भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के रूप में उनका योगदान विशेष महत्व रखता है। वे एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री थे जिनके हस्ताक्षर 1 रुपये से लेकर 100 रुपये तक की करेंसी पर देखने को मिले।
नेता भी, अर्थशास्त्री भी : मनमोहन देश के इकलौते ऐसे प्रधानमंत्री रहे, जिनके दस्तखत वाले नोट भी चलते थे
Dec 27, 2024 10:56
Dec 27, 2024 10:56
मनमोहन सिंह के दस्तखत भारतीय करेंसी पर
मनमोहन सिंह भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर रह चुके हैं और वे एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री थे जिनके हस्ताक्षर भारतीय करेंसी पर देखने को मिले, वह भी 1 रुपये से लेकर 100 रुपये तक के नोटों पर। यह तथ्य उन्हें भारतीय मुद्रा इतिहास में अद्वितीय बनाता है। उनके कार्यकाल में कई ऐतिहासिक फैसले लिए गए, लेकिन प्रधानमंत्री बनने से पहले उनका योगदान भारतीय वित्तीय और बैंकिंग क्षेत्र में भी बेहद अहम रहा।
मनमोहन सिंह एक आर्थिक सुधारक
मनमोहन सिंह का योगदान केवल करेंसी तक सीमित नहीं है। उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी। 1991 में वित्त मंत्री के रूप में उन्होंने आर्थिक सुधारों का नेतृत्व किया। जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाया।
भारतीय करेंसी पर हस्ताक्षर का महत्व
भारत में करेंसी नोटों पर केवल भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के हस्ताक्षर होते हैं। यह हस्ताक्षर न केवल नोट को वैध बनाते हैं बल्कि यह आरबीआई की आधिकारिक गारंटी का प्रतीक भी हैं। भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 की धारा 22 के तहत देश में करेंसी नोटों को जारी करने का अधिकार केवल आरबीआई को है। 1 रुपये के नोट पर हालांकि यह नियम लागू नहीं होता। इस पर गवर्नर के बजाय वित्त सचिव के हस्ताक्षर होते हैं। जब मनमोहन सिंह वित्त सचिव थे, तब उनके हस्ताक्षर वाले 1 रुपये के नोट प्रकाशित किए गए थे।
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मनमोहन सिंह का आरबीआई गवर्नर के रूप में योगदान
1982 से 1985 तक डॉ. मनमोहन सिंह ने भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर का पद संभाला। इस दौरान भारतीय बैंकिंग और मुद्रा प्रणाली को मजबूती प्रदान करने के लिए कई अहम कदम उठाए गए। उनके कार्यकाल में जारी किए गए नोटों पर उनके हस्ताक्षर थे जो आज भी भारतीय मुद्रा इतिहास के संग्रहणीय दस्तावेजों में गिने जाते हैं।
मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाने पर उठे थे सवाल
वर्ष 1991 भारत के लिए एक ऐतिहासिक मोड़ था। खासकर तब जब पीवी नरसिम्हा राव ने डॉ. मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी। उन दिनों की वित्तीय स्थिति और आर्थिक संकट को देखते हुए यह फैसला कई सवालों से घिरा था। डॉ. मनमोहन सिंह को वित्त मंत्रालय सौंपे जाने पर लोगों ने आशंका व्यक्त की थी कि क्या किसी केंद्रीय बैंक के पूर्व प्रमुख को इस महत्वपूर्ण पद पर लाना सही होगा। उस समय तक वित्त मंत्री की कुर्सी पर बैठने वाले ज्यादातर लोग राजनीतिक पृष्ठभूमि से आते थे। इनमें कांग्रेस के कट्टर नेता भी शामिल थे। कई विश्लेषकों ने डॉ. मनमोहन सिंह की योग्यता पर सवाल उठाते हुए कहा था कि क्या वह देश की जटिल आर्थिक समस्याओं का समाधान कर पाएंगे। फिर भी यह माना जाता था कि उनके पास बेहतरीन तकनीकी ज्ञान और अंतरराष्ट्रीय मानकों के साथ तालमेल बिठाने की क्षमता थी। जो उस समय भारत के लिए अपनी आर्थिक नीतियों को बेहतर बनाने के लिए बेहद जरूरी था।
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