं बनी रहीं।

विरोध का कोई पुख्ता आधार नहीं
राजनीतिक दलों के पास ईवीएम का विरोध करने के लिए कोई पुख्ता आधार नहीं है। उनके आरोप इतने कोरे हैं कि कोर्ट में टिकते भी नहीं। देश के कई हाईकोर्ट ईवीएम पर भरोसा जता चुके हैं। देश में हर चुनाव के बाद ईवीएम पर सवाल उठाने वाले वहीं है, जो चुनाव हार जाते हैं या जिन्हें कम सीटें मिलती हैं। मार्च 2017 में 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव हुए। इसके बाद 10 अप्रैल 2017 को 13 राजनीतिक दलों ने ईवीएम को कठघरे में खड़ा करते हुए चुनाव आयोग पर सवाल उठाए। आम आदमी पार्टी के नेता सौरभ भारद्वाज ने तो बाकायजदा इसके लिए ईवीएम को हैक करने का डेमो तक कर डाला। लेकिन जब चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों को आमंत्रित किया कि वह आकर ईवीएम को हैक कर दिखाएं, तो एक भी दल सामने नहीं आया। किसी भी डिवाइस के शत प्रतिशत लीक प्रूफ होने का दावा भले न किया जा सकता हो, लेकिन फिलहाल राजनीतिक दलों के आरोप काफी सतही हैं।

अब आगे क्या विकल्प?
ईवीएम पर सवाल उठाने का सिलसिला पिछले 15 साल से बदस्तूर जारी है। आए दिन देश की अदालतों में इसे लेकर याचिकाएं दाखिल की जाती हैं। लेकिन अब तक कोई भी दल अपने आरोपों का प्रमाण नहीं दे पाया है। हालांकि ये भी सच है कि ईवीएम पर दलों को अगर विश्वास नहीं है, तो इस विश्वास को जगाना चुनाव आयोग का काम है। लोकतंत्र में जनता का विश्वास सबसे महत्वपूर्ण होता है। एक बार यह विश्वास टूट गया तो इसे फिर से बनाना बहुत मुश्किल होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि आयोग को इस मुद्दे पर अधिक गंभीरता से काम करना चाहिए। वरिष्ठ तकनीकी एक्सपर्ट, साइबर विशेषज्ञ और स्वतंत्र मीडिया को शामिल करते हुए एक उच्च स्तरीय टेक्निकल पैनल गठित किया जा सकता है। इस पैनल को मशीनों का गहन मूल्यांकन करने की अनुमति दी जा सकती है। इससे ईवीएम की क्षमताओं और खामियों को बेहतर तरीके से समझा जा सकेगा। वैसे सवाल सिर्फ ईवीएम की विश्वसनीयता पर ही नहीं उठ रहे हैं, बल्कि पूरी चुनाव प्रक्रिया पर भी सवाल उठते रहे हैं। मतदाता सूचियों में गड़बड़ी, मतदान केंद्रों पर अनियमितताएं, अनुचित प्रचार आदि मुद्दों पर भी सवाल उठते हैं। इन समस्याओं के निदान के लिए चुनाव सुधारों पर गंभीरता से विचार होना चाहिए।

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